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संदेश

कतका झन देखे हें-

-ः मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव:ः-

जिहां चिरई-चिरगुन करे चांव-चांव, जिहां कऊंवा मन करें कांव-कांव । जिहां कोलिहा-कुकुर मन करे हांव-हांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । गाय बछरू कुकरा कुकरी अऊ छेरी पठरू, घर घर नरियावय मिमीयावय कुकरू कू कुकरू । दूध दूहे बर बइठे पहटिया दोहनी धरे उघरू, गाय चाटय पूछी उठाय दूघ पियत हे बछरू । बारी बखरी म बंधय कोनो रूखवा के छांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । बाबूमन खेलय बाटी ईब्बा, नोनी मन खेलय फुग्गडी, कोनो खेलय तास चैसर त कोनो करय चारी-चुगली । पनिहारिन म करय हंसी ठिठोली मुडी म बोहें गगरी , जिहां के घर संग भावय परछी अंगना म लहरावय तुलसी । जिहां तुलसी के कतका मान , जेखर कतका सुघ्घर छांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । गोरसी धरे बईठे बबा नातीमन ल धरे बुढ़ही दाई, नागर जोते ल गे हे ददा कांदी लुये बर दाई । चैपाल म बईठे पंच पटइल अऊ गौटिया, संग म बईठे पंडित बाबू जेखर हे चुटिया । गौतरिहा मन बैईठे सुघ्धर आमा के छांव, ऊंहें बस्ते मोर छत्तीसगढ के सुघ्घर गांव । मया म गावय करमा ददरिया, लइका होंय  म गावय सोहर, बिहाव म गावय भडौनी गीत, संग छोडवनी

माटी मा

लईकापन म खूब खेलेंव अऊ सनायेंव माटी मा । पुतरा पुतरी अऊ घरघुंदिया बनायेंव धुर्रा माटी मा ।। डंडा पंचरंगा अऊ भवरा बाटी खेलयेंव माटी मा घोर घोर रानी अऊ छपक छपक खेलयेंव माटी मा । जवानी म जांगर टोर कमायेंव मिल के माटी मा । मुंधरहा ले संझा तक नांगर जोतेयेंव माटी मा ।। ईटा भिथिया अऊ खपरा बनायंव माटी मा ।। सुघ्घर सुघ्घर घर कुरीया संवारेंव माटी मा । संगी जहुरिया अऊ सगा नाता बनायेंव माटी मा । दुनियादारी निभऐंव, गुलछर्रा उडायेंव माटी मा ।। आगे बुढापा कांपत हाथ गोड माढ़त नईये माटी मा । खांसी खखांर ला लुकावत हंव अब मैं माटी मा ।। बुढ़ापा के मोर संगी नाती मन खेलत हे माटी मा। कोनो सगा संगी नईये आंखी गडांयेंव हंव माटी मा ।। फूलत हे सास जीये के नइये आस समाना हे माटी मा । उतार दव खटिया सोवा दव मोला अब माटी मा ।।

हे जगत जननी महामाई

हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई । मैं तोर नान्हे नादान लईका, अऊ तही मोर दाई । तोरेच किरपा म ये जिंनगी पाय हव । तोहीच ल अपन मन मंदिर म बसाय हव । श्रद्धा के फूल मईया तोला मै चढ़ाय हव । विश्वास के दिया मईया मै ह जलाय हव । तोरेच आशीषले ये दुनिया हे सुहाई । हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई । जब ले होश सम्हालेव तब ले तोला जानेव । जिनगी के जम्मो दुख ल तोरे चैखट म लानेव । तोर नाम के सिवाय पूजा पाठ मैं नई जानेव । चंचल मन अऊ चंचल तन ऐला कहा सम्हालेव ।  क्षमा करिहव मोर जम्मो अपराध बिसराई ।  हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई । हे जगत जननी महामाई, सदा रहव सहाई ।   ...............रमेश...............

बचपना तो बचपना ये

आज मोर लइका दिन  भर, विडियो गेम म बिपतियाय हे, पढत न लिखत देख ओला, मोरो दिमाग ह मंतियाय हे । गुस्सा म ओला का कहव, का नई कहव कहिके गुनत हंव, लइका के दाई हर लईका ले, देवत हे गारी तेला सुनत हंव। गुनत गुनत मोर दिमाक म, मोरे बचपना के धुंधरा छाय हे, अऊ लइका बने के साध ले,एक बार फेर मोरो मन हरियाय हे ।। संतोश मन संग बांटी खेलंव, नेतू मन संग ईब्बा , सब लईका मिल के खेलेन, छु-छुवाल छिप्पा । नरवा मा पूरा आये हे, तऊंरे बर रवि राकेष ह बुलाये हे, मोरो मन ह ललचाय हे, फेर मोरो दाई ह मंतियाय हे ।।        तऊडे के बड साध , ओधा बेधा ले मैं गेंव भाग , पडहेना आगे राकेश के हाथ, होगे आज के साग । कूद -कूद  के खेलई अऊ कूद कूद के तवरईय , संगी मन के मोर घर अऊ, मोर उखर घर जवईय । बचपना तो बचपना ये, खेलई म अऊ सुघराये हे ऐही सोच सोच अब मोरो मन बने हरियाये हे ।।     रूपेश गनपत मोर स्कूल के संगी     पढ़े म नई करेन हम एको तंगी     हमू खेल कूद के पढ़े हन     अपन जिंनगी ला गढ़े हन बेटा मानव मोरो कहना, खेलव कूदव खोर अंगना तन मन बने रहिहीं, फेर पढ़व घला संगे संग ना बात मान के मोरो लइका, पुस्तक मा

अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ..........

सुरता आवत हे मोला एक बात के, बबा ह मोर ले कहे रहिस हे एक रात के । का मजा आवत रहिस हे आगू, अब जमाना ह बदल गेहे बाबू । अब कदर कहां हे दीन ईमान के, अब किमत कहां हे जुबान के । अब कहां छोटे बड़े के मान हे, ऐखर मान होत रहिस हे आगू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू .... कोनो ल कोनो घेपय नही, कोनो ल कोनो टोकय नही । जेखर मन म जइसे आत हे, ओइसने करत जात हे । माथा धर के मंय गुनत हंव अब का होही आगू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ......... . नान्हेपन म होत रहिस हे बिहाव तेन कुरिती होगे, बाढे़ बाढ़े नोनी बाबू उडावत हे गुलछर्रा तेने रिति होगे । परिवार नियोजन के अब्बड़ अकन साधन, अब कुँवारी कुँवारा ल कइसे करके बांधन । मुॅह अब सफेद होवय न करिया, मुॅह करिया होत रहिस हे आगू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ......... बलात्कारीमन ग्वालीन किरा कस सिगबिगावत हे, कोन जवान त कोन कोरा के लइका चिन्ह नई पावत हे । सरकार आनी बानी के कानून बनावते हे, तभो ऐमन एक्को नइ डर्रावत हे । संस्कार ले खसले म नई सुझय आगू पाछू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू .... कानून के डंडा ले संस्कार नई आवय, विदेशी संस्कृति ह नगर

आवत हे चुनाव...........

आवत हे चुनाव आवत हे चुनाव नेतामन अब आही हमर गांव । कऊवा कुकुरमन कस अब करही कांव-कांव ।। गांव-गांव अऊ गली-गली, उखर बेनर पोस्टर पटही, लिपे पोते हमर दीवार ह, उखर झूठा नारा ले पुतही । जस जादूगर बसुरी बजा के, मुंदथे हमर आंखी कान, आश्‍वासन के झुनझुना धराके, कइसे बनाथे गा ठांव ।। आवत हे चुनाव......... नवा नवा सपना सजा के कहय, करीहव तुहार काम, तुहीमन हमर दाई ददा अऊ तुहीमन  चारो धाम । तुहरे किरपा ले करत हव, तुहरे सेवा के काम, गुतुर गुतुर गोठ गोठियाही अऊ परही गा पांव ।। आवत हे चुनाव......... घर-घर जाही अऊ जइसे देवता तइसे मनाही, कइसनो करके ओमन हमन ल तो गा रिझाही । दाई माईमन बर बिछीया खिनवा, सुघ्घर लुगरा ददा भाईमन बर बाटय गा दारू पाव-पाव ।। आवत हे चुनाव......... साम-दाम, दण्ड भेद के जम्मो नियम ल अजमाही, जात-पात, धरम-करम क्षेत्रवाद के आगी लगाही । विकास के गोठ गोठिया के, आंखी म सपना सजाहीं, अऊ जुवारी कस लगाही अपन गा जम्मो दांव ।। आवत हे चुनाव......... जइसे बोहू तइसे पाहू तुहीमन तो अडबड कहिथव, फेर अइसन लबरा मनला, लालच मा काबर चुनथव । हमर गांव के चतुर सियान, लगावव थोकिन ध्य

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