कोरोना के डंस, लॉकडाउन के चाबे
(छप्पय छंद)
ये कोरोना रोग, लॉकडाउन ला लाये ।
रोजी-रोटी काम, हाथ ले हमर नगाये ।।
रोग बड़े के दोख, सबो कोती ले मरना ।
जीना हे जब पोठ, रोग ले अब का डरना ।।
कोरोना के ये कहर, काम-बुता ला तो छिने ।
बिना रोग के रोग मा, मरत ला कोन हा गिने ।।
गिनत हवय सरकार, दिखय जेने हा आँखी ।
गिनय कोन गा आज, झरे कतका के पाँखी ।।
कोरोना के डंस, लॉकडाउन के चाबे ।
खाली होगे हाथ, गीत काखर तैं गाबे ।।
बिन पइसा के जिंनगी, मछरी तरिया पार के ।
जीना-मरना एक हे, पइसा बिन परिवार के ।
देवय कोने काम, काम चाही जी हम ला ।
काम नहींं ना दाम, कोन देखावय दम ला ।
अटके आधा सॉस, लॉकडान के मारे गा ।
डोंगा हे मझधार, कोन हम ला अब तारे गा ।।
कोरोना के फेर मा, हमर लुटा गे नौकरी ।
काम चलाये बर हमर, बेचागे सब बोकरी ।।
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