चित्र गुगल से सौजन्य
एक अकेला आए जग मा, एक अकेला जाबे ।
जइसे करनी तइसे भरनी, अपन करम गति पाबे ।।
माटी होही तोरे चोला, माटी मा मिल जाबे ।
नाम करम के जिंदा रहिही, जब तैं काम कमाबे ।।
चरदिनिया ये संगी साथी, बने बने मा भाथे ।
चारा मनभर चरय बोकरा, फेर कहां मिमियाथे ।।
हाथ-गोड़ के लरे-परे मा, संगी कोन कहाथे ।
अपन देह हा अपने ऊपर, पथरा असन जनाथे ।।
कोन जनी गा काखर मेरा,, भरे हवय कोरोना ।
संगी साथी ला देखे मा तो, परही तोला रोना ।।
भीड़-भाड़ ले दूरिया रही के, अपना हाथ ला धोना ।
रोग बड़े है दुनिया बोलय, मत तैं समझ खिलौना ।।
-रमेश चौहान
गजब सुघ्घर सामयिक रचना बधाई...
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