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संदेश

कतका झन देखे हें-

कोन रचे जग सृष्टिन सुंदर

हे मइया महिमा तुहरे जग चार जुगे त्रिय काल समाये । वो तइहा अउ आज घला सब भक्त मिले तुहरे जस गाये । पार न पावय देवन सृष्टि म नेति कहे सब माथ नवाये । ये मनखे कइसे तुइरे जस फेर भला कुछु बात बताये ।। कोन रचे जग सृष्टिन सुंदर, लालन पालन कोन करे हे । कोन इहां उपजावय जीवन, काल धुरी भुज कोन धरे हे ।। जेखर ले उपजे विधि शंकर, जेन रमापति ला उपजाये । आदि अनंत न जेखर जानन, शक्ति उही हर काय कहाये ।। शैल सुता ह रचे जग सुंदर, लालन पालन गौरि करे हे । आदि उमा उपजावय जीवन, काल धुरी भुज कालि धरे हे ।। आदिच शक्ति ह तो विधि शंकर राम रमापति ला उपजाये । आदि अनंत पता नइ जेखर, शक्ति उही हर मातु कहाये ।। -रमेश चौहान मिश्रापारा, नवागढ जिला-बेमेतरा

हमला माता लेहु बचाय

जगमग जगमग जोत करत हे, मंदिर मंदिर देवी ठांव । जंगल भीतर पर्वत ऊपर, शहर-शहर अउ जम्मो गांव ।। माता के जयकारा गूंजे, जब छाये जग मा नवरात । धरती नाचे बादर झूमे, रूख राई घाते इतरात ।। लहर लहर जब करे जवारा, सबो देवता माथ नवात । परम शांति अउ सुख ला पावय, जेने ऐखर दरशन पात । अइसन बेरा भगत जान के, मइया के ते द्वारे जात । अपने मन के सबो मनौती, मइया ले सबो गोहरात।। नाना भगतन मइया के हे, नाना रूप अपन देखाय । धरे ढोल मादर कतको मन, दिव्य कथा तोरे तो गाय । बरन बरन के बाजा बाजे, बरन बरन के राग सुनाय ।। कोनो जिभिया बाना छेदे, कोनो छाती जोत मढ़ाय ।। कोनो सुन जस तोरे झूमे, सांटे मांगे हाथ लमाय । झूपत झूपत भगतन नाचे, सुध बुध ला अपने बिसराय ।। श्रद्धा अउ विश्वास धरे सब, मइया मइया करे पुकार । सबो मनौती सबके मइया, पूरा कर करदव उपकार ।। कोरा के हम तोरे लइका, तैं हमरे जग जननी माय । मानवता पथ छोड़ी झन हम, हमला माता लेहु बचाय ।।

माता रानी, दाई ओ

हे जग कल्याणी, आदि भवानी, माता रानी, दाई ओ । दुष्टन ला मारे, संतन तारे, भगत उबारे, दाई ओ। जुग जुग ले छाहित, हवस समाहित, श्रद्धा भगती -मा दाई ।। मां तोरे ममता, सब बर समता, जीव जंतु मा, हे छाई ।। आये नवराते, भगतन माते, दिन राते तो, सेवत हे । नौ दिन नौ रूपे, भगतन झूपे, साट हाथ मा, लेवत हे । जय जय मां काली, शेरावाली, खप्पर धारी, दाई ओ । तहीं दंतेश्वरी, बम्मलेश्वरी, चंद्रहासनी, अउ तहीं महा-माईओ । पहिली दच्छसुता, के शैलसुता, ब्रह्मचारणी, दूसर मा । तीसर चंद्रघण्टा, हे कूष्माण्डा, चउथा नामे, तो उर मा ।। पंचम स्कन्धमाता, भाग्य विधाता, कात्यानी तो, छठ दाई । कालरात्रि साते, गौरी आठे, नवम सिद्धदात्री, नौ दाई ।। तोरे दरवाजा, भगत समाजा, अपने माथा, फोरत हे । सब औती-जौती, धरे मनौती, अपने हाथे, जोरत हे ।। मन मा विश्वासा, होही आसा, अब तो पूरा, दाई ओ । ये ममता तोरे, जिनगी मोरे, कूंद-कूंद सुघ-राई ओ ।।

दाई नवगढ़हिन

दाई नवगढ़हिन हवय, माना तरिया पार । नाव महामाया हवय, महिमा हवय अपार ।। लाल बरन दाई हवय, जिभिया लाल लमाय । लाली चुनरी ओढ़ के, अपन दया बगराय ।। कहन डोकरी दाई हमन, करके मया दुलार । दाई नवगढ़हिन हवय .. दाई मयारू घात हे, पुरखा हमर बताय । सबो भगत के दुख दरद, सुनते जेन मिटाय ।। राज पहर ले हे बसे, किल्ला पुछा कछार । दाई नवगढ़हिन हवय... मंदिर तरिया घाट हा, बनते बनते जाय । फेर बिराजे दाई इहां, आसन एक जमाय ।। ददा बबा ले आज तक, करत हमर उद्धार । दाई नवगढ़हिन हवय....

पितर पाख

पितर पाख मा देवता, पुरखा बन आय । कोनो दाई अउ ददा, कोनो बबा कहाय ।। श्रद्धा अउ विश्वास मा, होवय नही सवाल । अपन अपन आस्था हवय, काबर करे बवाल ।। हरियर हरियर पेड़ मा, पानी नई पिलोय । मरे झाड़ मा तैं अभे, हउला भरे रिकोय ।। बारे न दिया रात मा, दिन म करे अंजोर । बइहा पूरा देख के, तउरे ल सिखे घोर ।। अपने पहिली प्यार ला, भूलय ना संसार । तोरे दाई के मया, आवय पहिली प्यार ।। रंग रंग के हे मया, एक रंग झन देख । सात रंग अउ सात सुर, दुनिया रखे समेख ।। नारी के नारी मनन, समझे कहां सुभाव । सास बहु मन गोठ मा, कर डारे हे घाव ।। दाई के ओ बेटवा, बाई के सिंदूर । जेन रंग ला वो धरे, रंगे हाथ जरूर ।। नारी ले परिवार हे, नारी ले घर-द्वार । चाहे ओ हर जोर लय, चाहे रखय उजार ।। सास ससुर दाई ददा, बनके करे दुलार । बहू घला बेटी असन, करय उन्हला प्यार ।। बने रहय विश्वास हा, आस्था रहय सजोर । श्रद्धा के ये श्राद्ध हा, दया करय पुरजोर ।। -रमेश चौहान

मोर छत्तीसगढी के पहिलि परकासित पुस्तक-"सुरता"

मोर छत्तीसगढी के पहिलि परकासित पुस्तक, विमोचन दिनांक 21 फरवरी 2015, छत्तीसगढ राजभाषा आयोग के तीसर प्रान्तीय सम्मेलन, बिलासपुर मा विमोचित ये पता मा जाके पढ सकत हंव https://drive.google.com/file/d/0B_vVk5gISWv3YkhvYjdPTWJHZms/view?usp=sharing / https://drive.google.com/file/d/0B_vVk5gISWv3YkhvYjdPTWJHZms/view?usp=sharing

जय हो मइया शारदे

जय हो मइया शारदे, पांव पखारॅंव तोर । तोरे दर मा आंय हॅंव, बिनती सुन ले मोर । बइठे सादा हंस मा, करे सेत सिंगार । सादा लुगरा तोर हे, सादा गहना झार ।। सादा के ये सादगी, ममता के हे डोर । तोरे दर मा आंय हॅंव. एक हाथ वीणा हवय, दूसर वेद पुराण । वीणा के झंकार हा, डारे जग मा जान ।। वेद ज्ञान परकाश हा, करत हवे अंजोर। तोरे दर मा आंय हॅंव. ज्ञान समुंदर तैं हवस, अविरल अगम अथाह । कोनो ज्ञानी हे कहां, पावय जेने थाह ।। तोर दया ला पाय बर, बिनय करत कर जोर । तोरे दर मा आंय हॅंव.

चरण पखारॅंव तोर प्रभु

चरण पखारॅंव तोर प्रभु, श्रद्धा भेट चढाय । तोरे मूरत ला अपन, हिरदय रखॅव मढाय ।। हाथी जइसे मुॅह हवय, सूपा जइसे कान । हउला जइसे पेट हे, लइका के भगवान ।। तोरे अइसन रूप हा, तोर भगत ला भाय । चरण पखारॅंव तोर प्रभु.... सहज सरल तो तैं हवस, सब ला देत अषीश । लइका मन तोला अपन, संगी कर डारीष ।। लाये तोरे मूरती, घर-घर मा पघराय । चरण पखारॅंव तोर प्रभु... जम्मो बाधा मेटथस, पाय भगत गोहार । कारज के षुरूवात मा, करथन तोर पुकार ।। विघ्न हरन तब तो जगत, तोरे नाम धराय । चरण पखारॅंव तोर प्रभु..... ...©-रमेश चौहान

आजा मोरे अंगना, हे गणपति गणराज

आजा मोरे अंगना, हे गणपति गणराज । गाड़ा गाड़ा नेवता, तोला हे महराज ।। भादो के महिना हवय, अउ अंजोरी पाख । तोर जनम दिन के बखत, दया मया ले ताख ।। तोरे जस हम गात हन, सुन ले प्रभु आवाज । आजा मोरे अंगना... तीन लोक चउदा भुवन, करे ज्ञान परकास । तही बुद्वि दाता हवस, हवे जगत ला आस । विघ्न हरण मंगल करण, कर दे पूरा काज । आजा मोरे अंगना... नान नान लइका हमन, तोर चरण मा जाय । करबो पूजा आरती, मोदक भोग लगाय ।। मूरख अज्ञानी हवन, रख दे हमरे लाज । आजा मोरे अंगना... गली गली हर गांव मा, तोरे हे जयकार । मूषक वाहन साज के, सजा अपन दरबार ।। अपन भगत के मान रख, होवय तोरे नाज । आजा मोरे अंगना...

अब तो बांटा तोर हे

शान रहिस जे काल के, रहिस हमर पहिचान । नंदावत वो चीज मा, कइसे डारी जान ।। कतको बरजे डोकरा, माने नही जवान । जुन्ना डारा छोड़ के, टूटथे नवा पान ।। गोठ नवा जुन्ना चलय, जइसे के दिन रात । अपन अपन हा पोठ हे, जेखर सुन ले बात ।। दुनिया के बदलाव ला, आँखी खोल निटोर । ओही चंदा अउ सुरूज, ओही धरती तोर ।। अपन रीति रिवाज धरे, पुरखा आय हमार । अब तो बांटा तोर हे, ऐला तैं सम्हार ।।

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