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कतका झन देखे हें-

पाना डारा ले लगे

पाना डारा ले लगे, नाचय कतका झूम । हरियर हरियर रंग ले, मन ला लेवय चूम ।। मन ला लेवय चूम, जेन देखय जी ओला । जब ले छोड़े पेड़, परे हे पाना कोला ।। खूंदय कचरय देख, आदमी मन अब झारा । कचरा होगे नाम, रहिस जे पाना डारा ।।

कथे काला गा सिक्छा

पढ़े लिखे मन ध्यान दौ, बतावव एक बात । का मतलब ऐखर हवय, मोला समझ न आत ।। मोला समझ न आत, कथे काला गा सिक्छा । नैतिकता के संग, मिले कोनो ला दिक्छा ।। दुनिया भर के ग्यान, सकेले सिखे पढ़े मन  । अपने सब संस्कार, बिसारे पढ़े लिखे मन ।।

संगी चल चल खेत मा

संगी चल  चल खेत मा, बोये बर गा धान । राग पाग सुघ्घर लगत, कहत हवंय किसान ।। कहत हवय किसान, हाथ बइला मा फेरत। धरे बीजहा धान, दुवारी मा नागर हेरत ।। भरही कइसे पेट, करे मा आज लफंगी । आज कमा के काल, खाय ला पाबो संगी ।।

कुछ मत मिले हराम

भला-बुरा तै सोच के, करले अपने काम । बिगड़य झन कुछु कोखरो, कुछ मत मिले हराम ।। कुछ मत मिले हराम,  कमा ले जांगर टोरे । दूसर के कुछु दोस, ताक मत आंखी बोरे ।। अपने अंदर झांक, नेकि के हवस खुरा तै । करले सुघ्घर काम, सोच के भला-बुरा तै ।।

पुरखा के ये साधना

जुन्ना जुन्ना गोठ ला, खरा सोन तै जान । पुरखा के ये साधना, साधे सबो सियान ।। साधे सबो सियान, जिंनगी अपन उतारे । सुख-दुख के सब काम, सबो झन बने सवारे ।। कह ‘रमेश्‍ा‘ कवि राय, गोठ सुन मोरे मुन्ना । अजमा के तैं देख, गोठ हे सुघ्घर जुन्ना ।। जेन सहय रे आॅच ला, खाय तेन हर पाॅंच । खुल्ला किताब हाथ मा, लेवा कोनो बाॅच ।। लेवा कोनो बाॅच, जगत के येही सच हे । सहे जेन तकलीफ, आज ओही हा गच हे ।। जीवन एक सवाल, सियाने मन इहां कहय रे । उत्तर देथे पोठ, आदमी जेन सहय रे ।।

काम कोने हर आथे

आथे अलहन सांय ले, धर के कोनो रंग । दू पइसा रख हाथ मा, बेरा मा दै संग ।। बेरा मा दै संग, ददा दाई तो बनके । पइसा बन भगवान, संग देही जी तन के ।। कह ‘रमेश‘ कविराय, सबो ला पइसा भाथे । जग मा पइसा छोड़, काम कोने हर आथे ।।

मोरे मन के पीर

देखत तो रहिगेंव मैं, वो सपना दिन रात । गोठियावंव का अपन, सपना के वो बात ।। सपना के ओ बात, गीत मोरे कब बनगे । मोरे मन के पीर, गीत मा कइसे ढल गे ।। गोहरात रहिगेंव, आंसु आंखी के पोछत । अक्केल्ला मत छोड़, तभो गय मोला देखत ।।

हिम्मत कतका तोर हे

हिम्मत कतका तोर हे, लड़थस दूसर संग । बात बात मा तै करे, दूसर ला बड़ तंग ।। दूसर ला बड़ तंग, करे बड़ गलती देखे । दउड़े पीसे दांत, हाथ मा लाठी लेके । बारी अपने देख, करे तैं कतका किम्मत । अपने गलती देख, हवय गर तोरे हिम्मत ।।

रंधहनी मा झाक तो

रंधहनी मा झाक तो, कइसे बनथे भात । माई लोगिन का करे, कइसे ओ सिरजात ।। कइसे ओ सिरजात, चूलहा मा आगी जी । कइसे रांधे भात, रांधते कइसे भाजी जी ।। दया मया ला डार, बनाये हवय सही मा । जेवन हर ममहाय, तभे तो रंधहनी मा ।।

सरग उतर गे खेत मा

सरग उतर गे खेत मा, छोड़ के आसमान । करत हवे बावत गजब, जिहां हमरे किसान ।। जिहां हमरे किसान, भुंइया के जतन करत हे । धरती के भगवान, जगत बर धान छिछत हे ।। देखत अइसन काम, सुरुज हा घला ठहर गे । देखे के ले साध, खेत मा सरग उतर गे ।।

जइसे बोबे बीजहा

जइसे बोबे बीजहा, तइसे पाबे बीज । बर्रे काटा बोय के, चाउर खोजेे खीझ । चाउर खोजे खीझ, धान तै हर बिन बोये । काम बनाथे भाग , समझलव जी हर कोये ।। कह ‘रमेश‘ कवि राय, बुता करलव जी अइसे । करलव जी साकार, तोर सपना हे जइसे ।।

नागर बोहे कांध मा

नागर बोहे कांध मा, किसान जावत खेत । संग सुुवारी हा चले, कुदरी रपली लेत ।। कुदरी रपली लेत, बीजहा बोहे मुड़ मा । बइला रेंगे संग, चलत हे अपने सुर मा । पहुॅचे हे जब खेत, सरग ले लगथे आगर । अर्र अर-तता गीत, गात जब जोते नागर ।।

गरीब कुरिया मोर

चिखला हे हर पाॅंव मा, अंधियार हर ठांव । झमा-झमा पानी गिरे, कती करा मैं जांव ।। कती करा मैं जांव, छानही तरई आंजन । बाहिर बूंद न जाय, निंद हम कइसे भांजन ।। करे गोहार ‘रमेशः, कोन देखय गा दुख ला । गरीब कुरिया मोर, अंगना घर मा हे चिखला ।

विश्व सिकल सेल दिवस मा -

बड़ दुखदायी रोग हे, नाम हे सिकल सेल । खून करे हॅसिया बनक, करे दरद के खेल ।। करे दरद के खेल, जोड़ मा हॅसिया रोके । कहां ऐखर इलाज, दरद पेले मुड़ धोके ।। फोलिक एसिड़ संग, खूब पानी फलदायी । शादी मा रख ध्यान, रोग हे बड़ दुखदायी ।। -रमेश चौहान

योग भगाथे रोग ला

योग भगाथे रोग ला, कहे हवे विद्वान । सिद्ध करे हे बात ला, दुनिया के विग्यान ।। दुनिया के विग्यान, परख डारे हे ऐला । कहे संयुक्त राष्ट्र, योग कर छोड़ झमेला ।। हमर देश के नाम, योग जग मा बगराथे । मान लौव सब बात, रोग ला योग भगाथे ।।

काज कर धरम करम के

धरम करम के बात हा, कुरीति आज कहाय । चमत्कार विग्यान के, देख सबो मोहाय ।। देख सबो मोहाय, आज के हमरे मुन्ना । एक्को झन नइ भाय, गोठ ला हमरे जुन्ना ।। चमत्कार हे देह, धरम हे प्राण देह के । मिलही तोला मोक्छ, काज कर धरम करम के ।।

आज बचपना बचा दव

पढ़ा लिखा लव ज्ञान बर, देवव जी संस्कार । नान्हे लइका ला अपन, पढ़ई मा झन मार ।। पढ़ई मा झन मार, लदक के बोझा मुड़ मा । लइकापन छोड़ाय, जहर देवव मत गुड़ मा ।। कह ‘रमेश‘ कविराय, आज बचपना बचा दव । छोड़व मार्डन सोच, ज्ञान बर पढ़ा लिखा लव ।।

पांव पखारे शिष्य के

पांव पखारे शिष्य के, गुरू मन हर आज । चेला जब भगवान हे, गुुरू के का काज ।। गुुरू के का काज, स्कूल हा होटल होगे । रांध खवा के भात, जिहां गुरूजी हा सोगे ।। कागज मा सब खेल, देख तै मन ला मारे । लइका होगे पास, चलव गा पांव पखारे ।।

आगे रे बरसात

झूम झमा झम झूम के, आगे रे बरसात । चिरई चिरगुन के घला, खुशी अब ना समात ।। खुषी अब ना समात, चहक के गाय ददरिया । झिंगूरा ह बजाय, चिकारा होय लहरिया ।। करय मेचका टेर, गुदुम बाजा कस दम दम । मजूर डेना खोेल, नाचथे झूम झमा झम ।।

मोर मन हा गे डोल

धीरे-धीरे कान मा, मधुरस दिस ओ घोल । बोलिस ना बताइस कुछु, मोर मन हा गे डोल ।। मोर मन हा गे डोल, देह के रूआब पाके । छेडि़स सरगम गीत, स्वास ले तीर म आके ।। मुच-मुच ओ हर हाॅस, मोर हिरदय ला चीरे । आॅखी आॅखी डार, बोल दिस धीरे-धीरे ।।

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