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जुलाई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

आगे सावन आगे ।

छागे छागे बादर करिया, आगे सावन आगे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।। हरियर हरियर डोली धनहा, हरियर हरियर परिया । नदिया नरवा छलकत हावे, छलकत हावे तरिया ।। दुलहन जइसे धरती लागय, देख सरग बउरागे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।। चिरई-चिरगुन गावय गाना, पेड़-रुख हा नाचय । संग मेचका झिंगुरा दुनो, वेद मंत्र ला बाचय ।। साज मोहरी डफड़ा जइसे, गड़गड़ बिजली लागे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।। नांगर-बइला टेक्टर मिल के, करे बियासी धनहा । निंदा निंदय बनिहारिन मन, बचय नही अब बन हा ।। करे किसानी किसनहा सबो, राग-पाग ला पागे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।।

ढल देश के हर ढंग मा

चल संग मा चल संग मा, ढल देश के हर ढंग मा । धरती जिहां जननी हवे, सुख बांटथे हर रंग मा ।। मनका सबो गर माल के, सब एक हो धर के मया । मनखे सही मनखे सबो, कर लौ बने मनखे दया ।। भटके कहां घर छोड़ के, धर बात ला तैं आन के । सपना गढ़े हस नाश के, बड़ शत्रु हमला मान के ।। हम संग मा हर पाँव मा, मिल रेंगबो हर हाल मा । घर वापसी कर ले अभी, अब रेंग ले भल चाल मा ।। अकड़े कहूं अब थोरको, सुन कान तैं अब खोल के । बचबे नहीं जग घूम के, अब शत्रु कस कुछु बोल के ।। कुशियार कस हम फाकबो, हसिया धरे अब हाथ मा । कांदी लुये कस बूचबो, अउ लेसबो अब साथ मा ।।

बदरा, मोरे अँगना कब आबे

जोहत-जोहत रद्दा तोरे, आँखी मोरे प थरा गे । दुनिया भर मा घूमत हस तैं, मोरे अँगना कब आबे । ओ अषाढ़ के जोहत-जोहत, आसो के सावन आगे । नदिया-तरिया सुख्खा-सुख्खा, अउ धरती घला अटागे । रिबी-रिबी लइका मन होवय, बोरिंग तीर मा जाके । घेरी- घेरी दाई उन्खर, सरकारी नल ला झाके । बूंद-बूंद पानी बर बदरा, बन चातक तोला ताके । थूकव बैरी गुस्सा अपने, अब बरसव रंग जमाके ।। खेत-खार हा सुख्खा-सुख्खा, नांगर बइला बउरागे । धान-पान के बाते छोड़व, कांदी-कचरा ना जागे ।। आन भरोसा कब तक जीबो, करजा-बोड़ी ला लाके । पर घर के चाउर भाजी ला, हड़िया चूल्हा हा झाके । चाल-ढ़ाल ला तोरे देखत, चिरई-चिरगुन तक हापे । गुजर-बसर अब कइसे होही, तन-मन हा मोरो कापे ।। जीवन सब ला देथस बदरा, काल असन काबर झाके । थूकव बैरी गुस्सा अपने, अब बरसव रंग जमाके ।।

मोर सपना के भारत

मोरे सपना के भारत मा, हर हाथ म हे काम । जाति-धर्म के बंधन तोड़े, मनखे एक समान ।। लूट-छूट के रीति नई हे, सब बर एके दाम । नेता होवय के मतदाता, होवय लक्ष्मण राम ।। प्रांत-प्रांत के सीमा बोली, खिचय न एको डाड़ । नदिया जस सागर मिलय, करय न चिटुक बिगाड़ ।। भले करय सत्ता के निंदा, छूट रहय हर हाल । फेर देश ला गारी देवय, निछब ओखरे खाल ।। जेन देश के चिंता छोड़े, अपने करय विचार । मांगय झन अइसन मनखे, अपन मूल अधिकार ।। न्याय तंत्र होय सरल सीधा, मेटे हर जंजाल । लूटय झन कोनो निर्धन के, खून पसीना माल ।। लोकतंत्र के परिभाषा ला, सिरतुन करबो पोठ । वोट होय आधा ले जादा, तभे करय ओ गोठ ।। संविधान के आत्मा जागय, रहय धर्म निरपेक्ष । आंगा भारू रहय न कोनो, टूटय सब सापेक्ष ।। मौला पंड़ित मानय मत अब, नेता अउ सरकार । धरम-करम होवय केवल, जनता के अधिकार । देश प्रेम धर्म बड़े सबले, सब बर जरूरी होय । देश धर्म ला जे ना मानय, देश निकाला होय ।।

मुरकेटव ओखर, टोटा ला तो धर के

थपथपावत हे, बैरी आतंकी के पीठ मुसवा कस बइठे, बैरी कोने घर के। बिलई बन ताकव, सबो बिला ला झाकव मुरकेटव ओखर, टोटा ला तो धर के । आघू मा जेन खड़े हे, औजार धरे टोटा मा ओ तो पोसवा कुकुर,  भुके बाचा मान के । धर-धर दबोचव, मरघटिया बोजव जेन कुकर पोसे हे, ओला आघू लान के ।।

मैं छत्तीसगढ़िया हिन्दूस्तानी अंव

मैं छत्तीसगढ़िया हिन्दूस्तानी अंव महानदी निरमल गंगा के पानी अंव मैं राजीम जगन्नाथ के इटिका प्रयागराज जइसे फुरमानी अंव मैं भोरमदेव उज्जैन खजुराहो काशी के अवघरदानी अंव मैं बस्तर दंतेवाड़ा दंतेश्वरी भारत के करेजाचानी अंव मैं भिलाई फौलादी बाजू भारत भुईंया के जवानी अंव मोर कका-बबा जम्मो पीढ़ी के मैं रोवत-हँसत कहानी अंव जात-पात प्रांतवाद ले परे मैं भारत माता के जुबानी अंव

किसनहा गाँव के

नांगर बइला फांद, अर्र-तता रगियाये जब-जब धनहा मा, किसनहा गाँव के । दुनिया के रचयिता, जग पालन करता दुनिया ला सिरजाये, ब्रम्हा बिष्णु नाम के ।। धरती दाई के कोरा, अन्न धरे बोरा-बोरा दूनो हाथ उलचय, किसान के कोठी मा । तर-तर बोहावय, जब-तक ओ पसीना तब-तक जनाही ग, स्वाद तोर रोटी मा ।।

शौचालय बैरी हा, दुखवा बोवत हे

डोहारत-डोहारत, घर भर बर पानी मोरे कनिहा-कुबर, दाई टूटत हवे । खावब-पीयब अउ, रांधब-गढ़ब संग बाहिर-बट्टा होय ले, प्राण छूटत हवे ।। डोकरा-डोकरी संग, लइका मन घलोक घर म नहाबो कहि कहि पदोवत हे। कइसे कहंव दाई, नाम सफाई के धरे शौचालय बैरी हा, दुखवा बोवत हे ।।

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