सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कुण्डलियां लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

सरकारी सम्मान

सरकारी सम्मान के, काला हे सम्मान । कोन नई जानत हवय, का येखर पहिचान । का येखर पहिचान, खुदे ला दे डारे हें । भाइ भतीजावाद, देख के निरवारे हें । बनय खुसामदखोर, तेखरे आथे पारी । अइसन के सम्मान, कहाथे गा सरकारी ।। -रमेश चौहान

हे गणपति गणराज प्रभु

हे गणपति गणराज प्रभु, हे गजबदन गणेश, श्रद्धा अउ विश्वास के, लाये भेंट ‘रमेश‘ ।। लाये भेंट ‘रमेश‘, पहिलि तोला परघावत । पाँव गिरे मुड-गोड़, अपन दुख दरद सुनावत । दुख मा फँसे ‘रमेश’, विनति सुनलव हे जगपति । विघ्न विनाशक आच, विघ्न मेटव हे गणपति ।।

गणित बनाये के नियम

गणित बनाये के नियम, धर लौ थोकिन ध्यान । जोड़ घटाना सीख के, गुणा भाग ला जान ।। गुणा भाग ला जान, गणित के प्राण बरोबर । एक संग जब देख, चिन्ह ला सबो सरोबर ।। कोष्टक पहिली खोल, फेर "का" जेन तनाये । भाग गुणा तब जोड़, घटा के गणित बनाये ।। -रमेश चौहान

दारुभठ्ठी बंद हो

दाई बहिनी गाँव के, पारत हे  गोहार । दारू भठ्ठी बंद हो, बचै हमर परिवार ।। बचै हमर परिवार, मंद मा मत बोहावय । लइका हमर जवान, इही मा झन बेचावय ।। जेखर सेती वोट, हमन दे हन गा भाई  । वादा अपन निभाव, कहत हे बहिनी दाई ।। -रमेश चौहान

अंगाकर रोटी

अंगाकर रोटी कड़क, सबला गजब मिठाय । घी-शक्कर के संग मा, सबला घात सुहाय ।। सबला घात सुहाय, ससनभर के सब खाथे । चटनी कूर अथान, संग मा घला सुहाथे ।। तहुँहर खाव ‘रमेश’, छोड़ के सब मसमोटी । जांगर करथे काम, खात अंगाकर रोटी ।। आघू पढ़व...

बेजाकब्जा

बेजाकब्जा हा हवय, बड़े समस्या यार । येहू एक प्रकार के, आवय भ्रष्चाचार ।। आवय भ्रष्टाचार,  जगह सरकारी घेरब । हाट बाट अउ खार,  दुवारी मा आँखी फेरब ।। सुनलव कहय रमेश, सोच के ढिल्ला कब्जा । जेलव देखव तेन, करत हे बेजा कब्जा ।। चारों कोती देश मा, हवय समस्या झार । सबो समस्या ले बड़े, बेजाकब्जा यार ।। बेजाकब्जा यार,  झाड़-रुख ला सब काटे । नदिया तरिया छेक, धार पानी के पाटे ।। पर्यावरण बेहाल, ढाँक मुँह करिया धोती । साकुर-साकुर देख, गली हे चारों कोती । -रमेश चौहान -

आसों के जाड़

आसों के ये जाड़ मा, बाजत हावय दांत । सुरूर-सुरूर सुर्रा चलत, आगी घाम नगांत ।। आगी घाम नगांत, डोकरी दाई लइका । कका लमाये लात,  सुते ओधाये फइका ।। गुलगुल भजिया खात, गोरसी तापत हासों । कतका दिन के बाद, परस हे जाड़ा आसों ।। आघू पढ़व

सुघ्घर कहां मैं सबले

मैं सबले सुघ्घर हवंव,  तैं घिनहा बेकार । राजनीति के गोठ मा, मनखे होत बिमार । मनखे होत बिमार,  राजनेता ला सुनके । डारे माथा हाथ,  भीतरे भीतर  गुणके ।। सुनलव कहय रमेश, रोग अइसन कबले । नेता हमरे पूत, कहां सुघ्घर मैं सबले ।। - रमेश चौहान

फोकट मा झन बाँट

फोकट मा झन बाँट तैं, हमर चुने सरकार । देना हे ता काम दे, जेन हमर अधिकार ।। जेन हमर अधिकार,  तोर कर्तव्य कहाये । स्वाभिमान ला मार, सबो ला ढोर बनाये  ।। पैरा-भूसा डार, अपन बरदी मा ठोकत ।  लालच हमर जगाय, लोभ मा बाँटत फोकट ।। फोकट फोकट खाृय के, मनखे होत अलाल । स्वाभिमान हा मरत हे, काला होत मलाल ।। काला होत मलाल, निठल्ला हवय जवानी । काम-बुता ना हाथ, करत शेखी शैतानी । पइसा पावय चार, अपन जांगर ला झोकत । अइसे करव उपाय, बाँट मत अब कुछु फोकट ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

मोर दूसर ब्लॉग