माघ के उतरति म अऊ बेरा के बूडती म, मेघा काबर छाय हे ये बसंत बर काबर मंतियायें हे । लूहूर तूहूर अपन बिदाई म आसू बहावत हे, सुरूर सुरूर पुरवाही ओखर साथ निभावत हे । अभी बरफ ह बरोबर टघले नईये, ओला ये फेर काबर जमाय है । अभी अभी लइका के दाई सेटर ल संदूक म धरे हे, तेला ये बादर रोगहा फेर निलकलवाये बर परे हे । ओनाहारी अभीच्चे फूल धरे हे तेंला ये काबर झर्राय हे । सुघ्घर सपना देखत किसान ल हिलोर के काबर जगायें है। सावन भादों जब ऐखर जरूरत रहिस त अब्बड़ तरसाये हे । आज चनामन के माते हे फूल तेन ल झर्रायेबर आये हे । जइसे गांव के गौटिया काम म पइसा नई देवय, अऊ अपन काम बर फोकट म दारू पियाये हे । ये बादर काम बर ठेंगा देखायें हे, अऊ आज फोकट के बरसाय हे । ...................‘‘रमेश‘‘.........................
“बाबा विश्वैश्वर नाथ की महिमा”-अर्जुन दूबे
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(उपरोक्तत आलेख मान्यता के आधार पर मेरे गांव के गाँव के ब्रह्मलीन बाबा
विश्वैश्वर नाथ के प्रति सम्मान सहित संस्मरण है।-प्रोफेसर अर्जुन दूबे) मैं
जिसकी महिमा...
2 हफ़्ते पहले