अरे दुख पीरा,
तैं मोला का डेरूहाबे
मैं पर्वत के पथरा जइसे,
ठाढ़े रहिहूँव ।
हाले-डोले बिना,
एक जगह माढ़े रहिहूँव
जब तैं चारो कोती ले
बडोरा बनके आबे
अरे दुख पीरा,
तैं मोला का डेरूहाबे
मैं लोहा फौलादी
हीरा बन जाहूँ
तोर सबो ताप,
चुन्दी मा सह जाहूँ
जब तैं दहक-दहक के
आगी-अंगरा बरसाबे
अरे दुख पीरा,
तैं मोला का डेरूहाबे
बन अगस्त के हाथ पसेरी
अपन हाथ लमाहूँ
सागर के जतका पानी
चूल्लू मा पी जाहूँ,
जब तैं इंद्र कस
पूरा-पानी तै बरसाबे
अरे दुख पीरा,
तैं मोला का डेरूहाबे
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