फांदा मा चिरई फसे, काखर हावे दोष । भूख मिटाये के करम, या किस्मत के रोष ।। या किस्मत के रोष, काल बनके हे आये । करम बड़े के भाग, समझ मोला कुछु ना आये ।। सोचत हवे ‘रमेश‘, अरझ दुनिया के थांघा । काखर हावे दोष, फसे चिरई हा फांदा ।।
छत्तीसगढ़ के प्रख्यात साहित्यकार एवं शिक्षाविद डिहुर राम निर्वाण ‘प्रतप्त’
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छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोकधारा और साहित्यिक परंपरा में अनेक ऐसे रचनाकार हुए
हैं जिन्होंने न केवल साहित्य को नई दिशा दी बल्कि समाज को जागरूक और
प्रगतिशील बनाने...
9 घंटे पहले