आज मोर लइका दिन भर, विडियो गेम म बिपतियाय हे,
पढत न लिखत देख ओला, मोरो दिमाग ह मंतियाय हे ।
गुस्सा म ओला का कहव, का नई कहव कहिके गुनत हंव,
लइका के दाई हर लईका ले, देवत हे गारी तेला सुनत हंव।
गुनत गुनत मोर दिमाक म, मोरे बचपना के धुंधरा छाय हे,
अऊ लइका बने के साध ले,एक बार फेर मोरो मन हरियाय हे ।।
संतोश मन संग बांटी खेलंव, नेतू मन संग ईब्बा ,
सब लईका मिल के खेलेन, छु-छुवाल छिप्पा ।
नरवा मा पूरा आये हे, तऊंरे बर रवि राकेष ह बुलाये हे,
मोरो मन ह ललचाय हे, फेर मोरो दाई ह मंतियाय हे ।।
तऊडे के बड साध , ओधा बेधा ले मैं गेंव भाग ,
पडहेना आगे राकेश के हाथ, होगे आज के साग ।
कूद -कूद के खेलई अऊ कूद कूद के तवरईय ,
संगी मन के मोर घर अऊ, मोर उखर घर जवईय ।
बचपना तो बचपना ये, खेलई म अऊ सुघराये हे
ऐही सोच सोच अब मोरो मन बने हरियाये हे ।।
रूपेश गनपत मोर स्कूल के संगी
पढ़े म नई करेन हम एको तंगी
हमू खेल कूद के पढ़े हन
अपन जिंनगी ला गढ़े हन
बेटा मानव मोरो कहना, खेलव कूदव खोर अंगना
तन मन बने रहिहीं, फेर पढ़व घला संगे संग ना
बात मान के मोरो लइका, पुस्तक मा आंखी गड़ाय हे
बात सुन के मोरे सुवारी, जोरे से खिलखिलाय हे
पढत न लिखत देख ओला, मोरो दिमाग ह मंतियाय हे ।
गुस्सा म ओला का कहव, का नई कहव कहिके गुनत हंव,
लइका के दाई हर लईका ले, देवत हे गारी तेला सुनत हंव।
गुनत गुनत मोर दिमाक म, मोरे बचपना के धुंधरा छाय हे,
अऊ लइका बने के साध ले,एक बार फेर मोरो मन हरियाय हे ।।
संतोश मन संग बांटी खेलंव, नेतू मन संग ईब्बा ,
सब लईका मिल के खेलेन, छु-छुवाल छिप्पा ।
नरवा मा पूरा आये हे, तऊंरे बर रवि राकेष ह बुलाये हे,
मोरो मन ह ललचाय हे, फेर मोरो दाई ह मंतियाय हे ।।
तऊडे के बड साध , ओधा बेधा ले मैं गेंव भाग ,
पडहेना आगे राकेश के हाथ, होगे आज के साग ।
कूद -कूद के खेलई अऊ कूद कूद के तवरईय ,
संगी मन के मोर घर अऊ, मोर उखर घर जवईय ।
बचपना तो बचपना ये, खेलई म अऊ सुघराये हे
ऐही सोच सोच अब मोरो मन बने हरियाये हे ।।
रूपेश गनपत मोर स्कूल के संगी
पढ़े म नई करेन हम एको तंगी
हमू खेल कूद के पढ़े हन
अपन जिंनगी ला गढ़े हन
बेटा मानव मोरो कहना, खेलव कूदव खोर अंगना
तन मन बने रहिहीं, फेर पढ़व घला संगे संग ना
बात मान के मोरो लइका, पुस्तक मा आंखी गड़ाय हे
बात सुन के मोरे सुवारी, जोरे से खिलखिलाय हे
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें