सुरता आवत हे मोला एक बात के,
बबा ह मोर ले कहे रहिस हे एक रात के ।
का मजा आवत रहिस हे आगू,
अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ।
अब कदर कहां हे दीन ईमान के,
अब किमत कहां हे जुबान के ।
अब कहां छोटे बड़े के मान हे,
ऐखर मान होत रहिस हे आगू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ....
कोनो ल कोनो घेपय नही,
कोनो ल कोनो टोकय नही ।
जेखर मन म जइसे आत हे,
ओइसने करत जात हे ।
माथा धर के मंय गुनत हंव
अब का होही आगू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू .........
.
नान्हेपन म होत रहिस हे बिहाव तेन कुरिती होगे,
बाढे़ बाढ़े नोनी बाबू उडावत हे
गुलछर्रा तेने रिति होगे ।
परिवार नियोजन के अब्बड़ अकन साधन,
अब कुँवारी कुँवारा ल कइसे करके बांधन ।
मुॅह अब सफेद होवय न करिया,
मुॅह करिया होत रहिस हे आगू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू .........
बलात्कारीमन ग्वालीन किरा कस सिगबिगावत हे,
कोन जवान त कोन कोरा के लइका चिन्ह नई पावत हे ।
सरकार आनी बानी के कानून बनावते हे,
तभो ऐमन एक्को नइ डर्रावत हे ।
संस्कार ले खसले म नई सुझय आगू पाछू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ....
कानून के डंडा ले संस्कार नई आवय,
विदेशी संस्कृति ह नगरा नाच नचावय ।
लोक लाज शरम हया ला मनखे बिसरागेंहे
कुक्कुर माकर जइसे अब तो बउरागें हे ।
राम जानय अब का होही आगू । अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ........
भगुवां बाना साजे ठोंगी घुमय,
साधु मनखे अपन माथा धुनय ।
बालब्रह्मचारी के कोरी कोरी लईका
धरम करम के टूटत हे फईका
तन ले नही मन ले होना चाही साधु ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ........
बबा ह मोर ले कहे रहिस हे एक रात के ।
का मजा आवत रहिस हे आगू,
अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ।
अब कदर कहां हे दीन ईमान के,
अब किमत कहां हे जुबान के ।
अब कहां छोटे बड़े के मान हे,
ऐखर मान होत रहिस हे आगू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ....
कोनो ल कोनो घेपय नही,
कोनो ल कोनो टोकय नही ।
जेखर मन म जइसे आत हे,
ओइसने करत जात हे ।
माथा धर के मंय गुनत हंव
अब का होही आगू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू .........
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नान्हेपन म होत रहिस हे बिहाव तेन कुरिती होगे,
बाढे़ बाढ़े नोनी बाबू उडावत हे
गुलछर्रा तेने रिति होगे ।
परिवार नियोजन के अब्बड़ अकन साधन,
अब कुँवारी कुँवारा ल कइसे करके बांधन ।
मुॅह अब सफेद होवय न करिया,
मुॅह करिया होत रहिस हे आगू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू .........
बलात्कारीमन ग्वालीन किरा कस सिगबिगावत हे,
कोन जवान त कोन कोरा के लइका चिन्ह नई पावत हे ।
सरकार आनी बानी के कानून बनावते हे,
तभो ऐमन एक्को नइ डर्रावत हे ।
संस्कार ले खसले म नई सुझय आगू पाछू ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ....
कानून के डंडा ले संस्कार नई आवय,
विदेशी संस्कृति ह नगरा नाच नचावय ।
लोक लाज शरम हया ला मनखे बिसरागेंहे
कुक्कुर माकर जइसे अब तो बउरागें हे ।
राम जानय अब का होही आगू । अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ........
भगुवां बाना साजे ठोंगी घुमय,
साधु मनखे अपन माथा धुनय ।
बालब्रह्मचारी के कोरी कोरी लईका
धरम करम के टूटत हे फईका
तन ले नही मन ले होना चाही साधु ।। अब जमाना ह बदल गेहे बाबू ........
वाह, रमेश भाई. मजा आगे. ब्लॉग जगत म सुवागत हे.
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