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संदेश

कतका झन देखे हें-

मनखे मनखे बाट

1. जतका महिमा हे कहे, गुरू मन के सब वेद ।          एक्को लक्षण ना दिखय, आज होत हे खेद ।। 2. आत्म ज्ञान ला छोड़ के, अपने नाम रटाय ।          दान-मान ला पाय के, कोठी बड़े बनाय ।। 3. आत्म-ज्ञान काला कथे, हमला कोन बताय ।         कहां आत्म ज्ञानी हवय, हमला कोन लखाय ।। 4. ज्ञान हवे का ओखरे, जाने गा भगवान ।          बड़का ओखर ले कहां, जग मा हे धनवान ।। 5. अपन धरम ला काट के, गढ़े हवे नव पंथ ।         जेला चेला मन कहय, नवाचरण के कंथ ।। 6. जेन पेड़ के डार हे, जर ल ओखरे काट ।         संत घला कहावत हे, मनखे मनखे बाट।।

भादो महिना तोर तो

भादो महिना तोर तो, रहीस अगोेरा घात । सावन महिना भाग गे, हम सब ला तरसात ।। बरस तरस के आज तैं, देख सुखावत धान । धान-पान बिन आदमी, कइसे मारय शान ।। बिन पानी तो धान हा, लगे हवे अइलात ।। भादो महिना तोर तो..... कतका निंदा निंदबो, ओही ओही झार । मिलय नही बनिहार हा, कामचोर भरमार । अब तो तोरे आसरा, दिल मा हमन बसात । भादो महिना तोर तो...... सरवर-दरवर तैं बरस, बता अपन पहिचान । बरस झमा-झम आज तैं, बाढ़य तोरे मान । अतका पानी तैं बरस, नाचय सबो जमात । भादो महिना तोर तो.....

करे हिलोर हृदय मा

करे हिलोर हृदय मा, तोर मया हा धूम । मैं भवरा तैं फूलवा, नाचत हॅंव मैं झूम ।। तोर मया हा साॅस हे, पुरवाही म समाय । देखत तोरे चेहरा, पीरा सबो नसाय ।। मोरे तन मन तोर हे, जीनगी घला तोर । मोरे अंतस मा चले, तोर मया के शोर ।। मछरी बन तउरत हॅंवव, दहरा मया अथाह । तोर मया हा पानी बने, करे मोर परवाह ।। देखत रह चुप-चाप तैं, मंद-मंद मुस्काय । देखत हॅंव मैं एकटक, भीतर तोर समाय ।।

चिक्कन चांदन अंगना

चिक्कन चांदन अंगना, चिक्कन-चिक्कन खोर । तन मन ला राखे बने, खुशी भरे हर पोर ।। पानी पीये साफ तैं, कपड़ा पहिरे साफ । घर आघू कचरा परे, कोन करय जी माफ ।। साफ सफाई राख तैं, खोर गली ला तोर ।। चिक्कन चांदन अंगना..... साफ सफाई काम बर, अगल-बगल झन देख । हाथ बटा लव काम मा, देखव मत मिन-मेख ।। अपन अपन घर-द्वार के, काड़ी-कचरा जोर । चिक्कन चांदन अंगना..... अपन जुठा मुॅह ला खुदे, धोथव जी हर कोय । अपन मइल ला आन बर, काबर देत बरोय ।। तोरे सेती गांव मा, कचरा होय न थोर । चिक्कन चांदन अंगना.... बाहिर बट्टा कोन हा, बइठे माड़ी मोड़ । डहर-डहर भर देख लव, रखत बने ना गोड़ ।। का करही सरकार हा, अइसन आदत तोर । चिक्कन चांदन अंगना.... आदत अपन सुधार लव, सुधर जही गा गांव । साफ सफाई शांति के, बन जाही जी छांव ।। चिरई कस फुदकी हमन, तिनका-तिनका जोर । चिक्कन चांदन अंगना....

दारू मंद के लत लगे

दारू मंद के लत लगे, मनखेे मर मर जाय । जइसे सुख्खा डार हा, लुकी पाय बर जाय ।। तोरे पइसा देह हे, कर जइसे मन आय । पी-पा के तैं हा भला, काबर जगत सताय । मान बढ़ाई तैं भला, राखे काखर सोच । गारी-गल्ला देइ के, लेथस इज्जत नोच ।। कुकुर असन तैं तो भुके, बिलई कस मिमिआय । कभू शेर सियार बने, समझ नई कुछु आय ।। बने भिखारी दारू बर, बेचे अपन इमान । पाछू तैं देखात हस, आन बान अउ शान ।।

नाग पंचमी

दूध ले गिलास भरे, हाथ मा पट्टी ला धरे, नाग फोटु उकेर के, स्कूल जात लइका । फूल-पान ला चढ़ाये, नाग देवता मनाये , नरियर ला फोर के, रखे हवें सइता ।। बारी-कोला खेत-खार, माटी दिया दूध डार, भिमोरा ला खोज के, पूजे हवे किसाने । प्राणी प्राणी हर जीव, जेमा बिराजे हे षिव, नाग हमर देवता, धरती के मिताने ।। जांघ निगोट लपेट, धोती कुरता ला फेक, बड़े पहलवान हा, देख तइयार हे । गांव मा खोजत हवे, चारो कोती घूम-घूम लडे बर तो गांव मा, कोन होशियार हे । जांघ ला वो ठोक-ठोक, कहत हे घेरी-बेरी, अतका जड़ गांव मा, लगथे सियार हे । आजा रे तैं जवान, आजा गा तैं किसान, मलयुद्ध तो खेलबो, पंचमी तिहार हे ।।

एक आसरा सार हे,

एक आसरा सार हे, बाकी सब बेकार । जिनगी पानी फोटका, बनते बिगड़े जाय । का राखे हे देह के, कब जग ले बिलगाय ।। जेखर हम उपजाय हन, ओही तो हे सार ।। एक आसरा सार हे..... खेल कूद लइकापन म, जानेन एक बात । भरे जवानी मा घला, मिले हवे सौगात ।। सुख के संगी सब हवय, दुख मा हे लाचार ।। एक आसरा सार हे..... मोर मोर तैं तो कहे, कोन चीज हे तोर । जग मा आके पाय हस, आंखी देख निटोर ।। मुठठी बांधे आय हन, जाबो हाथ पसार ।। एक आसरा सार हे..... जग के मालिक एक हे, लाखों नाम धराय । करता धरता तोर तो, नजर कहां हे आय ।। अंतस अंतस हे बसे,  खोजे हस संसार ।। एक आसरा सार हे..... भज ले ओही राम ला, बोल खुदा के नाम । समरथ सिराय तोर जब, आही वोही काम ।। मनखे तन ला पाय के, संतन गोठ सवार ।। एक आसरा सार हे.....

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