हमू ल हरहिंछा जान देबे
मैं सुधरहूं त तैं सुधरबे ।
तै सुधरबे त वो ।
जीवन खो-खो खेल हे
एक-दूसर ल खो ।।
सेप्टिक बनाए बने करे,
पानी, गली काबर बोहाय ।
अपन घर के हगे-मूते म
हमला काबर रेंगाय ।।
गली पाछू के ल सेठस नहीं,
आघू बसे हस त शेर होगेस ।
खोर-गली ल चगलत हवस,
अपन होके घला गेर होगेस ।
अपन दुवारी के खोर-गली
कांटा रूंधे कस छेके हस ।
गाड़ा रवन रहिस हे बाबू,
काली के दिन ल देखे हस ।।
मनखे होबे कहूं तै ह संगी,
हमू ल मनखे मान लेबे ।
अपन दुवारी के खोर-गली म,
हमू ल हरहिंछा जान देबे ।।
-रमेश चौहान
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