डुगुर-डुगुर डोले, बकर-बकर बोले, गांव के अली-गली मा, ओ दरूहा मनखे ।
कोनो ल झेपय नही, कोनो न घेपय नही, एखर-ओखर मेर, दत जाथे तन के ।।
अपने ओरसावत, अपने च सकेलत, झुमर-झुमर झूम, आनी-बानी गोठ ला ।
ओ कोनो ला ना सुनय, ना ओ कोनो ला देखय, देखावत हे अपने, हाथ करे चोट ला ।।
कोनो ल झेपय नही, कोनो न घेपय नही, एखर-ओखर मेर, दत जाथे तन के ।।
अपने ओरसावत, अपने च सकेलत, झुमर-झुमर झूम, आनी-बानी गोठ ला ।
ओ कोनो ला ना सुनय, ना ओ कोनो ला देखय, देखावत हे अपने, हाथ करे चोट ला ।।
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएं