गाय-गाय के रट ला छोड़व, कहत हवय ये छेरी ।
मैं ओखर ले का कमतर हँव, सोचव घेरी-बेरी ।।
मोर दूध ला पी के देखव, कतका गजब सुहाथे ।
हाथी-बघवा जइसे ताकत, देह तोर सिरजाथे ।।
मैं डारा-पाना भर खाथँव, ओ हा झिल्ली पन्नी ।
खेत-खार ला तोरे चर के, कर दै झार चवन्नी ।।
कभू-कभू मैं हर देखे हँव, तोरे गुह ला खावत ।
लाज-शरम ला बेच-बेच के, चारो मुड़ा मेछरावत , ।।
गोबर ओखर खातू हे तऽअ, मोरो छेरी-लेड़ी ।
डार देखलव धान-पान मा,, गजब बाढ़ही भेरी ।।
मूत ओखरे टीबी मेटय, मोर दमा अउ खाँसी ।
पूजा थारी ओला देथस, मोला काबर फाँसी ।।
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