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संदेश

कतका झन देखे हें-

आसो के घाम

आगी के अंगरा कस दहकत हे आसो के घाम, अब ए जीवरा ल, अब ए जीवरा ल कहां-कहां लुकान । झुलसत हे तन, अऊ तड़पत हे मन, बिजली खेलय आंख मिचोली अब कइसे करी जतन । बिन पानी के मछरी कस तड़पत हे बदन, पेट के खतीर कुछु न कुछु करे ल पड़ते काम ।। आगी के अंगरा कस ...... धरती के जम्मो पानी अटावत हे, जम्मो रूख राई के पाना ह लेसावत हे । लहक लहक लहकत हे गाय गरूवां अऊ कुकुर, चिरई चिरगुन बईठे अब कउन ठांव ।। आगी के अंगरा कस ........ अब तो महंगाई सुरसा कस मुंह ल बढ़ावत हे, ये महंगाई अइसन घाम ले घला जादा जनावत है। घिरर घिरर के खिचत हन ये जिनगी के गाड़ी, अब कहां मिलय हमन शांति सुकुन के छांव ।। आगी के अंगरा कस ........ ................रमेश..............................

जय हो दारू

  ऐती ओती चारो कोती एकेच जयकारा हे । जय हो दारू, जय हो दारू, जय हो दारू।। कोनो कहय ये नवा जमाना के चलन हे, त कोनो कोनो कहय ये काम हे शैतानी । आज के मनखे तोर संग करे हे मितानी , लइका सीयान या होय जवान सबो हे तोर मयारू ।। जय हो दारू, जय हो दारू, जय हो दारू दूघ गली गली बेचाये हे, तभो ऐला कहां कोनो भाये हे । तोला पाये बर मनखे अपन थारी लोटा ल मड़ाय हे, ऐखरी सेती करम ल ठठाय हे, घर के मेहरारू ।। जय हो दारू, जय हो दारू, जय हो दारू तोर ठौर ल मिले हे मंदिर के सानी, गीरा गंभीर हे तोर भगत मन के कहानी । तोर भगत सुत उठ के तोरे दरस ल पाथे, बिहनिया, मझनिया,अऊ संझा तीनों बेर हाजरी लगाथे । तभो ले तोर भक्तन मन तोला पाय बर अऊ अऊ ललचाथे, तोर भगत मन के भगती ह हवय चारू-चारू ।। जय हो दारू, जय हो दारू, जय हो दारू कोनो कोनो भगतन अपन घर-कुरीया घला चढ़ाये हे, कोनो कोनो दुरपती कस अपन बाई ल दाव म लगाये हे । लइका बच्चा के घला ओला चिंता कहां सताये हे, तभे तो जम्मा घर के जिनीस वो ह बेच खाये हे । अब तो वो तोर दुवारी म लगावत हे झाडू ।। जय हो दारू, जय हो दारू, जय हो दारू तोर भगती म कुछ भगतन एइ

कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय

                       कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय (श्री हरिवंशराय बच्चन की अमर कृति ‘‘कोशिश करने वालो की हार नही होती‘‘ का अनुवाद) लहरा ले डरराये  म डोंगा पार नई होवय, कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय । नान्हे नान्हे चिटीमन जब दाना लेके चलते, एक बार ल कोन कहिस घेरी घेरी गिरते तभो सम्हलते । मन चंगा त कठौती म गंगा, मन के जिते जित हे मन के हारे हार, मन कहू हरियर हे तौ का गिरना अऊ का चढना कोन करथे परवाह । कइसनो होय ओखर मेहनत बेकार नई होवय, कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय । डुबकी समुददर म  गोताखोर ह लगाथे, फेर फेर डुबथे फेर फेर खोजथ खालीच हाथ आथे । अतका सहज कहां हे मोती खोजना  गहरा पानी म, बढथे तभो ले उत्साह ह दुगुना दुगुना ऐही हरानी म । मुठठी हरबार ओखर खाली नई होवय, कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय । नकामी घला एक चुनौती हे ऐला तै मान, का कमी रहिगे, का गलती होगे तेनला तै जान । जब तक न होबो सफल आराम हराम हे, संघर्ष ले झन भागव ऐही चारो धाम हे । कुछु करे बिना कभू जय जयकार नई होवय, कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय । .................‘‘रमेश‘‘.............

आसो के होरी म

                         आसो के होरी म         आसो के होरी म, मोरो मन  हे हरियर ।     मोरो  मन के, प्रित के रंग  हे गोरियर ।     गोरी के गाले ल, आज करिहव पिरीयर ।     मया प्रित के, गोठ हेरिहव आज फरियर ।     तै मोर राधा गोई, मै तोर श्याम करियर ।     तही मोर करेजा गोई, मै तोर धड़कन बर ।     तोर बीना जोही मोर, जिनगी हवय करियर ।     मया के होरी म, बन जई गोरी जावरजियर ।     ...................‘‘रमेश‘‘.........................

-ःःमेघा काबर छाय हेःः-

    माघ के उतरति म अऊ बेरा के बूडती म,     मेघा काबर छाय हे ये बसंत बर काबर मंतियायें  हे ।     लूहूर तूहूर अपन बिदाई म आसू  बहावत हे,     सुरूर सुरूर पुरवाही ओखर साथ निभावत हे ।     अभी बरफ ह बरोबर टघले नईये,     ओला ये फेर काबर जमाय है ।     अभी अभी लइका के दाई सेटर ल संदूक म धरे हे,     तेला ये बादर रोगहा फेर निलकलवाये बर परे हे ।     ओनाहारी अभीच्चे फूल धरे हे तेंला ये काबर झर्राय हे ।     सुघ्घर सपना देखत किसान ल हिलोर के काबर जगायें है।         सावन भादों जब ऐखर जरूरत रहिस त अब्बड़ तरसाये हे ।     आज चनामन के माते हे फूल तेन ल झर्रायेबर आये हे ।     जइसे गांव के गौटिया काम म पइसा नई देवय,     अऊ अपन काम बर फोकट म दारू पियाये हे ।     ये बादर काम बर ठेंगा देखायें हे,     अऊ आज फोकट के बरसाय हे ।     ...................‘‘रमेश‘‘.........................

नान्हेपन म

नान्हेपन म ममादाई अब्बड किस्सा सुनावय, रात रात जाग के ओ ह हमला मनावय । कभु सुनावय किस्सा भोले बबा के नादानी, कभु सुनावय राजा रानी के सुघ्घर कहानी । कभु सुनावय कइसे ढेला पथरा निभाईन मितानी, कभु सुनावय भूत प्रेत अऊ राक्षस मन के शैतानी । ओखर हर किस्सा हमर आंखी म नवा चमक लावय, दाई ऊंघावत ऊंघावत हमला नवा किस्सा सुनावय । ओ जमाना म कहा टी.वी. अऊ सिनेमा के परदा, तब तो रहिस किस्सा अऊ नाचा पइखन के जादा दरजा । न चमक न दमक तभो अच्छा लगय हमर मन, आज चारो कोती के चमक दमक घलो उदास हे मोरो मन । .................‘‘रमेश‘‘.......................

//कोनो काही कहय //

कोनो प्रतिभा गुलाम नई होवय अमीरी के, रददा रोक नइ सकय कांटा गरीबी के । कोनो काही कहय चिखले म कमलदल ह खिलथे, अऊ हर तकलीफ ले जुझेच म सफलता ह मिलथे । हर खुशी कहां मिलथे अमीरी ले, कोनो खुशी कहां अटकथे गरीबी ले । कोनो काही कहय खुशी तो मनेच ले मिलथे, तभे तो मन चंगा त कठौति म गंगा कहिथे । सुरूज निकलथे दुनो बर, पुरवाही बहिथे दुनो बर । कोनो काही कहय बरसा घाम दुनो बर बरिसथे, जेखर जतका बर गागर ओतके पानी भरथे । अमीर सदा अमीर नई रहय गरीब सदा गरीबी नई सहय । कोनो काही कहय भाग करम के गुलाम रहिथे । सियान मन धन दोगानी ला हाथ के मइल कहिथे । सफल होय बर हिम्मत के दरकार हे, जेन सहय आंच तेन खाय पांच कहाय हे । कोनो काही कहय जांगर टोर जेन कमाथे, अपन मुठ्ठी म करम किस्मत ल पाथे । -रमेशकुमार सिंह चौहान

जइसन ल तइसन

               जइसन ल तइसनहम कहिथन कइसन, फेर लगते हे हमार सरकार ल नई भावय अइसन ।     कोनो हमर मुडी काटय,     अऊ हमन देखन कऊवां कुकुर असन,     भुकत हन ये तुहरे करे, ये तुहरे करे     फेर दुश्मन चलत हे हाथी असन । बहुत होगे अब चाबे नइ सकत त एक  बेर तो फुफकार, कही दे एक  बेर सौ सुनार के त एक  बेर लुहार ।     अभी कुछु नई कर सकेन त     हमार पिढी ला का सिखाबो,     दुश्मन काटे मुडी दु चार त     एक एक करके हमन मुडी ल दताबो । ................‘‘रमेश‘‘........................

बिचार

      1. कोनो काम छोटे बड़े नई होवय, जऊन काम म मन लगय ओही काम करव । बघवा कइसे छोटे बड़े शिकार म ध्यान लगाये हे, ऐमा जरूर विचार करव ।। 2. सिखे के कहू ललक होही, मनखे कोनो मेर ले रद्दा खोज लेही । भवरा जइसे फूल ऊपर होही, त मधु मधु मधुर परागेच ल पिही ।। 3. भगवान चंदन के फर फूर कहां बनाये हे, तभो चारो कोती खुशी बगराये हे । इही त्याग अऊ तपस्या ले, भगवान ऐला अपन माथे म चढ़ाय हे ।। 4. सज्जन पुरूष ओइसने होथे, जइसे होथे रूख । ठाड़हे च रहिथे चाहे बारीश होवय के धूप ।। दूसरेच बर फरथे अऊ फूलथे, चाहे जिनगी जावय सूख ।। 5. बगुला कइसे ध्यान लगाये हे, जम्मो इंद्रिल अपन काम म लाये हे । अइसने जऊन मनखे अपन काम म मन लगाये हे, जम्मो सुख ल पाये हे ।। 6. जेन करम के करे म  बडे ल नई दे सकय दोस ।   उही करम ल छोटे के करे म उतार देही रोस ।। 7. मुह ले निकले हर भाखा कोई न कोई बात होथे,   कोनो फूलवा के महक त कोनो दिल म  अघात होथे । 8. मोह जम्मो दुख के जर म हे, माया मन हे थांगा म ।   लालच म जेने  आये हे, तेने च ह फसे हे फांदा म ।। .............‘‘रमेश‘‘........................

विदेशी सिक्षा

 सिक्षा सिक्षा ये विदेशी सिक्षा से का होय ।  न कौढी के न काम के घुम घुम के बदनाम होय ।।  न ओला पुरखा के मान हे न देश धरम के ज्ञान ।  विदेसी सिक्षा लेवत हे अऊ विदेसी संस्कृति के अभिमान ।।  दाई-ददा मोर लईका पढथ हे कहिके नई कराव कुछु काम ।  नान्हेपन ले जांगर नई चलाय हे अब कोन जांगर ले होही काम ।।  पूजा-पाठ, कथा-भागवत सब ल देवत हे अंधविश्वास के नाम ।  लईका पढिस लिखिस  अऊ होगें कइसन ओ हर विदवान ।। पागे कहु नौकरी चाकरी त होगे परदेशिया नई आवय कुछु काम  न पाइंच कहु काम धाम त परबुधिया होके होवथ हे बदनाम ।। गांव-गांव अऊ गली-गली नेता अऊ ऊखर चम्मच के भरमार हे  जेन कहावय भाई-दादा जेखर करम ले ये देश शरमसार हे ।।  सिरतुन कहव चाहे कोनो गारी देवव के गल्ला ।  इंकरे आये ले होवत हे भ्रष्टाचार के अतका हल्ला ।। ................‘‘रमेश‘‘........................

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