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संदेश

कतका झन देखे हें-

पढ़ई लिखई

पढ़ई लिखई सीख के, अपन बदल ले सोच । ज्ञान बाह भर समेट के, माथा कलगी खोच ।। माथा कलगी खोच, दया उपकार अहिंसा । तोर मोर ला छोड़, मया कर ले हरहिंछा ।। मया आय गा नेह, चलव ऐमा घर बनई । ऊंच नीच के भेद, मेटथे पढ़ई लिखई ।।

बिलवा (कुण्डलियां)

1. बिलवा तोरेे ये मया, होगे जी जंजाल । पढ़ई लिखई छूट गे, होगे बारा हाल ।। होगे बारा हाल, परीक्षा म फेल होके । जेल बने घर द्वार, ददा हा रद्दा रोके ।। पहरा चारो पहर, अंगना लागे डिलवा । कइसे होही मेल, संग तोरे रे बिलवा ।। 2. मना दुनो दाई ददा, करबो हमन बिहाव देखाबो दिल खोल के, अपन मया अउ भाव । अपन मया अउ भाव, कहव हम कइसे रहिबो । कहव मया ला देख, कहे तुहरे हम करबो।। सुन के हमरे बात, ददा दाई कहे ह ना। करबो तुहार बिहाव, करय कोनो न अब मना ।। -रमेश चौहान

आज देवउठनी हवय

छोटे देवारी देवउठनी एकादशी के अब्बड़ अब्बड़ बधाई आज देवउठनी हवय, चुहकबो कुसीयार । रतिहा छितका तापबो, जुर मिल के परिवार ।। लक्ष्मी ह कुसीयार बन, जोहे हे भगवान । कातिक महिना जाड़ के, छितका ले सम्मान ।। बिंदा तुलसी हे बने, बिष्णु ह सालिक राम । तुलसी बिहाव गांव मा, देखत छोड़े काम ।। उपास हे मनखे बहुत, ले श्रद्धा विश्वास । अंध विश्वास झन कहव, डाइटिंग ल उपास ।। हमर लोक संस्कृति हवय, हमरे गा पहिचान । ईश्वर ला हर बात मा, हम तो देथन मान ।।

काम हे तोर लफंगी

अपने तै परभाव, परख ले गा दुनिया मा । कहां कदर हे तोर, हवय का घर कुरिया मा ।। फुलथे जब जब फूल, खुदे ममहाथे संगी । फूल डोहड़ी मान, काम हे तोर लफंगी ।।

ओ दरूहा मनखे

डुगुर-डुगुर डोले, बकर-बकर बोले, गांव के अली-गली मा, ओ दरूहा मनखे । कोनो ल झेपय नही, कोनो न घेपय नही, एखर-ओखर मेर, दत जाथे तन के ।। अपने ओरसावत, अपने च सकेलत, झुमर-झुमर झूम, आनी-बानी गोठ ला । ओ कोनो ला ना सुनय, ना ओ कोनो ला देखय, देखावत हे अपने, हाथ करे चोट ला ।।

काबर करे अराम

आधा करके काम ला, काबर करे अराम । आज काल के फेर मा, कतका बाचे काम ।। कतका बाचे काम, देख के चिंता होही । करहि जेन हा ढेर, बाद मा  बहुते रोही ।। मन के जीते जीत, हार मन के हे व्याधा। चिंता मा तन तोर, होय सूखा के आधा।।

शुभ दीपावली

घर घर दीया बार, आज हे गा सुरहोत्ती । तुलसी चैरा पार, तोर घर कुरिया कोठी । घुरवा परिया खार, खेत बारी हे जेती । रिगबिग रिगबिग देख, हवय गा चारो कोती ।।

कब आबे होश मा

एती तेती चारो कोती, इहरू बिछरू बन, देश के बैरी दुश्मन, घुसरे हे देष मा । चोट्टा बैरी लुका चोरी, हमरे बन हमी ला, गोली-गोला मारत हे, आनी बानी बेष मा ।। देष के माटी रो-रो के, तोला गोहरावत हे, कइसन सुते हस, कब आबे होश मा । मुड़ म पागा बांध के, हाथ धर तेंदु लाठी, जमा तो  कनपट्टी ला, तै अपन जोश मा ।।

दो कवित्त्त

     दो कवित्त्त                                   1- फेशन के चक्कर मा, दूसर के टक्कर मा, लाज ला भुलावत हे, टूरा टूरी गांव के । हाथ धरे मोबाईल, फोकट करे स्माईल, करत आंख मटक्का, धरे मया नाव के ।। करे मया देखा देखी, संगी संगी ऐती तेती, भागत उड़रहीया,  यै लईका आज के । ददा ला गुड़ेरत हे, दाई ला भसेड़ेत हे, टोरत हे आजकल, फईका लाज के  ।                     2-. ऐती तेती चारो कोती, इहरू बिछरू बन, देश के बैरी दुश्मन, घुसरे हे देश मा । चोट्टा बैरी लुका चोरी, हमरे बन हमी ला, गोली-गोला मारत हे, आनी बानी बेश मा ।। देष के माटी रो-रो के, तोला गोहरावत हे, कइसन सुते हस, कब आबे होश मा । मुड़ म पागा बांध के, हाथ धर तेंदु लाठी, जमा तो  कनपट्टी ला, तै अपन जोश मा ।।

हमर किसान गा (मनहरण घनाक्षरी)

मुड़ मा पागा लपेटे, हाथ कुदरा समेटे, खेत मेड़ मचलत हे, हमर किसान गा । फोरत हे मुही ला, साधत खेत धनहा, मन उमंग हिलोर, खेत देख धान गा । लहर-लहर कर, डहर-डहर भर, झुमर-झुमर कर, बढ़ावत शान गा । आनी-बानी के सपना, आंखी-आंखी संजोवत, मन मा नाचत गात, हमर किसान गा ।

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