सार छंद कोरोना के कहर देख के, डर हमला लागे । गाँव-गाँव अउ शहर-शहर मा, कोराना हा छागे ।। सब ला एके दिन मरना हे, नहीं मरब ले डर गा । फेर मरे के पाछू मरना, मन काँपे थर-थर गा काठी-माटी हा बिगड़त हे, कोनो तीर न जावय । पिण्डा-पानी के का कहिबे, कपाल क्रिया न पावय ।। धरम-करम हे जियत-मरत के, काला कोन बतावय । अब अंतिम संस्कार करे के, कइसे धरम निभावय ।। कभू-कभू तो गुस्सा आथे, शंका मन उपजाथे । बीमारी के करे बहाना, बैरी हा डरूवाथे ।। बीमरहा हे जे पहिली ले, ओही हर तो जाथे । बने पोठलगहा मनखे मन, येला मार भगाथे । हमरे संस्कार रहय जींदा, मरे म घला सुहाथे ।। -रमेश चैहान
समृद्ध बस्तर, शोषित बस्तर- श्रीमती शकुंतला तरार
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श्रीमती शकुंतला तरार,एक ऐसी कवयित्री जो बस्तर में जन्मीं और बस्तर को ही
अपनी कलम का केन्द्र बनाया।सोचिए — जिस धरती पर जन्म हुआ, उसी पर इतनी गहराई
से लिखा क...
1 दिन पहले