जोहत-जोहत रद्दा तोरे, आँखी मोरे पथरागे ।
दुनिया भर मा घूमत हस तैं, मोरे अँगना कब आबे ।
ओ अषाढ़ के जोहत-जोहत, आसो के सावन आगे ।
नदिया-तरिया सुख्खा-सुख्खा, अउ धरती घला अटागे ।
रिबी-रिबी लइका मन होवय, बोरिंग तीर मा जाके ।
घेरी- घेरी दाई उन्खर, सरकारी नल ला झाके ।
बूंद-बूंद पानी बर बदरा, बन चातक तोला ताके ।
थूकव बैरी गुस्सा अपने, अब बरसव रंग जमाके ।।
खेत-खार हा सुख्खा-सुख्खा, नांगर बइला बउरागे ।
धान-पान के बाते छोड़व, कांदी-कचरा ना जागे ।।
आन भरोसा कब तक जीबो, करजा-बोड़ी ला लाके ।
पर घर के चाउर भाजी ला, हड़िया चूल्हा हा झाके ।
चाल-ढ़ाल ला तोरे देखत, चिरई-चिरगुन तक हापे ।
गुजर-बसर अब कइसे होही, तन-मन हा मोरो कापे ।।
जीवन सब ला देथस बदरा, काल असन काबर झाके ।
थूकव बैरी गुस्सा अपने, अब बरसव रंग जमाके ।।
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