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संदेश

कतका झन देखे हें-

दाेहा के मरम

कविता के हर शब्द मा, अनुशासन के बंद । आखर आखर के परख, गढ़थे सुघ्घर छंद ।। चार चरण दू डांड़ के, होथे दोहा छंद । तेरा ग्यारा होय यति, रच ले तै मतिमंद ।। विषम चरण के अंत मा, रगण नगण तो होय । तुक बंदी  सम चरण रख, अंत गुरू लघु होय ।। समुदर ला धर दोहनी, दोहा हा इतराय । अंतस बइठे जाय के, अपने रंग जमाय ।। बात बात मा बात ला, मनखे ला समझाय । दोहा अइसन छंद हे, जेला जन जन भाय ।। दोहा हिन्दी साहित्य के, बने हवय पहिचान । बीजक संत कबीर के, तुलसी मानस गान ।। छत्तीसगढ़ी मा घला, दोहा के हे मान । धनीधरम जी हे रचे, जाने जगत जहान ।। विप्र दलित मन हे रचे, रचत हवे बुधराम । अरूण निगग ला देख ले, रचत हवय अविराम  ।। बोली ले भासा गढ़ी, रखी सोच ला रोठ । शिल्प विधा मा हम रची, जुर मिल रचना पोठ ।। अनुसासन के पाठ ले, बनथे कोनो छंद । देख ताक के शब्द रख, बन जाही मकरंद ।। छोट बुद्धि तो मोर हे, करत हंवव परयास । चतुरा चतुरा बड़ हवय, लाही जेन उजास ।।

मया के रंग

लुहुर तुहुर मोरे मन होगे,तोरे बर रुझवाये । तोरे मुच मुच हँसना गोरी, मोला गजब सुहाये। बैइही बरन मोला लागे, सुन सुन भाखा तोरे । मया घोरे बोली हा तोरे, चिरे करेजा मोरे । कारी कारी चुन्दी तोरे, बादर बन के छाये । झाकत तोरे मुखड़ा गोरी, मोला बड़ भरमाये । आँखी आँखी म मया बोरे, अँखिया बाण चलाये । घायल हिरणीया मन मोरे, तड़प तड़प मर जाये ।। मोरे मन हा अंतस तोरे, बुड़े मया के दहरा । लहर लहर कतका लहराये, तोर मया के लहरा ।। तोर मया मा मन हा रंगे, जइसे दूध म पानी । तैं हर मोरे मन के राजा, मैं हर तोरे रानी ।।

नारी ले घर परिवार हे

//दोहा मुक्तक// 1. बड़ आंगा-भारू लगय, मनखे के संसार । पहिली नर भारी लगिन, अब तो लगथे नार ।। जेन सुवारी हा कहय, होथे ओही काम । जावर जीयर संग मा,बइठे अलगे डार । 2. बरगद हा छतनार हे, डारा पाना संग । गूॅथे माला फूल ले, मन मा भरे उमंग ।। लकड़ी गठरी पोठ हे, बंधे एके डोर । बसव एक परिवार मा, घोर मया के रंग ।। 3. नारी ले घर परिवार हे, नारी ले संसार । चाहे ओ उबार लय, के बोरय मझधार । नारी चाहय जोर लय, चाहय देवय टोर । बांध धरव ये गोठ ला, बेटी बहू हमार । 4. पोथी पतरा तैं पढ़े, पढ़े नही संस्कार । बने बनय कइसे तुहर, सास ससुर ससुरार ।। लइका बच्चा अउ धनी, अतके मा भूलाय । अइसन मा कइसे भला, बनही घर परिवार ।। 5. अलग अलग हे अंगरी, एक हाथ के तोर । तभो तोर ओ हाथ हे, राखे का तैं टोर ।। गुण अवगुण सब मा भरे, देखव सोच विचार । काबर मइके मा हवस, अपन धनी ला छोड़ ।। 6. पथरा मा मूर्ति गढ़व, जइसे तोरे सोच । साज सजावट कर बने, माथा कलगी खोच ।। जन्मजात तो पाय हव, हुनर गढ़े के झार । छिनी हथौड़ी हाथ धर, धीरे धीरे टोच ।।

जय जय किसान

छबि छंद 8 मात्रा पदांत 121 धरती हमार । तैं हर सवार हमरे मितान । आवस किसान कर ले न चेत । जाके ग खेत जांगर ल टोर । माटी म बोर ओ खेत खार । धनहा कछार बसथे ग जान । बाते ल मान नांगर ल जोत । तन मन ल धोत अर अर तता त । अर  अर तता त उबजहि ग धान । सीना ल तान घात लहरात । घात ममहात पीरा ल मेट । भरही ग पेट जांगर तुहार । जीवन हमार गाबो ग गीत । तैं हमर मीत जय जय किसान । तैं ह भगवान

मया करले

म या करले (सुगती छंद) मया करले । मन म भरले तोर हॅव मैं । मोर हस तैं तोर हॅसना । मोर फॅसना मोर हॅसना । तोर फॅसना करे बइहा । मया दइहा अलग रहिबे । दुख ल सहिबे संग रहिबो । सब ल सहिबो हमन तनके । रहब मनके आव अॅगना । पहिर कॅंगना नाम धरके । मांघ भरके -रमेश चौहान

मया मा मिले भगवान

भाखा तै अपन तोल । सोच समझ फेर बोल एक गोठ करे घाव । दूसर जगाये चाव कोयली के हे नाम । कउवा हवे बदनाम करू कस्सा तैं छोड़ । मीठ ले नाता जोड़ गोठ सुन बैरी होय । संगी कहाये जोय अनचिन्हार हे गांव । काबर तैं करे कांव तैं गुरतुर बने बोल । अपने करेजा खोल रूख राई घला तोर । बोले जब मया घोर खोजे मया इंसान । मया म मिले भगवान मया बनाये महान । मया बिन तै शैतान

अइसन बैरी ला झारव

त्रिभंगी छंद, कुछ संगी बहके, अड़बड़ चहके, बाचा बैरी के माने । चढ़े जेन डारा, धर के आरा, काटत हे छाती ताने ।। हे आघू बैरी, पाछू बैरी, दूनो झन ला, तुम मारव । तुम अपन देश बर, अपन टेश बर, अइसन बैरी ला झारव ।।

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