सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कतका झन देखे हें-

मोर कलम शंकर बन जाही

छत्तीसगढ़ी मा नवगीत के कोठी-‘‘मोर कलम शंकर बन जाही’’ छत्तीसगढ़ी नवगीत के ये पहिली नवगीत संग्रह आय । ये पुस्तक मा आप ला नवा-नवा बिम्ब प्रतिक मा रचना पढ़े ला मिलही, येला एक बार जरूर पढ़व- ➤ पुस्तक ला पढ़व

राउत नाचा बर दोहा

 अव्यवस्था के खिलाफ बियंग भरे सरसी छंद                                                                         चित्र गुगल से साभार दू पइसा मा मँहगा होगे, गउ माता हा आज रे । कुकरी-कुकरा संग बोकरा, करत हवय अब राज रे। बइला के पूछारी नइ हे, भइसा ला झन पूछ रे । आनी बानी के मषीन मा, अब देखावय सूझ रे ।। सरकारी जमीन खाली हे, जाके ओला छेक रे । आज नहीं ता काली तोला, पट्टा मिलही नेक रे ।। कोला-बारी खेत बना ले, नदिया नरवा पाट रे। घर कुरिया अउ महल बना ले,  छेकत रद्दा बाट रे।। सरकार नगत के डर्राथे,  तोर हाथ मा वोट रे । मन भर ऊदा-बादी करले, कोने देही चोट रे ।। मनभर करजा कर ले तैं हा,  होबे करही छूट रे । नेता भर मन काबर खावय, तहूँ ह मिलके लूट रे ।। बने मजा हे गरीबहा के, बन के तहूँ ह देख रे । आनी-बानी हवय फायदा, नेतागिरी सरेख रे ।। आँखी रहिके बन ज अंधरा, भैरा बन धर कान रे । कागज भर तो चाही तोला, मिलय नौकरी जान रे ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

थोकिन जाके देख

चित्र गुगल से साभार सरसी छंद दू पइसा मा मँहगा होगे, गउ माता हा आज । कुकरी-कुकरा संग बोकरा, करत हवय अब राज । कुण्डलियाँ घुरवा अउ कोठार बर, परिया राखँय छेक । अब घर बनगे हे इहाँ, थोकिन जाके देख ।। थोकिन जाके देख, खेत होगे चरिया-परिया । बचे कहाँ हे गाँव, बने अस एको तरिया ।। ना कोठा ना गाय, दूध ना एको चुरवा । पैरा बारय खेत, गाय ला फेकय घुरवा ।। -रमेश चौहान

सार छंद मा सार गोठ

जउन बहुत के करय चोचला, अलग अपन ला मानय । संग ओखरे रहय न कोनो, संग छोड़के भागय।। जेन मिलय गा खोल करेजा, छोड़ कपट के बाना । संग ओखरे मुले-जुले बर, मुड़ मा रेंगत जाना ।।1।। कभू अपनपन भूलाहू झन, मोर जेन ला मानव । जान भले जावय ता जावय, भार-भरोसा तानव ।। लोहा देखत पानी देवय, दुनिया येखर साखी । जेन जेन आँखी ले देखय, देखव ओही आँखी ।।2।। -रमेशकुमार चौहान

छोटे परिवार

चित्र गुगल से साभार छोटे परिवार हवे, सुख के आधार संगी, जेन नहीं  तेन कहे,, मनखे के बाढ़ हे । जनसंख्या बाढ़े झन, नोनी-बाबू होवे कम छोटे परिवार के तो,  येही बात सार हे ।। घर-दुवार टोर के,  ददा-दाई ला छोड़  के,  नवा-नवा सोच धरे, रचे ओ संसार  हे । फेर टूटे परिवार, केवल दू-दुवा चार कइसे के कही येही, छोटे परिवार हे ।। -रमेश चौहान

संयुक्त परिवार

चित्र गुगल से साभार कका-काकी दाई-ददा, भाई-भौजी  बड़े दाई, आनी-बानी फूल बानी, घर ला सजाय हे । धनिया मिरचा, संग पताल के हे चटनी दार-भात संग साग, कौरा तो कहाय हे।। संग-संग मिलजुल, दुख-सुख बांट-बांट परिवार नाम धर, संघरा कमाय हे। मिले-जुले परिवार, गांव-गांव देख-देख, अनेकता मा एकता,  देश मा कहाय हे।। -रमेश चौहान 

तोर बिना रे जोही (छत्तीसगढ़ी माहिया)

चित्र गुगल से साभार लुहुर-तुहुर मन तरसे सावन के बदरी झिमिर-झिमिर जब बरसे सपना मोला भाथे खुल्ला आँखी जब मुहरन तोर समाथे खोले मन के पाँखी सपना के बादर खोजय तोला आँखी चलय देह मा  स्वासा मन मा जबतक हे तोर मिलन के आसा जोहत तोर अगोरा आँखी पथरागे तोर मया के बोरा तोर बिना रे जोही जीवन नइया के कोन जनी का होही

भाईदूज के दिन

चित्र गुगल से साभार /तुकबंदी/ भाईदूज के दिन , मइके जाहूँ कहिके बाई बिबतियाये रहिस  तिहार-बार के लरब ले झूकब बने अइसे सियानमन सिखाये रहिस जब मैं  पहुँचेवँ ससुरार, गाँव  मातर मा बउराये रहिस । घर मोहाटी देखेंवँ ऊहाँ सारा के सारा आये रहिस । भाईदूज के कलेवा  झड़के, माथा मा चंदन-चोवा लगाये रहिस येहूँ जाके अपन भाई के पूजा कर दू-चारठन रसगुल्ला खवाय रहिस आज कहत हे भाई  मोला सौ रुपया देइस अउ अपन सारा बर पेंट-कुरथा लाये रहिस -रमेश चौहान

मजा आगे आसो के देवारी म

/तुकबंदी/ मजा आगे मजा आगे आसो के देवारी मा देवारी मा जुरे जुन्ना संगवारी मा लइका मन के दाँय-दाँय फटाका मा घर दुवारी पूरे रंगोली के चटाका मा मजा आगे मजा आगे  देख पहटिया के मातर गउठान के साकुर चउक- चाकर गउरा-गउरी के परघौनी मा दरुहा-मंदहा के बचकौनी मा मजा आगे मजा आगे आसो जुँवा के हारे मा आन गाँव के टूरामन ला मारे मा चिहुरपारत  जवनहा मन के झगरा मा दरुहामन के बधिया कस ढलगे डबरा मा मजा आगे सिरतुन मा मजा आगे  आसो के पीये दारु मा गली-गली मंद बाजारु मा देवारी के तिहार मा दारु के बाजार मा -रमेश चौहन

सरकारी सम्मान

सरकारी सम्मान के, काला हे सम्मान । कोन नई जानत हवय, का येखर पहिचान । का येखर पहिचान, खुदे ला दे डारे हें । भाइ भतीजावाद, देख के निरवारे हें । बनय खुसामदखोर, तेखरे आथे पारी । अइसन के सम्मान, कहाथे गा सरकारी ।। -रमेश चौहान

मोर दूसर ब्लॉग