ये अकरस के पानी
(सार छंद)
1. संयोग श्रृंगार/अनुप्रास अलंकार
सरर-सरर सरसरावत हवय, दुल्हा बन पुरवाही ।
धरती दुल्हन के घूंघट धर, लगथे आज समाही ।।
घरर-घरर घरघरावत हवय, बदरा अपन जुबानी ।
दूनों झन खुशमुसावत हवय, ले अकरस के पानी ।।
2. वियोग श्रृगार/यमक अलंकार
काम के चक्कर मा काम मरगे, नो हँव मैं सन्यासी ।
दूनों प्राणी करन नौकरी, मन मा आज उदासी ।।
वो ऊहाँ मैं इहाँ मरत हँव, का राजा का रानी ।
अकेल्ला म अउ जाड़ बढ़ावय, ये अकरस के पानी ।।
3. करूण रस/श्लेष अलंकार
घपटे ओ सुरता के बादर, बेरा मा झर जाथे ।
नाक-कान ला नोनी काटे, नाक-कान बोजाथे ।।
मोरे कोरा के ओ लइका, रहिस न बिटिया रानी ।
झरर-झरर अब आँसु झरत हे, जस अकरस के पानी ।।
4. हास्य रस/श्लेष अलंकार
कवि जोकर कस मसखरी करय, लाइन चार सुनाये ।
लिखे आन के चारों लाइन, अपने तभो बताये ।।
हाँहाँ-हाँहाँ किलकारी भर, स्रोता करय सियानी ।
सोला आना कविता बाँचब, हे अकरस के पानी ।।
5. वीर रस/रूपक अलंकार
सूरज के मैं आगी बारँव, अउ चंदा के भुर्री ।
बैरी जाड़ा जब बन आवय, लेसव ओखर झूर्री ।।
मोर देशअउ मोर धरम हा, मोर करेजा चानी ।
अपन देश बर सही लेहुँ मैं, दुख अकरस के पानी ।।
6. रौद्र रस/उत्प्रेक्षा अलंकार
घर के बैरी देख-देख के, मुँह जस अँगरा होगे ।
बैरी ला मारे बर अब ओ, घर मा धँगरा होगे ।।
बोटी-बोटी रोटी जइसे, खाहँव कौरा बानी ।
चाहे बैरी हा बन आवय, अब अकरस के पानी ।।
-रमेशकुमार सिंह चौहान
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