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संदेश

कतका झन देखे हें-

छोटे परिवार

चित्र गुगल से साभार छोटे परिवार हवे, सुख के आधार संगी, जेन नहीं  तेन कहे,, मनखे के बाढ़ हे । जनसंख्या बाढ़े झन, नोनी-बाबू होवे कम छोटे परिवार के तो,  येही बात सार हे ।। घर-दुवार टोर के,  ददा-दाई ला छोड़  के,  नवा-नवा सोच धरे, रचे ओ संसार  हे । फेर टूटे परिवार, केवल दू-दुवा चार कइसे के कही येही, छोटे परिवार हे ।। -रमेश चौहान

संयुक्त परिवार

चित्र गुगल से साभार कका-काकी दाई-ददा, भाई-भौजी  बड़े दाई, आनी-बानी फूल बानी, घर ला सजाय हे । धनिया मिरचा, संग पताल के हे चटनी दार-भात संग साग, कौरा तो कहाय हे।। संग-संग मिलजुल, दुख-सुख बांट-बांट परिवार नाम धर, संघरा कमाय हे। मिले-जुले परिवार, गांव-गांव देख-देख, अनेकता मा एकता,  देश मा कहाय हे।। -रमेश चौहान 

तोर बिना रे जोही (छत्तीसगढ़ी माहिया)

चित्र गुगल से साभार लुहुर-तुहुर मन तरसे सावन के बदरी झिमिर-झिमिर जब बरसे सपना मोला भाथे खुल्ला आँखी जब मुहरन तोर समाथे खोले मन के पाँखी सपना के बादर खोजय तोला आँखी चलय देह मा  स्वासा मन मा जबतक हे तोर मिलन के आसा जोहत तोर अगोरा आँखी पथरागे तोर मया के बोरा तोर बिना रे जोही जीवन नइया के कोन जनी का होही

भाईदूज के दिन

चित्र गुगल से साभार /तुकबंदी/ भाईदूज के दिन , मइके जाहूँ कहिके बाई बिबतियाये रहिस  तिहार-बार के लरब ले झूकब बने अइसे सियानमन सिखाये रहिस जब मैं  पहुँचेवँ ससुरार, गाँव  मातर मा बउराये रहिस । घर मोहाटी देखेंवँ ऊहाँ सारा के सारा आये रहिस । भाईदूज के कलेवा  झड़के, माथा मा चंदन-चोवा लगाये रहिस येहूँ जाके अपन भाई के पूजा कर दू-चारठन रसगुल्ला खवाय रहिस आज कहत हे भाई  मोला सौ रुपया देइस अउ अपन सारा बर पेंट-कुरथा लाये रहिस -रमेश चौहान

मजा आगे आसो के देवारी म

/तुकबंदी/ मजा आगे मजा आगे आसो के देवारी मा देवारी मा जुरे जुन्ना संगवारी मा लइका मन के दाँय-दाँय फटाका मा घर दुवारी पूरे रंगोली के चटाका मा मजा आगे मजा आगे  देख पहटिया के मातर गउठान के साकुर चउक- चाकर गउरा-गउरी के परघौनी मा दरुहा-मंदहा के बचकौनी मा मजा आगे मजा आगे आसो जुँवा के हारे मा आन गाँव के टूरामन ला मारे मा चिहुरपारत  जवनहा मन के झगरा मा दरुहामन के बधिया कस ढलगे डबरा मा मजा आगे सिरतुन मा मजा आगे  आसो के पीये दारु मा गली-गली मंद बाजारु मा देवारी के तिहार मा दारु के बाजार मा -रमेश चौहन

सरकारी सम्मान

सरकारी सम्मान के, काला हे सम्मान । कोन नई जानत हवय, का येखर पहिचान । का येखर पहिचान, खुदे ला दे डारे हें । भाइ भतीजावाद, देख के निरवारे हें । बनय खुसामदखोर, तेखरे आथे पारी । अइसन के सम्मान, कहाथे गा सरकारी ।। -रमेश चौहान

छेरी के गोठ

गाय-गाय के रट ला छोड़व, कहत हवय ये छेरी । मैं ओखर ले का कमतर हँव, सोचव घेरी-बेरी ।। मोर दूध ला पी के देखव, कतका गजब सुहाथे । हाथी-बघवा जइसे ताकत, देह तोर सिरजाथे ।। मैं डारा-पाना भर खाथँव, ओ हा झिल्ली पन्नी । खेत-खार ला तोरे चर के, कर दै झार चवन्नी ।। कभू-कभू मैं हर देखे हँव, तोरे गुह ला खावत । लाज-शरम ला बेच-बेच के, चारो मुड़ा मेछरावत , ।। गोबर ओखर खातू हे तऽअ, मोरो छेरी-लेड़ी । डार देखलव धान-पान मा,, गजब बाढ़ही भेरी ।। मूत ओखरे टीबी मेटय, मोर दमा अउ खाँसी । पूजा थारी ओला देथस, मोला काबर फाँसी ।।

अरुण निगम

अरुण निगमजी भेट हे, जनम दिन उपहार । गुँथत छंद माला अपन, भेट छंद दू चार ।। नाम जइसे आपके हे, काम हमला भाय । छंद साधक छंद गुरु बन, छंद बदरा बन छाय ।। मोठ पानी धार जइसे, छंद ला बरसाय । छंद चेला घात सुख मा, मान गुरु हर्षाय ।। छंद के साध ला छंद के बात ला, छंद के नेह ला जे रचे पोठ के । बाप से बाचगे काम ओ हाथ ले, बाप के पाँव के छाप ला रोठ के ।। गाँव के प्रांत के मान ला बोहिके, रेंग के वो गढ़े हे गली मोठ के । आप ला देख के आप ला लेख के, गोठ तो हे करे प्रांत के गाेठ के ।। बादर हे साहित्य, अरुण सूरज हे ओखर । चमकत हे आकाश, छंद कारज हा चोखर ।। गाँव-गाँव मा आज, छंद के डंका बाजय । छंद छपे साहित्य, आज बहुते के साजय ।। दिन बहुरहि सिरतुन हमर, कटही करिया रात गा । भाखा छत्तीसगढ़ के, करहीं लोगन बात गा ।। कोदूराम "दलित" मोर, गुरु मन के माने । छंद के उजास देख, अउ अंतस जाने ।। अरुण निगम मोर आज, छंद कलम स्याही । जोड़ के "रमेश" हाथ, साधक बन जाही ।।

छोड़! गली-खोर छोड़ दे

छोड़! गली-खोर छोड़ दे । टोर! लोभ-मोह टोर दे फोर! पाप-घड़ा फोर ले । जोर! धरम-करम जोर ले चाकर होवय गाँव के गली । सब हरहिंछा रेंग चली खोर गली ला छोड़ दौ सबे । सरगे लगही गाँव हा तभे का करबे ये जान के, का होही गा काल । काम आज के आज कर, छोड़ बाल के खाल ।। तीजा-पोरा गाँव के, सुग्घर हवय तिहार । बेटीमन के मान ला, राखे हवय सम्हार ।।

छत्तीसगढ़ी दोहे

काल रहिस आजो हवय, बात-बात मा भेद । चलनी एके एक हे, भले हवय कुछ छेद ।। मइल कहाथे हाथ के, पइसा जेखर नाम । ज्ञान लगन के खेल ले, करे हाथ हा काम ।। काम-बुता पहिचान हे, अउ जीवन के नाम । करम नाम ले धरम ये, मानवता के काम ।। छत्तीसगढ़ी दिन भर बोले, घर संगी के संग । फेर पढ़े बर तैं हर ऐला, होथस काबर जंग ।। माँ-बापे ला मार के, जेने करे बिहाव । कतका कोने हे सुखी, थोकिन करव हियाव ।। बिना निमारे दाई पाये, बिना निमारे बाप । जावर-जीयर छांट निमारे, तभो दुखी हव आप । सुरता ओखर मैंं करँव, जेन रहय ना तीर । तोर मया दिल मा बसय, काबर होय अधीर ।। नेता फूल गुलाब के, चमचा कांटा झार । बिना चढ़े तो निशयनी, पहुँचे का दरबार ।। मोरे देह कुरूप हे, कहिथे कोन कुरूप । अपन खदर के छाँव ला, कहिथे कोने धूप ।। कहिथे कोने धूप, अपन जेने ला माने । अपन सबो संस्कार, फेर घटिया वो जाने ।। अपने पुरखा गोठ, कोन रखथे मन घोरे । अपन ददा के धर्म, कोन कहिथे ये मोरे ।। केवल एक मयान अउ, दूठन तो तलवार हे । हमर नगर के हाल के, नेता खेवनहार हे ।। नेता फूल गुलाब के, चमचा कांटा झार । बिना चढ़े तो निशयनी, पहुँचे

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