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संदेश

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कतका झन देखे हें-

हाथ बर कामे मांगव

मांगय अब सरकार ले, केवल हाथ म काम । येमा-वोमा छूट ले, हमर चलय ना काम । हमर चलय ना काम, हाथ होवय जब खाली । बिना बुता अउ काम, हमर हालत हे माली ।। सुनलव कहय रमेश, कटोरा खूंटी टांगव । छोड़व फोकट छूट, हाथ बर कामे मांगव ।।

नई चाही कुछ फोकट

फोकट मा तो  खाय बर, छोड़व यार मितान । हमर आड़ मा देश के, होत हवय नुकसान ।। होत हवय नुकसान, देश के नेता मन ले । फोकट के हर एक, योजना ला तैं गन ले ।। देथें पइसा चार, हजारों खाथें टोकत । हमला चाही काम, नई चाही कुछ फोकट ।।

आंगा-भारू लागथे

आंगा-भारू लागथे, हमरे देश समाज । समझ नई आवय कुछुच, का हे येखर राज ।। का हे येखर राज, भरे के अउ भरते हे । दुच्छा वाले आज, झरे ऊँपर झरते हे ।। सोचत हवे ‘रमेश‘, जगत हे गंगा बारू । माने मा हे देव, नहीं ता आंगा-भारू ।।

गलती ले बड़का सजा

लगे काम के छूटना, जीयत-जागत मौत । गलती ले बड़का सजा, भाग करम के सौत ।। भाग करम के सौत, उठा पटकी खेलत हे । काला देवय दोष, अपने अपन  झेलत हे ।। ‘रमेश‘ बर कानून, न्याय बस हवय नाम के । चिंता करथे कोन, कोखरो लगे काम के ।।

बनय जोड़ी हा कइसे

कइसे मैं हर करव, बेटी के ग बिहाव । बेटी जइसे छोकरा, खोजे ल कहां जांव । खोजे ल कहां जांव, कहूं ना बने दिखे गा । दिखय न हमर समाज, छोकरा पढ़े लिखे गा । नोनी बी. ई. पास, मिलय ना टूरा अइसे । टूरा बारा पास, बनय जोड़ी हा कइसे ।।

बादर पानी मा कभू

बादर पानी मा कभू, चलय न ककरो जोर । कब होही बरखा इहां, जानय वो चितचोर ।। जानय वो चितचोर, बचाही के डूबोही । वोही लेथे मार, दया कर वो सिरजोही । माथा धरे रमेश, छोड़ बइठे हे मादर । कइसे करय उमंग, दिखय ना पानी बादर ।।

कहत हे पानी टपकत

टपकत पानी बूंद ला, पी ले तैं खोल । टपकत पानी बूंद हा, खोलत हावे पोल । खोलत हावे पोल, नदानी हमरे मन के । नरवा नदिया छेक, बसे हे मनखे तन के ।। पाटे कुॅवा तलाब, बोर खनवाये मटकत । सुख्खा होगे बोर, कहत हे पानी टपकत ।।

नाम ओखर हे ममता

ममता चंद्राकरजी ला पद्मश्री से सम्मानित होय बर गाड़ा-गाड़ बधाई - ममता दी के मान ले, माथा ऊंचा होय । छत्तीसगढ़ी बर इहां, जेने मही बिलोय ।। जेने मही बिलोय, घीव ला बांटे घर-घर । लता कोयली होय, गीत ला गाये झर-झर ।। छत्तीसगढ़ी आन, रखे हे अपने क्षमता । जेन हमर पहिचान, नाम ओखर हे ममता । -रमेश चौहान

गुरूवर घासी दास के

गुरूवर घासी दास के, अंतस धर संदेश । झूठ लबारी छोड़ के, सच सच बोल ‘रमेश‘ ।। सच सच बोल ‘रमेश‘, आच सच ला ना आये । मनखे मनखे एक, बात गुरू बबा बताये । जहर-महूरा दारू, जुवा चित्ती हे फासी । अइसन चक्कर छोड़, कहे हे गुरूवर घासी ।।

मुखिया

ये मुखिया के नाम मा, मुखिया के सब भाव । मुॅह होथे जस देह मा, मुखिया ओही ठांव ।। मुखिया ओही ठांव, जिहां तो सबो थिराये । कुकुर बिलइ अउ गाय, सबो ला एके भाये ।। सुन लव कहे ‘रमेश‘, रहय मत कोनो दुखिया । जर होथे जस पेड़, होय संगी ये मुखिया ।।

संत कइसे तैं माने

लेथस साग निमार के, दू पइसा के दाम । बीज घला बोये हवस, सूखा के तैं घाम । सूखा के तैं घाम, बने घिनहा ला जाने । बिना बिचारे फेर, संत कइसे तैं माने ।। आस्था अपन निकाल, बिना परखे तै देथस । धरम करम के नाम, बिना सोचे कर लेथस ।।

बाबा बनहू

बेटा का बनबे बाढ़ के, पूछेंव एक बार । सोच समझ के तैं बता, कइसे होबे पार ।। कइसे होबे पार, जगत के मझधारे ले । तन मन सुघ्घर होय, अपन चिंता मारे ले ।। बेटा बने सियान, कहय गा छोड़ चपेटा । बाबा बन के नाम, कमाही तोरे बेटा ।।

मोर मितान

हर सुख दुख मा साथ रहय, संगी मोर मितान । जानय मन के भेद ला, मोला गढ़े महान । मोला गढ़े महान, हाथ धर रेंगय आघू । जब भटकय मन मोर, रखय समझाय अगाघू ।। सुनलव कहय ‘रमेश‘, मिताने हा समझे हर दुख । संगी बिना बेकार, लगय जीवन के हर सुख ।। -रमेश चौहान

कविता

उभरे जब प्रतिबिम्ब हा, धर आखर के रूप । देखावत दरपण असन, दुनिया के प्रतिरूप ।। दुनिया के प्रतिरूप, दोष गुण ला देखाये । कइसे हवय समाज, समाजे ला बतलाये ।। सुनलव कहय ‘रमेश‘, शब्द जब घाते निखरे । मन के उपजे भाव, तभे कविता बन उभरे ।।2।।

कलाम ला सलाम

सुनले आज कलाम के, थोकिन तैं हर गोठ । जेन करे हे देश बर, काम बने तो पोठ ।। काम बने तो पोठ, करे हे ओ हमरे बर । बने मिसाइल मेन, बने ओ हमरे रहबर ।। षिक्षक बने महान,  ओखरे शिक्षा चुनले । हमरे भारत रत्न, रहिस शिक्षाविद सुुनले ।।         -रमेश चौहान

मुड धर कविता रोय

स्रोता बकता देख के, मुड धर कविता रोय । सुघ्घर कविता के मरम, जानय ना हर कोय ।। जानय ना हर कोय, अपन ओ जिम्मेदारी । दूअरथी ओ बोल, देत मारे किलकारी ।। ओखर होथे नाम, जेन देथे बड़ झटका । सुनत हवे सब हाॅस, मंच मा स्रोता बकता । आनी बानी गोठ कर, देखावत हे ठाठ एक गांठ हरदी धरे, मुसवा बइठे हाठ ।। मुसवा बइठे हाठ, भीड़ ला बने सकेले । जेखर बल ला पाय, होय बइला हूबेले ।। छटे सबो जब भीड़, फुटय ना मुॅह ले बानी । एके ठन हे गांठ, कहां हे आनी बानी ।। जइसे ओखर नाम हे, दिखे कहां हे काम । कड़हा कड़हा बेच के, पूरा मांगे दाम ।। पूरा मांगे दाम, अपन लेवाल ल पाये । मिलावटी हे झार, तभो सबला भरमाये ।। चिन्हे ना सब सोन, सोन पालिस हे कइसे । बेचे से हे काम, बेचा जय ओहर जइसे ।।

भारत माता तोर तो, परत हवन हम पांव

भारत माता तोर तो, परत हवन हम पांव । देवत रहिबे जियत भर, सुख अचरा के छांव ।। सुख अचरा के छांव, हमर मुड़ ढांके रहिबे । हमन हवन नादान, हमर गलती का कहिबे ।। कोरा मा हन तोर, हमर रखबे तैं बाता । लइका हन हम तोर, हमर तैं भारत माता । महतारी तैं तो हवस, सुख षांति के खान । कहां सृष्टि मा अउ हवय, तोरे असन महान ।। तोरे असन महान, जिहां जमुना गंगा हे । कहां हिमालय चोटि , जिहां कंचन जंगा हे ।। राम रहिम इक संग, करत तो हे बलिहारी ।। करत हवे जयकार, तोर जय हो महतारी ।। तोरे सेवा ला करत, जेन होय कुर्बान । लड़त लड़त तोर बर, गवाय जेन परान ।। गवाय जेन परान, वीर सेना के सेनानी । अइसन तोर सपूत, जेन दे हे कुर्बानी ।। सबो शहिद के पांव, परत हन हाथे जोरे । माथा अपन मढ़ाय, पांव मा दाई तोरे ।।

सुन सुन ओ पगुराय

धर मांदर संस्कार के, तैं हर ताल बजाय । भइसा आघू बीन कस, सुन सुन ओ पगुराय ।। सुन सुन ओ पगुराय, निकाले बोजे चारा । दूसर बाचा मान, खाय हे ओ हर झारा ।। परदेषिया भगाय, हमर पुरखा हा मर मर । ओमन मेछरावत, ऊंखरे बाचा ला धर ।।

ठाने हन हम छोकरी

दुरगा चण्ड़ी के देस मा, नारी हवय महान । करत हवे सब काम ला, अबला झन तैं जान ।। अबला झन तैं जान, पुरूस ले अब का कम हे । देख ओखरे काम, पुरूस जइसे तो दम हे ।। धरती ले आगास, जेन लहराये झण्ड़ी । सेना पुलिस काम, करे बन दुरगा चण्ड़ी ।।  ठाने हन हम छोकरी, करना हे हर काम । माने जेला छोकरा, केवल अपने नाम ।। केवल अपने नाम, जगत मा हे अब करना । नई हवे मंजूर, पांव के दासी रहना ।। चार दुवारी छोड़, जगत ला अपने माने । कठिन कठिन हर काम, करे बर हम तो ठाने ।।

राम कथा -राम मनखे काबर बनीस

मनखे मनखे सब सुनय, राम कथा मन लाय । कहय सुनय हर गांव मा, मनखे मन हरसाय ।। मनखे मन हरसाय, राम के महिमा सुन सुन । जागे एक सवाल, मोर मन मा तो सिरतुन ।। खोजव बने जवाब, जेन जाने हव तनके । भवसागर मा राम, बने हे काबर मनखे ।। हेतु अनेका जनम के, कोनो कहय विचार । विप्र धेनु अरू संत हित, लिन्ह मनुज अवतार ।। लिन्ह मनुज अवतार, विजय जय ला तारे बर । मेटे बर तो पाप, रावणे ला मारे बर ।। नारद के ओ श्राप, घला हा बने लपेटा । काला कहि हम ठोस, जनम के हेतु अनेका ।। सतजुग त्रेता के कथा, तैं हर सबो सुनाय । कलजुग मा का काम के, कारण जेन बताय ।। कारण जेन बताय, देख ओला आंखी ले । चलत हवे विज्ञान, खोजथे सब साखी ले ।। येही जुग के नाम, हवय गा पापी कलजुग । खाय तभे पतिआय,  कहां बाचे हे सतजुग ।। मरयादा ला राम हा, जी  के तो देखाय । जइसे के विज्ञान हा, कारण देत जनाय ।। कारण देत जनाय, बने ओ काबर मनखे । मनखे के मरजाद, बनाये हे छन छन के ।। कसे कसौटी देख, राम के हर वादा । मनखे कइसे होय, होय कइसे  मरयादा ।। कारण केवल एक हे, जेखर बर ओ आय । मनखे बन भगवान हा, मनखे ला सीखाय ।। मनखे ला सीखाय, होय मनखे

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