ये अकरस के पानी (सार छंद) फोटो स्रोत-गुगल से साभार 1. संयोग श्रृंगार/अनुप्रास अलंकार सरर-सरर सरसरावत हवय, दुल्हा बन पुरवाही । धरती दुल्हन के घूंघट धर, लगथे आज समाही ।। घरर-घरर घरघरावत हवय, बदरा अपन जुबानी । दूनों झन खुशमुसावत हवय, ले अकरस के पानी ।। 2. वियोग श्रृगार/यमक अलंकार काम के चक्कर मा काम मरगे, नो हँव मैं सन्यासी । दूनों प्राणी करन नौकरी, मन मा आज उदासी ।। वो ऊहाँ मैं इहाँ मरत हँव, का राजा का रानी । अकेल्ला म अउ जाड़ बढ़ावय, ये अकरस के पानी ।। 3. करूण रस/श्लेष अलंकार घपटे ओ सुरता के बादर, बेरा मा झर जाथे । नाक-कान ला नोनी काटे, नाक-कान बोजाथे ।। मोरे कोरा के ओ लइका, रहिस न बिटिया रानी । झरर-झरर अब आँसु झरत हे, जस अकरस के पानी ।। 4. हास्य रस/श्लेष अलंकार कवि जोकर कस मसखरी करय, लाइन चार सुनाये । लिखे आन के चारों लाइन, अपने तभो बताये ।। हाँहाँ-हाँहाँ किलकारी भर, स्रोता करय सियानी । सोला आना कविता बाँचब, हे अकरस के पानी ।। 5. वीर रस/रूपक अलंकार सूरज के मैं आगी बारँव, अउ चंदा के भुर्री । बैरी जाड़ा जब बन आ