चारे मछरी के मरे, तरिया हा बस्साय । बने बने भीतर हवय, बात कोन पतियाय ।। सच ठाढ़े अपने ठउर, घूमय झूठ हजार । सच हा सच होथे सदा, झूठ सकय ना मार ।। बुरा बुरा तैं सोचथस, बुरा बुरा ला देख । बने घला तो हे इहां, खोजे मा अनलेख ।। अपन करम ला सब करव, देखव मत मिनमेख । देखे मा गलती दिखय, तोरे मा अनलेख ।। जइसे होथे सोच हा, तइसे होथे काम । स्वाभिमान राखे रहव, होही तोरे नाम ।।
पुस्तक:छत्तीसगढ़ी काव्यकाव्य एक वृहंगम दृष्टि- रामेश्वर शर्मा
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क्यों पढ़ें यह पुस्तक छत्तीसगढ़ी काव्य: एक विहंगम दृष्टि छत्तीसगढ़ की
साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल संग्रह है, जो पाठकों को इस
क्षेत्र की समृद्...
2 दिन पहले