गोड के साटी नंदा गे, हाथ के चुरी हरागे, मुड़ी के चुंदी कटागे, अब टूरी मन के । माथा के टिकली हर, नाक मा उतर गे हे, कुतर दे हे चेंदरा, मुसवा फेसन के ।। पहिने हे टिप टाप, छोटे-छोटे छांट-छांट, मोबाइल धरे हाथ, गोठ लमावत हे । तन आधा हे उघरा, मुॅह मा तोपे चेंदरा, सरर सरर कर, गाड़ी चलावत हे ।।
लघु व्यंग्य आलेख: चित्र अथवा फोटो की सार्थकता
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प्रेम कहें, आकर्षण कहें या मोहित हो जाना कहें — आखिर यह होता क्यों है?महान
कवि कालिदास की नाट्य रचना ‘मालविकाग्निमित्र’ की कथा पढ़ते हुए मन में यह
विचार उत...
11 घंटे पहले