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अक्तूबर, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

जन्नत ला डहाय

सिंहिका छंद ये बैरी अपने घर मा. आगी तो लगाय । मनखे होके मनखे ला. अब्बड़ के सताय ।। अपने ला धरमी कहिथे. दूसर ला न भाय ।। जन्नत के ओ फेर परे, जन्नत ला डहाय ।।

मन के अंधियारी मेट ले

मन के अंधियारी मेट  ले (सरसी छंद) मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार । मनखे मनखे एके होथे, ऊंच-नीच ला टार ।। घर अँगना हे चिक्कन चांदन, चिक्कन-चिक्कन खोर । मइल करेजा के तैं धो ले, बांध मया के डोर । मन के दीया बाती धर के, तेल मया के डार।। मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार । जनम भूमि के दाना पानी, हवय तोर ये देह । अपन देष अउ धरम-करम मा, करले थोकिन नेह ।। अपने पुरखा अउ माटी के, मन मा रख संस्कार । मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार । नवा जमाना हे भौतिक युग, यंत्र तंत्र ला मान । येमा का परहेज हवय गा, रखव समय के ध्यान । भौतिक बाहिर दिखवा होथे, अंतस के संस्कार । मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार ।

दाना-दाना अलहोर

अपन सबो संस्कार ला, मान अंध विश्वास । संस्कृति ला कुरीति कहे, मालिक बनके दास । पढ़े लिखे के चोचला, मान सके ना रीति । कहय ददा अढ़हा हवय, अउ संस्कार कुरीति ।। रीति रीति कुरीति हवय, का बाचे संस्कृति । साफ-साफ अंतर धरव , छोड़-छाड़ अपकृति ।। दाना-दाना अलहोर के, कचरा मन ला फेक । दाना कचरा संग मा, जात हवय का देख ।। धरे आड़ संस्कार के, जेन करे हे खेल । दोषी ओही हा हवय, संस्कृति काबर फेल ।। दोषी दोषी ला दण्ड दे, संस्कृति ला मत मार । काली के गलती हवय, आज ल भला उबार ।।

ये जीनगी के काहीं धरे कहां हे

अभी मन हा भरे कहां हे ये जीनगी के काहीं धरे कहां हे चाउर दार निमेर के पानी कांजी भरे हे घर के मोहाटी मा दीया बाती धरे हे अभी चूल्हा मा आगी बरे कहां हे करिया करिया बादर हा छाये हे रूख-राई हा डारा-पाना ल डोलाये हे पानी के बूँद हा अभी धरती मा परे कहां हे काल-बेल के घंटी घनघनावत हे हड़िया के अंधना सनसनावत हे जोहत हे भीतरहिन अभी पैना भरे कहां हे

गाय गरूवा अब पोषय कोन

जुन्ना नागर बुढ़वा बइला पटपर भुईंया जोतय कोन खेत खार के पक्की सड़क म टेक्टर दउड़य खदबद-खदबद बारह नाशी नागर के जोते काबर कोंटा बाचे रदबद बटकी के बासी पानी के घइला संगी के ददरिया होगे मोन पैरा-भूसा  दाना-पानी छेना खरसी गोबर कचरा घुरवा के दिन हा बहुरे हे कोन परे अब येखर पचरा फोकट म घला होगे महंगा गाय गरूवा अब पोषय कोन

नारी नर ले भारी

छन्न पकइया छन्न पकइया, नारी नर ले भारी । जेन काम मा देखव संगी, लगे हवय गा नारी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, नारी नो हय अबला । देखाये हे अपने ताकत, नारी मन हा सब ला । छन्न पकइया छन्न पकइया, सेना मा हे नारी । बैरी मन के छाती फाड़े, मारत हे किलकारी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, हवे कलेक्टर नारी । मास्टर डाँक्टर इंजिनियर अउ, हवे पुलिस पटवारी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, नारी के का कहना । हावे नेता अउ अधिकारी, अम्मा दीदी बहना । छन्न पकइया छन्न पकइया, नारी बने व्यपारी । हर काउन्टर मा नोनी मन, गोठ करे हे भारी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, लगे अचंभा भारी । घर के अपने बुता बिसारे, पढ़े-लिखे कुछ नारी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, वाह रे मोटियारी । बना नई सके चाय कप भर, करे हे होशियारी । छन्न पकइया छन्न पकइया, अब के आन भरोसा । दाई पालनहारी रहिस ग, परसे कई परोसा ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, मनखे चिरई होगे । धरती के कुरिया ला छोड़े, गगन म जाके सोगे ।।

जात.पात ला छोड़व कहिथे

जात.पात ला छोड़व कहिथे, गिनती जे करथे । बाँट-बाँट मनखे के बोटी, झोली जे भरथे ।। गढ़े सुवारथ के परिभाषा, जात बने कइसे । निरमल काया के पानी मा, रंग घुरे जइसे ।। अगड़ी पिछड़ी दलित रंग के, मनखे रंग धरे । रंग खून के एक होय कहि, फोकट दंभ भरे । जात कहां रोटी-बेटी बर, कहिथे जे मनखे । आरक्षण बर जाति बता के, रेंगे हे तनके ।। खाप पंचायत कोरी.कोरी, बनथे रोज नवा । एक बिमारी अइसन बाचे, बाढ़े रोज सवा ।।

काम ये खेती किसानी आय पूजा आरती

   काम ये खेती किसानी, आय पूजा आरती ।     तोर सेवा त्याग ले, होय खुश माँ भारती ।।     टोर जांगर तैं कमा ले, पेट भर दे अब तहीं ।     तैं भुईयां के हवस गा, देव धामी मन सहीं ।। 1।।     तोर ले हे गाँव सुघ्घर, खेत पावन धाम हे ।     तैं हवस गा अन्नदाता, जेन सब के प्राण हे ।।     मत कभू हो शहरिया तैं, कोन कर ही काम ला ।     गोहरावत हे भुईंयां, छोड़ झन ये धाम ला ।।2।।   

चमचा मन के ढेर हे

चमचा मन के ढेर हे बात कहे मा फेर हे गोड़ पखारत देखेंव जेला ओही बने लठैत हे पिरपिट्टी ओखर घर के हमर मन बर करैत हे कुकुर कस पूछी डोलावय कइसे कहिदंव शेर हे हाँक परे मा सकला जथे मंदारी के डमरू सुन बेंदरा भलुवा बन के कइसन नाचथे ओखरे धुन चारा के रहत ले चरिस अब बोकरा कोन मेर हे

अपने डहर मा रेंग तैं

अपने डहर मा रेंग तैं, काटा खुटी ला टार के । कोशिश करे के काम हे, मन के अलाली मार के ।। जाही कहां मंजिल ह गा, तोरे डगर ला छोड़ के । तैं रेंग भर अपने डगर, काया म मन ला जोड़ के ।।

‘मोर गजानन स्वामी बिराजे हे‘ mp3

मोर ये गीत ला स्वर दे हे- -प्रेम पटेल ये गीत ला सुने बर ये लिंक मा जावव- ➤ ‘मोर गजानन स्वामी बिराजे हे‘

‘आजा मोरे अँगना‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल अउ स्वाती सराफ ‘आजा मोरे अँगना‘ ये गीत ला सुने बर ये लिंक मा जावव- ➤ ‘आजा मोरे अँगना‘

‘गढ़ बिराजे हो मइया‘mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल अउ स्वाती सराफ ये गीत ला सुने बर ये लिंक मा जावव- ➤‘गढ़ बिराजे हो मइया‘

‘भादो के महिना‘mp3

‘भादो के महिना‘  कृष्ण जन्म के ये भजन झपताल म आबद्व हे ।  छत्तीसगढ़ी म शास्त्रीय संगीय गायन बहुते सुग्घर हे- मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल  ⇩⇩⇩⇩⇩⇩⇩  सुने बर  येला चपकव- भजन-भादो के महिना

‘हे महामाई दया कर‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल  ‘हे महामाई दया कर‘ ये गीत ला सुने बर ये लिंक मा जावव- ➤ हे महामाई दया कर

‘जगमग-जगमग जोत जलत हे‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल ‘जगमग-जगमग जोत जलत हे‘ https://drive.google.com/open?id=0B_vVk5gISWv3QjhIVmxKSzc3RXM ‘जगमग-जगमग जोत जलत हे‘

‘टाँठ-टाँठ जिन्स पेंट पहिरे‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल अउ स्वाती सराफ ‘टाँठ-टाँठ जिन्स पेंट पहिरे‘ https://drive.google.com/open?id=0B_vVk5gISWv3Ui1DdEtqM1MzQnM

‘छत्तीसगढ़ ला कहिथे भैया‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल अउ स्वाती सराफ ‘छत्तीसगढ़ ला कहिथे भैया‘ https://drive.google.com/open?id=0B_vVk5gISWv3bDUwNnVma0NKMWM

मउत

मउत ह करिया बादर बन चौबीस घंटा छाये हे कभू सावन के बादर बन खेत खार ला हरियावय फल-फूल अन्न-धन्न  उपजाके जीव-जीव ला सिरजावय कभू-कभू गाज बनके आगी ल बरसाये हे ओही बादर ला देख मनखे झूमय नाचय आगी कस दहकत घाम ले मनखे-मनखे बाचय गुस्सा मा जब बादर फाटय पर्वत घला बोहाये हे एक बूँद बरसे न जब बादर चारो कोती हाहाकार मचे हे सृष्टि के हर अनमोल रचना ये चक्कर ले कहां बचे हे आवत-जावत करिया बादर सब ला नाच नचाये हे

मन के परेवना

मन के परेवना उड़ी-उड़ी के दुनिया भर घूमत हे ठोमहा भर मया होतीस सुकुन के पेड़ जेन बोतीस लहर लहर खुषी के लहरा तन मन ला मोर भिगोतीस आँखी मा सपना देखी-देखी के अपने तकिया चूमत हे अरझे सूत ला खोलत-खोलत अपने अपन मा बोलत-बोलत जीनगी के फांदा मा फसे चुरमुरावत हे डोलत-डोलत अपने हाथ ला चाब-चाब के अपने आँखी ला घूरत हे

गीत कोयली लीम करेला

गीत कोयली लीम करेला कउवा बोली आमा उत्ती के सुरूज, बुड़ती उवय बुड़ती के सुरूज उत्ती बुड़य मनखे नवा सोच ला पाये शक्कर मा मिरचा ला गुड़य होगे जुन्ना हा, जहर महुरा आये नवा जमाना डिलवा डिलवा डबरा होगे डबरा डबरा बिल्डिंग पोगे कका बबा के संगे छोड़े दाई ददा हा अलग होगे । माचिस काड़ी छर्री-दर्री समाही अब कामा झूठ लबारी उज्जर दिखय अंधरा मन इतिहास लिखय अपन भाषा हा पर के लागय पर के भाषा मनखे मन सीखय खड़े पेड़ ला टंगिया मा काटय बोये नवा दाना

अंधियारी मेट दे

(गीतिका छंद) ठान ले मन मा अपन तैं, जीतबे हर हाल मा । जोश भर के नाम लिख दे, काल के तैं गाल मा । नून बासी मा घुरे कस, दुख खुशी ला फेट दे । एक दीया बार के तै, अंधियारी मेट दे ।

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