पढ़ई पढ़ई अइसन पढ़ई ले आखिर का होही ।
गुदा के अता पता नइये बाचे हवव बस गोही ।।
कौड़ी के न काम के जांगर चोर भर तो होही ।
रात भर जागे हे बाबू, दिन भर अब तो सोही ।।
न ओला पुरखा के मान हे न देश धरम के ज्ञान ।
अंग्रेजियत देखा देखा हमन ला तो अब बिट्टोही ।।
विदेसी सिक्षा जगावय विदेसी संस्कृति के अभिमान ।
अपन धरम ला मानय नही बाबू बनगे अब कुल द्रोही ।।
रीति रिवाज संस्कृती ला देवत हे अंधविश्वास के नाम ।
बिना विश्वास के देश परिवार समाज कइसे के होही ।।
लईका पढ़थ हे कहिके, कोनो नई करावय कुछु काम ।
रूढ़ाय जांगर ले आखीर काम कइसे करके होही ।।
लईका पढ़त लिखत हे घाते फेर कढ़त नइये ।
कढ़े बिना सूजी मा धागा कइसे करके पिरोही ।।
पागे कहु नौकरी चाकरी त होगे परदेशिया ।
बुढ़ाय दाई ददा के डोंगा ला अब कोन खोही ।।
नई पाइस कहूं कुछु काम ता घर के ना घाट के
माथा धर के बाबू अब तो काहेक के रोही ।।
सिरतुन कहंव चाहे कोनो गारी देवव के गल्ला ।
गांव-गली नेता अऊ ऊखर चम्मच के अब भरमार होही ।
इंकरे आये ले होवत हे भ्रष्टाचार के अतका हल्ला ।
ईखर मन के करम ले अब देश शरमसार तो होही ।।
गुदा के अता पता नइये बाचे हवव बस गोही ।।
कौड़ी के न काम के जांगर चोर भर तो होही ।
रात भर जागे हे बाबू, दिन भर अब तो सोही ।।
न ओला पुरखा के मान हे न देश धरम के ज्ञान ।
अंग्रेजियत देखा देखा हमन ला तो अब बिट्टोही ।।
विदेसी सिक्षा जगावय विदेसी संस्कृति के अभिमान ।
अपन धरम ला मानय नही बाबू बनगे अब कुल द्रोही ।।
रीति रिवाज संस्कृती ला देवत हे अंधविश्वास के नाम ।
बिना विश्वास के देश परिवार समाज कइसे के होही ।।
लईका पढ़थ हे कहिके, कोनो नई करावय कुछु काम ।
रूढ़ाय जांगर ले आखीर काम कइसे करके होही ।।
लईका पढ़त लिखत हे घाते फेर कढ़त नइये ।
कढ़े बिना सूजी मा धागा कइसे करके पिरोही ।।
पागे कहु नौकरी चाकरी त होगे परदेशिया ।
बुढ़ाय दाई ददा के डोंगा ला अब कोन खोही ।।
नई पाइस कहूं कुछु काम ता घर के ना घाट के
माथा धर के बाबू अब तो काहेक के रोही ।।
सिरतुन कहंव चाहे कोनो गारी देवव के गल्ला ।
गांव-गली नेता अऊ ऊखर चम्मच के अब भरमार होही ।
इंकरे आये ले होवत हे भ्रष्टाचार के अतका हल्ला ।
ईखर मन के करम ले अब देश शरमसार तो होही ।।
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