आंगा-भारू लागथे, हमरे देश समाज । समझ नई आवय कुछुच, का हे येखर राज ।। का हे येखर राज, भरे के अउ भरते हे । दुच्छा वाले आज, झरे ऊँपर झरते हे ।। सोचत हवे ‘रमेश‘, जगत हे गंगा बारू । माने मा हे देव, नहीं ता आंगा-भारू ।।
पुस्तक: मानसिक शक्ति-स्वामी शिवानंद
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मानसिक शक्ति THOUGHT POWER का अविकल रूपान्तर लेखक श्री स्वामी शिवानन्द
सरस्वती
3 माह पहले