सिक्षा सिक्षा ये विदेशी सिक्षा से का होय ।
न कौढी के न काम के घुम घुम के बदनाम होय ।।
न ओला पुरखा के मान हे न देश धरम के ज्ञान ।
विदेसी सिक्षा लेवत हे अऊ विदेसी संस्कृति के अभिमान ।।
दाई-ददा मोर लईका पढथ हे कहिके नई कराव कुछु काम ।
नान्हेपन ले जांगर नई चलाय हे अब कोन जांगर ले होही काम ।।
पूजा-पाठ, कथा-भागवत सब ल देवत हे अंधविश्वास के नाम ।
लईका पढिस लिखिस अऊ होगें कइसन ओ हर विदवान ।।
पागे कहु नौकरी चाकरी त होगे परदेशिया नई आवय कुछु काम
न पाइंच कहु काम धाम त परबुधिया होके होवथ हे बदनाम ।।
गांव-गांव अऊ गली-गली नेता अऊ ऊखर चम्मच के भरमार हे
जेन कहावय भाई-दादा जेखर करम ले ये देश शरमसार हे ।।
सिरतुन कहव चाहे कोनो गारी देवव के गल्ला ।
इंकरे आये ले होवत हे भ्रष्टाचार के अतका हल्ला ।।
................‘‘रमेश‘‘........................
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