मनखे काबर करय दुख, भूला के बिसवास।
दुख के भीतर हवय सुख, इही जगत के आस ।।
इही जगत के आस, रिकोथे तेन समोथे ।
हमर कहां अवकात, सबो ओही पुरोथे ।।
घट घट जेखर वास, कोन ओला परखे ।
छोड़ संसो चिंता, करम भर कर मनखे।।
...........‘रमेश‘.................
छत्तीसगढ़ी भाषा अउ छत्तीसगढ़ के धरोहर ल समर्पित रमेशकुमार सिंह चौहान के छत्तीसगढ़ी छंद कविता के कोठी ( rkdevendra.blogspot.com) छत्तीसगढ़ी म छंद विधा ल प्रोत्साहित करे बर बनाए गए हे । इहॉं आप मात्रिक छंद दोहा, चौपाई आदि और वार्णिक छंद के संगेसंग गजल, तुकांत अउ अतुकांत कविता पढ़ सकत हंव ।
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