अव्यवस्था के खिलाफ बियंग भरे सरसी छंद
दू पइसा मा मँहगा होगे, गउ माता हा आज रे ।
कुकरी-कुकरा संग बोकरा, करत हवय अब राज रे।
बइला के पूछारी नइ हे, भइसा ला झन पूछ रे ।
आनी बानी के मषीन मा, अब देखावय सूझ रे ।।
सरकारी जमीन खाली हे, जाके ओला छेक रे ।
आज नहीं ता काली तोला, पट्टा मिलही नेक रे ।।
कोला-बारी खेत बना ले, नदिया नरवा पाट रे।
घर कुरिया अउ महल बना ले, छेकत रद्दा बाट रे।।
सरकार नगत के डर्राथे, तोर हाथ मा वोट रे ।
मन भर ऊदा-बादी करले, कोने देही चोट रे ।।
मनभर करजा कर ले तैं हा, होबे करही छूट रे ।
नेता भर मन काबर खावय, तहूँ ह मिलके लूट रे ।।
बने मजा हे गरीबहा के, बन के तहूँ ह देख रे ।
आनी-बानी हवय फायदा, नेतागिरी सरेख रे ।।
आँखी रहिके बन ज अंधरा, भैरा बन धर कान रे ।
कागज भर तो चाही तोला, मिलय नौकरी जान रे ।।
-रमेशकुमार सिंह चौहान
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