सार छंद
गाँव-गाँव अउ शहर-शहर मा, कोराना हा छागे ।।
सब ला एके दिन मरना हे, नहीं मरब ले डर गा ।
फेर मरे के पाछू मरना, मन काँपे थर-थर गा
काठी-माटी हा बिगड़त हे, कोनो तीर न जावय ।
पिण्डा-पानी के का कहिबे, कपाल क्रिया न पावय ।।
धरम-करम हे जियत-मरत के, काला कोन बतावय ।
अब अंतिम संस्कार करे के, कइसे धरम निभावय ।।
कभू-कभू तो गुस्सा आथे, शंका मन उपजाथे ।
बीमारी के करे बहाना, बैरी हा डरूवाथे ।।
बीमरहा हे जे पहिली ले, ओही हर तो जाथे ।
बने पोठलगहा मनखे मन, येला मार भगाथे ।
हमरे संस्कार रहय जींदा, मरे म घला सुहाथे ।।
-रमेश चैहान
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें