हर जात ले, हर धर्म ले, आघू खड़े, ये देश ।
हे मोर ले, अउ तोर ले, बड़का बड़े, ये देश ।।
सम्मान कर, अभिमान कर, तैं भुला के, खुद क्लेष ।
ये मान ले, अउ जान ले, हे तोर तो, ये देश ।।
विरोध करव, सरकार के, जनतंत्र मा, हे छूट ।
पर देश के, तै शत्रु बन, सम्मान ला, झन लूट ।।
पहिचान हे, अभिमान हे, हमर सैनिक, हे वीर ।
अपन धरती, अउ देश बर, डटे रहिथे, धर धीर ।।
-रमेश चौहान
हे मोर ले, अउ तोर ले, बड़का बड़े, ये देश ।।
सम्मान कर, अभिमान कर, तैं भुला के, खुद क्लेष ।
ये मान ले, अउ जान ले, हे तोर तो, ये देश ।।
विरोध करव, सरकार के, जनतंत्र मा, हे छूट ।
पर देश के, तै शत्रु बन, सम्मान ला, झन लूट ।।
पहिचान हे, अभिमान हे, हमर सैनिक, हे वीर ।
अपन धरती, अउ देश बर, डटे रहिथे, धर धीर ।।
-रमेश चौहान
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें