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कतका झन देखे हें-

माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी

माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन भात-बासी, दूध-दही सब खाथे-पीथे मुॅह हा, सबो अंग मा एक बराबर, ताकत जगाथे मुॅह हा। देह मा मुॅह हा होथे जइसन.... देह मा मुॅह हा होथे जइसन माई मुडी ला होना चाही वइसन । माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन डारा-पाना, फर-फूलवा सब रूखवा के हरिआये खातू-माटी, पानी-पल्लो, जब बने जर मा पाये रूखवा के जर हा होथे जइसन.... रूखवा के जर हा होथे जइसन माई मुडी ला होना चाही वइसन । माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन बघवा-भालू, साप-नेवला पानी पिये एक घाट मा गरीब-गुरबा, गौटिया-बड़हर एक लगे हे राम राज मा राजा मा राम हा होय हे जइसन... राजा मा राम हा होय हे जइसन माई मुडी ला होना चाही वइसन । माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन

गज़लबानी-गहूँ संग कीरा रमजाजथे

गज़लबानी तुकबंदी गहूँ संग कीरा रमजाजथे  गहूँ संग कीरा रमजाजथे । दूध मा पानी बेचाजथे । संगत के अइसन असर नून मा मिरचा खवाजथे । रेंगत रेंगत नेता संग चम्मच हा नेता कहाजथे । बइठे बइठे जुवा मेरा खेत खार बेचाजथे । धनिया लेना कोन जरूरी छुये मा हाथ ममहाजथे । गुलाब फूल टोरत टोरत काटा मा हाथ छेदाजथे । मया कहूं होय निरमल दिल दिल मा समाजथे । बड़े संग मिले बिरोपान छोटे संग नाक कटाजथे । तैं जान तोर काम जाने गोठ गोठ मा गोठ आजथे ।

गांव-गांव अब तो संगी होवत हे शहर

गांव-गांव अब तो संगी होवत हे शहर । पक्की-पक्की घर-कुरिया पक्की हे डगर ।। पारा-पारा आंगन-बाड़ी स्कूल गे हे सुधर । छोटे-बड़े नोनी-बाबू अब पढ़े हे हमर ।। मोटर-गाड़ी गांव मा घला हवय अड़बड़ । नवा-नवा रद्दा-बाट मा नवा हे सफर ।। हर हाथ मा मोबाइल दिखय सबो डहर हेलो-हेलो सुनय-कहय देवत-लेवत खबर ।। तोरी-मोरी लोग-बाग अब तो गे हें बिसर । अपन-अपन काम -बूता मा मगन हे चारो पहर ।। गली-खोर अब अंजोर हे अब रतिहा पहर । घर-घर बिजली बरे अउ चले हे चवर ।। आनी-बानी गाल मा पोते स्नो अउ पाउडर । टीप-टांप टुरी-टनकी गांव मा ढावत हे कहर ।। -रमेश चौहान

पढ़ई पढ़ई

पढ़ई पढ़ई अइसन पढ़ई ले आखिर का होही । गुदा के अता पता नइये बाचे हवव बस गोही ।। कौड़ी के न काम के जांगर चोर भर तो होही । रात भर जागे हे बाबू, दिन भर अब तो सोही ।। न ओला पुरखा के मान हे न देश धरम के ज्ञान । अंग्रेजियत देखा देखा हमन ला तो अब बिट्टोही ।। विदेसी सिक्षा जगावय विदेसी संस्कृति के अभिमान । अपन धरम ला मानय नही बाबू बनगे अब कुल द्रोही ।। रीति रिवाज संस्कृती ला देवत हे अंधविश्वास के नाम । बिना विश्वास के देश परिवार समाज कइसे के होही ।। लईका पढ़थ हे कहिके, कोनो नई करावय कुछु काम । रूढ़ाय जांगर ले आखीर काम कइसे करके होही ।। लईका पढ़त लिखत हे घाते फेर कढ़त नइये । कढ़े बिना सूजी मा धागा कइसे करके पिरोही ।। पागे कहु नौकरी चाकरी त होगे परदेशिया । बुढ़ाय दाई ददा के डोंगा ला अब कोन खोही ।। नई पाइस कहूं कुछु काम ता घर के ना घाट के माथा धर के बाबू अब तो काहेक के  रोही ।। सिरतुन कहंव चाहे कोनो गारी देवव के गल्ला । गांव-गली नेता अऊ ऊखर चम्मच के अब भरमार होही । इंकरे आये ले होवत हे भ्रष्टाचार के अतका हल्ला । ईखर मन के करम ले अब देश शरमसार तो होही ।।

कृष्ण जन्माष्टमी

आठे कन्हया के लमे बाह भर बधाई भादो के महीना, घटा छाये अंधियारी, बड़ डरावना हे, ये रात कारी कारी । कंस के कारागार, बड़ रहिन पहेरेदार, चारो कोती चमुन्दा, खुल्ला नईये एकोद्वार । देवकी वासुदेव पुकारे हे दीनानाथ, अब दुख सहावत नइये करलव सनाथ । एक एक करके छैय लइका मारे कंस, सातवइया घला होगे कइसे अपभ्रंस । आठवईंया के हे बारी कइसे करव तइयारी, ऐखरे बर होय हे आकाषवाणी हे खरारी । मन खिलखिवत हे फेर थोकिन डर्रावत हे, कंस के काल हे के पहिली कस एखरो हाल हे । ओही समय चमके बिजली घटाटोप, निचट अंधियारी के होगे ऊंहा लोप । बिजली अतका के जम्मो के आंखी कान मुंदागे, दमकत बदन चमकत मुकुट चार हाथ वाले आगे । देवकी वासुदेव के हाथ गोड़ के बेड़ी फेकागे, जम्मो पहरेदारमन ल बड़ जोर के निदं आगे । देखत हे देवकी वासुदेव त देखत रहिगे, कतका सुघ्घर हे ओखर रूप मनोहर का कहिबे । चिटक भर म होइस परमपिता के ऊंहला भान, नाना भांति ले करे लगिन ऊंखर यशोगान । तुहीमन सृष्टि के करइवा अव जम्मो जीव के देखइया अव, धरती के भार हरइया अव जीवन नइया के खेवइया अव । मायापति माया देखाके होगे अंतरध्यान,

कोनो गांव नई जांव

हमर ममा गांव मा, होवत हे गा बिहाव । दाई अऊ बाई दुनो, कहत हे जाबो गांव ।। दाई कहे बाबू सुन, मोर ममा के नाती के । घात सुघ्घर आदत, का तोला बतांव ।। वो ही बाबू के बिहाव, होवत हे ग ना आज । मुंह झुंझूल ले जाबो, बाढ़ गे हे तांव ।। तोर सारी दुलौरीन, मोर ममा के ओ नोनी । घेरी घेरी फोन करे, भेजे मया ले बुलांव ।। मोटरा जोर मैं हर, करत हंव श्रृंगार । काल संझकेरहे ले, जाबो जोही ममा गांव ।। सियानीन मोटियारी, टूरा होवय के टूरी । सब्बो ला घाते भाथे, अपनेच ममा गांव ।। एके तारीक म हवे, दुनो कोती के बिहाव । सोच मा परे हवंव, काखर संग मैं जांव ।। दाई संग जाहूं मै ता, बाई ह बड़ रिसाही । गाल मुंह ल फुलेय, करही गा चांव चांव ।। बाई संग कहूं जाहूं, दाई रो रो देही गारी । ये टूरा रोगहा मन, डौकीच ला देथे भाव ।। बड़ मुश्किल हे यार, सुझत नई ये कुछु । काखर संग मैं जांव, काला का कहि मनांव ।। नानपन ले दाई के, घात मया पाय हंव । मन ले कहत हंव, दाई जिनगी के छांव ।। अब तो सुवारी बीना, जिनगी लागे बेमोल । जोही बीना जग सुन्ना, लगे जिनगी के दांव ।। छोड़ नई सकव मैं, दाई बाई दुनो ला तो । बि

मोर नोनी

खेलत घरघुन्दिया, गली खोर मोर नोनी । धुर्रा धुर्रा ले बनाय, घर चारो ओर नोनी ।। बना रंधनही खोली, आनी बानी तै सजाय । रांधे गढ़े के समान, जम्मा जोर जोर नोनी ।। माटी के दिया ह बने, तोर सगली भतली । खेल खेल म चुरय, साग भात तोर नोनी ।। सेकत चुपरत हे, लइका कस पुतरी । सजावत सवारत, चेंदरा के कोर नोनी ।। अक्ती के संझा बेरा, अंगना गाढ़े मड़वा । नेवता के चना दार, बांटे थोर थोर नोनी ।। पुतरा पुतरी के हे, आजे तो दाई बिहाव । दे हव ना टिकावन, कहे घोर घोर नोनी ।। कका ददा बबा घला, आवा ना तीर मा । दू बीजा चाऊर टिक, कहय गा तोर नोनी ।। माईलोगीन के बूता, ममता अऊ दुलार । नारीत्व के ये स्कूल मा, रोज पढ़े मोर नोनी

हे गौरी के लाल

बुद्धि के देवइया अऊ पिरा के हरइया हे गज मुख  वाला । सबले पहिली तोला सुमिरव हे षंकर सुत गौरी के लाला ।। वेद पुरान जम्मो तोरे च गुन ल गाय हे, सबले पहिली श्रीगणेष कहव बताय हे । सभो देवता ले पहिली सुमिरन तोरे कहाये हे, हे परभू मोरो अंतस ह तोरे च गुन ल गाये हे । शुरू करत हव तोर नाम ले, ये कारज गृह जंजाला, हे गजानन दया करहू झन होवय कुछु गड़बड़ झाला । हे गौरी के लाला......... जइसे लंबा लंबा सूड़ तोरे, लंबा कर दव सोच ल मोरे । जइसन भारी पेट तोरे, गहरा बना दव विचार ल मोरे । अपन माटी अऊ अपन पुरखा के सेवा गावंव ले सुर लय ताल । हे एकदन्त एक्केच किरपा करहू बुद्धि ले झन रहव मै कंगाल ।। हे गौरी के लाल..... जइसे भाते उमा महेश के मया ह तोला, ओइसने अपन मया दे दव मोला । मिठ मिठ लाडू जइसे भाते तोला, ओइसने गुतुर गुतुर भाखा दे दव मोला । कुमति के नाश कर सुमति ले भर दौव मोरो भाल । हे आखर के देवता मोरो गीत ल लौव सम्हाल ।। हे गौरी के लाल............ दाई ल धरती ददा ल अकास कहिके कहाय गणेश, तोर ये बुद्धि ल जम्मो देवता ले बड़का कहे हे महेश । तोरे च शरण आये नारद अऊ सब देवता संग सुरेश

खुशी मनाओ भई आज खुशी मनाओं

भादो के महीना घटा छाये अंधियारी, बड़ डरावना हे रात कारी कारी । कंस के कारागार बड़ रहिन पहेरेदार, चारो कोती चमुन्दा हे खुल्ला नईये एकोद्वार । देवकी वासुदेव पुकारे हे दीनानाथ, अब दुख सहावत नइये करलव सनाथ । एक एक करके छैय लइका मारे कंस, सातवइया घला होगे कइसे अपभ्रंस । आठवईंया के हे बारी कइसे करव तइयारी, ऐखरे बर होय हे आकाशवाणी हे खरारी । मन खिलखिवत हे फेर थोकिन डर्रावत हे, कंस के काल हे के पहिली कस एखरो हाल हे । ओही समय चमके बिजली घटाटोप, निचट अंधियारी के होगे ऊंहा लोप । बिजली अतका के जम्मो के आंखी कान मुंदागे, दमकत बदन चमकत मुकुट चार हाथ वाले आगे । देवकी वासुदेव के हाथ गोड़ के बेड़ी फेकागे, जम्मो पहरेदारमन ल बड़ जोर के निदं आगे । देखत हे देवकी वासुदेव त देखत रहिगे, कतका सुघ्घर हे ओखर रूप मनोहर का कहिबे । चिटक भर म होइस परमपिता के ऊंहला भान, नाना भांति ले करे लगिन ऊंखर यशोगान । तुहीमन सृष्टि के करइवा अव जम्मो जीव के देखइया अव, धरती के भार हरइया अऊ जीवन नइया के खेवइया अव । मायापति माया देखाके होगे अंतरध्यान, बालक रूप म प्रगटे आज तो भगवान । प्रगटे आज

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