अमृतध्वनि-कुण्डलियां
कतका दुकला हे परे, दुल्हा मन के आज ।
पढ़े लिखे बाबू खिरत, आवत मोला लाज ।।
आवत मोला, लाज बहुत हे, आज बतावत ।
दस नोनी मा, एके बाबू, पढ़ इतरावत ।।
बाबू मन हा, पढ़े नई हे, नोनी अतका ।
बाबू मन ला, काम-बुता के, चिंता कतका ।।
चिंता कतका आज हे, देखव सोच बिचार ।
टूरा पढ़ई छोड़थे, बारहवी के पार ।
बारहवी के पार, पढ़य ना टूरा जादा ।
पढ़े-लिखे बेगार, आज आधा ले जादा ।
मन मा अइसे सोच, पढ़य ना बाबू अतका ।
करथे कुछु भी काम, धरे हे चिंता कतका ।।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें