मैं सबले सुघ्घर हवंव, तैं घिनहा बेकार ।
राजनीति के गोठ मा, मनखे होत बिमार ।
मनखे होत बिमार, राजनेता ला सुनके ।
डारे माथा हाथ, भीतरे भीतर गुणके ।।
सुनलव कहय रमेश, रोग अइसन कबले ।
नेता हमरे पूत, कहां सुघ्घर मैं सबले ।।
- रमेश चौहान
छत्तीसगढ़ी भाषा अउ छत्तीसगढ़ के धरोहर ल समर्पित रमेशकुमार सिंह चौहान के छत्तीसगढ़ी छंद कविता के कोठी ( rkdevendra.blogspot.com) छत्तीसगढ़ी म छंद विधा ल प्रोत्साहित करे बर बनाए गए हे । इहॉं आप मात्रिक छंद दोहा, चौपाई आदि और वार्णिक छंद के संगेसंग गजल, तुकांत अउ अतुकांत कविता पढ़ सकत हंव ।
मैं सबले सुघ्घर हवंव, तैं घिनहा बेकार ।
राजनीति के गोठ मा, मनखे होत बिमार ।
मनखे होत बिमार, राजनेता ला सुनके ।
डारे माथा हाथ, भीतरे भीतर गुणके ।।
सुनलव कहय रमेश, रोग अइसन कबले ।
नेता हमरे पूत, कहां सुघ्घर मैं सबले ।।
- रमेश चौहान
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