आगी लगेे पिटरोल मा, बरत हवय दिन राती । मँहगाई भभकत हवय, धधकत हे छाती ।। कोरोना के मार मा, काम-बुता लेसागे । अउ पइसा बाचे-खुचे, अब तो हमर सिरागे ।। मरत हवन हम अइसने, अउ काबर तैंं मारे । डार-डार पिटरोल गा, मँहगाई ला बारे ।। सुनव व्यपारी, सरकार मन, हम कइसे के जीबो । मँइगाई के ये मार मा, का हम हवा ल पीबो ।। जनता मरहा कोतरी, मँहगाई के आगी । लेसत हे नेता हमर, बांधत कनिहा पागी ।। कोंदा भैरा अंधरा, राज्य केन्द्र के राजा । एक दूसर म डार के, हमर बजावत बाजा ।। दुबर ल दू अषाढ़ कस, डहत हवय मँहगाई । हे भगवान गरीब के, तुँही ददा अउ दाई ।। -रमेश चौहान
सुवा गीत-डाॅ. विनोद कुमार वर्मा
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डाॅ विनोद कुमार वर्मा एक व्याकरणविद्,कहानीकार, समीक्षक हैं । आपको छत्तीसगढ़
शासन ने लाला जगदलपुरी साहित्य पुरस्कार 2025- राज्य अलंकरण से विभूषित किया
है । ...
1 हफ़्ते पहले