कोरोना के डंस, लॉकडाउन के चाबे (छप्पय छंद) ये कोरोना रोग, लॉकडाउन ला लाये । रोजी-रोटी काम, हाथ ले हमर नगाये ।। रोग बड़े के दोख, सबो कोती ले मरना । जीना हे जब पोठ, रोग ले अब का डरना ।। कोरोना के ये कहर, काम-बुता ला तो छिने । बिना रोग के रोग मा, मरत ला कोन हा गिने ।। गिनत हवय सरकार, दिखय जेने हा आँखी । गिनय कोन गा आज, झरे कतका के पाँखी ।। कोरोना के डंस, लॉकडाउन के चाबे । खाली होगे हाथ, गीत काखर तैं गाबे ।। बिन पइसा के जिंनगी, मछरी तरिया पार के । जीना-मरना एक हे, पइसा बिन परिवार के । देवय कोने काम, काम चाही जी हम ला । काम नहींं ना दाम, कोन देखावय दम ला । अटके आधा सॉस, लॉकडान के मारे गा । डोंगा हे मझधार, कोन हम ला अब तारे गा ।। कोरोना के फेर मा, हमर लुटा गे नौकरी । काम चलाये बर हमर, बेचागे सब बोकरी ।।
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
2 दिन पहले