रूपमाला छंद पढ़े काबर चार आखर, इहां सोचे कोन । डालडा के बने गहना, होय चांदी सोन ।। पेट पूजा करे भर हे, बने ज्ञानी पोठ । सबो पढ़ लिख नई जाने, गाँव के कुछु गोठ ।। मोर लइका मोर बीबी, मोर ये घर द्वार । छोड़ दाई ददा भाई, करे हे अत्याचार ।। सोंध माटी नई जाने, डगर के चिखला देख । पढ़े अइसन दिखे ओला, गांव मा मिन मेख । ज्ञान दीया कहाथे जब, कहां हे अंजोर । नौकरी बर लगे लाइन, अपन गठरी जोर ।।
पुस्तक: मानसिक शक्ति-स्वामी शिवानंद
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मानसिक शक्ति THOUGHT POWER का अविकल रूपान्तर लेखक श्री स्वामी शिवानन्द
सरस्वती
1 माह पहले