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कतका झन देखे हें-

होरी गीत

होरी गीत(सार छंद)  होरी हे होरी हे होरी, रंग मया के होरी । अपन मया के रंग रंग दे, ये बालम बरजोरी ।। मया बिना जग सुन्ना लागे, जइसे  घर धंधाये । जतका रंग मया के होथे, मन मा मोर समाये ।। कतका दिन ले आरूग राखॅव, मया चबेना होगे । काली के फूल डोहड़ी हा, फूल कैयना होगे । मन के दरपण तैं हा बइठे, करे करेजा चोरी । होरी हे होरी हे होरी ........ साटी बिछिया खिनवा मोरे, दिन रात गोहराये । ऑंखी के आंजे काजर हा, मोही ला भरमाये ।। कतका दिन के रद्दा जोहत, बेरा अइसन आये । राधा के बनवारी कान्हा, बसुरी आज बजाये ।। ये मोरे तैं करिया बिलवा, रंग मोर मुॅह गोरी । होरी हे होरी हे होरी......

सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक

बड़े आदमी कोन हे, सोचे के हे बात । बात धरे हे एक झन, एक सुने बिन जात । जात एक रद्दा अपन, दूसर अंते जाय । जाय नही अइसन डहर, मनखे जेन बनात । छत्तीसगढ़ी बोल हे, बोरे-बासी भात । भात हमन ला घात हे, हमर पेट भर जात ।। जात जात के खाव मत, तोर पिराही पेट । पेट भरे बर सोच मत, खा ले बासी भात ।।

दरत हवय छाती मा कोदो

दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई । हमरे घर मा संगे रहिके, मुॅह ले फोरय लाई ।। कोड़त हावे घर के भिथिया, हाथ धरे ओ साबर । ऐही घर मा पले बढ़े हे, बैरी होगे काबर ।। बात परोसी के माने हे, घर मा कोड़े खाई । दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई । हम जेला तो आमा कहिथन, ओ हर कहिथे अमली । घात करे बर बइठे रहिथे, ओढ़े ओ हर कमली । जुझय नही ओ बैरी मेरा, घर मा करे लड़ाई  । दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई । अपने घर ला फोर खड़े हे, तभो कहय मैं बेटा । मुॅह मा ओखर आगी लागे, घर हा फसे चपेटा । करे हवय ये बारे आगी, बैरी के अगुवाई । दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई । बेटा ओ तो ओखर  आवय, ये घर जेन बसाये । काखर फांदा फस के वो हर, आगी इहां लगाये । दाई के अचरा छोड़े अब, माने ना वो दाई । दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई । दाई के आॅखी ले झरथे, झरर झरर अब पानी । सहत हवे अंतस मा पीरा , सुन सुन जहर जुबानी । देख सकव ता देखव बेटा, दाई तोरे अकुलाई । दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई ।

झूमरत गावय फाग

परसा फूले खार मा, आमा मउरे बाग । देखत झूमय कोयली, छेड़े बसंत राग ।। महुॅवा माते राग मा, नाचय सरसो फूल । मनखे मनखे गांव मा, झूमरत गावय फाग ।।

चाह करे मा राह हे

हाथ गोड़ सब मारथे, रखे जिये के चाह । चाह करे मा राह हे, ले नदिया के थाह ।। थाह हार के हे कहां, जब मन जावय हार । हार हारथे चाह ले, चाहत मेटय दाह ।।

आवय हमला लाज

मनखे मनखे जोर लव, अपने दिल के साज । साज बाज अइसे गढ़व, होवय सबके काज ।। काज एक जुरमिल करव, गढ़व देश के मान । मान जाय मा देश के, आवय हमला लाज ।

नाचत गात मनावत होरी (सवैया)

नाचत गात मनावत होरी (सवैया) ढोलक मादर झांझ बजावत हाथ लमावत गावत फागे। मोहन ओ छलिया नट नागर रास रचावव रंग जमाके । आवव आवव भक्त बुलावत। गावत फाग उडावत रोरी । फागुन मा रसिया रस लावत नाचत गात मनावत होरी ।। हे सकलावत आवत जावय छांट निमार बनावत टोली । भांग धरे छलकावत जावत बांटत बांटत ओ हमजोली। रंगत संगत के दिखथे जब रंग लगाय करे मुॅह-जोरी छोट बड़े सब भेद भुलावत नाचत गात मनावत होरी ।। हाथ धरे पिचका लइका मन रंग भरे अउ मारन लागे । आवय जावय जेन गलीन म ओहर तो मुॅह तोपत भागे । मारत हे पिचका मुॅह ऊपर ओ लइका मन हा बरजोरी  । आज बुरा मत मानव जी कहि नाचत गात मनावत होरी ।। हाथ गुलाल धरे दउडावत नंनद देखत भागत भौजी । भागत देखत साजन आवय रंग मले मुॅह मा मन मौजी । रंगय साजन रंग म हाॅसत लागय ओ जस चांद चकोरी रंगय रंग दुनों इतरावत नाचत गात मनावत होरी ।।

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