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संदेश

कतका झन देखे हें-

छत्तीसगढ़ी बरवै

छत्तीसगढ़ी बरवै छत्तीसगढ़ी अड़बड़, गुरतुर बोल । बोलव संगी जुरमिल, अंतस खोल ।। कहाँ आन ले कमतर, हवय मितान ।। अपने बोली-बतरस, हम गठियान ।। छोड़ चोचला अब तो, बन हुशियार । अपन गोठ हा अपने, हे कुशियार ।। पर के हा पर के हे, अपन न मान । अपने भाखा पढ़-लिख, हम गुठियान ।। अंग्रेजी मा फस के, हवस गुलाम । अपने भाखा बोलत, करलव काम ।।

बासी खाके दाई, काम-बुता मा जाहूँ

दे ना दाई मोला, दे ना दाई मोला, एक सइकमा बासी, अउ अथान चटनी । संग गोंदली दे दे, दे दे लाले मिरचा, रांधे हस का दाई, खेड़हा -खोटनी ।। बासी खाके दाई, काम-बुता मा जाहूँ, जांगर टोर कमाके, दू पइसा लाहूँ । दू-दू पइसा सकेल, सिरतुन मा ओ दाई, ये छितका कुरिया ला, मैं महल बनाहूँ ।। -रमेश चौहान

चल खेल हम खेलबो

चल चली खोर मा, बिहनिया भोर मा, गाँव के छोर मा, खेल हम खेलबो । मुबाइल छोड़ के, मन ला मरोड़ के, सबो ला जोड़ के, संग मा ढेलबो ।। चार झन संग मा, पचरंग रंग मा, खेल के ढंग मा, डंडा ल पेलबो । छू छू-छुवाल के, ओखरे चाल के, मन अपन पाल के, दाँव ला झेलबो ।। -रमेश चौहान

अपन बोली मा बोलव

//अपन बोली मा बोलव// (शुभग दंडक छंद)  मन अपन तैं खोल, कुछु फेर बोल, कुछु रहय झन पोल, निक लगय गा गोठ । खुद अपन ला भाख, खुद लाज ला राख, सब डहर ला ताक, सब करय गा पोठ । गढ अपन के बात, जस अपन बर भात, भर पेट सब खात, कर तुहूँ गा रोठ । गढ़ हमर छत्तीस, तब बोल मत बीस, मन डार मत टीस, अब बनव गा मोठ ।। -रमेश चौहान

प्रभु तोर सिखावन, हम सब अपनावन

//उद्धत दंडक// जय राम रमा पति, कर विमल हमर मति, प्रभु बन जावय गति, जगत कर्म प्रधान । सतकर्म करी हम, जब तलक रहय दम, अइसन दौ दम-खम, जगत पति भगवान ।। जग के तैं पालक, भगतन उद्धारक, कण-कण के कारक, धरम-करम सुजान । प्रभु तोर सिखावन, हम सब अपनावन, मन ला कर पावन, अपन चरित बनान ।। -रमेश चौहान

दारुभठ्ठी बंद हो

दाई बहिनी गाँव के, पारत हे  गोहार । दारू भठ्ठी बंद हो, बचै हमर परिवार ।। बचै हमर परिवार, मंद मा मत बोहावय । लइका हमर जवान, इही मा झन बेचावय ।। जेखर सेती वोट, हमन दे हन गा भाई  । वादा अपन निभाव, कहत हे बहिनी दाई ।। -रमेश चौहान

नवगीत-चुनाव के बाद का बदलाही ?

चुनाव के बाद का बदलाही ? तुहला का लगथे संगी चुनाव के बाद का बदलाही डारा-पाना ले झरे रूखवा ठुड़गा कस मोरे गाँव काम-बुता के रद्दा खोजत, लइका भटके आने ठाँव लहुट के आही चूमे बर माटी का ठुड़गा उलहाही नदिया-नरवा बांझ बरोबर तरिया-परिया के छूटे पागी गली-गली गाँव-शहर मा बेजाकब्जा के लगे आगी सिरतुन कोनो हवुला-गईली लेके लगे आगी बुतवाही बघवा जइसे रहिस शिकारी अपन दमखम देखावय बंद पिंजरा मा बइठे-बइठे कइसे के अब मेछरावय धरे हाथ मा भीख के कटोरा का गरीबी छूटजाही -रमेशकुमार सिंह चौहान

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