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संदेश

कतका झन देखे हें-

सस्‍ता ल नहीं अपन ल देख

सस्ता मा समान बेच, लालच देखावत हे, हम बिसावत हन के, हमला बिसावत हे  । धरे हन मोबाइल,  चाइना हम हाथ मा, ओही मोबाइल बीच,  चीन डेरूवावत  हे । बात-बात मा चाइना, हर काम मा चाइना सस्‍ता के ये चक्‍कर ह, चक्‍कर बनावत हे । सस्‍ता के ये चक्‍कर म, अपनेे ला झन बेच अपनो ल देख संगी, तोला ओ बिगाड़त हे ।

मजदूर काबर मजबूर हे

जांगर टोर-जेन हा, खून पसीना बहाये, ओही मनखे के संगी, नाम मजदूर हे । रिरि-रिरि दर-दर, दू पइसा पाये बर ओ भटका खायेबर, आज मजबूर हे । अपन गाँव गली छोड़, अपने ले मुँह मोड़ जाके परदेश बसे, अपने ले दूर हे । सुख-दुख मा लहुटे, फेर शहर पहुटे हमर बनिहार के, एहिच दस्तूर हे ।। कोरोना माहामारी के, मार पेट मा सहिके का करय बिचारा, गाँव कोती आय हे । करे बर बुता नहीं, खाये बर कुछु नहीं डेरा-डंडी छोड़-छाड, दरद देखाय हे । नेता हल्ला-गुल्ला कर, अपने रोटी सेकय दूसर के पीरा मा, राजनीति भाय हे । येखर-वोखर पाला, सरकार गेंद फेकत अपने पूछी ल संगी, खुदे सहराय हे । -रमेश चौहान

पानी ले हे हमरे जिनगानी, पानी आज बचावव

सार छंद

कोरोना आये, चेत हराये

गैसटिक बर घरेलू नूसखा

कोरोना (सार छंद)

चित्र गुगल से सौजन्य एक अकेला आए जग मा,  एक अकेला जाबे । जइसे करनी तइसे भरनी, अपन करम गति पाबे ।। माटी होही तोरे चोला, माटी मा मिल जाबे । नाम करम के जिंदा रहिही, जब तैं काम कमाबे ।। चरदिनिया ये संगी साथी, बने बने मा भाथे । चारा मनभर चरय बोकरा, फेर कहां मिमियाथे ।। हाथ-गोड़ के लरे-परे मा, संगी कोन कहाथे ।  अपन देह हा अपने ऊपर, पथरा असन जनाथे ।। कोन जनी गा काखर मेरा,, भरे हवय कोरोना । संगी साथी ला देखे मा तो,  परही तोला रोना ।। भीड़-भाड़ ले दूरिया रही के, अपना हाथ ला धोना । रोग बड़े है दुनिया बोलय, मत तैं समझ खिलौना ।। -रमेश चौहान

बुद्धिजीवी ज्ञान तोरे, आज बैरी कस खड़े

बुद्धिजीवी ज्ञान तोरे, आज बैरी कस खड़े । देश द्रोही साथ धर के, आज बैरी कस लड़े।। देश सबले तो बड़े हे, थोरको तैं नइ पढ़े । ज्ञान सब बेकार होथे, देश जेने ना गढ़े ।। बुद्धिजीवी ज्ञान तोरे, आज अपने पास धर । ज्ञान अपने हाथ धर के, सोच अपने सोझ कर ।। उग्रवादी तोर भाई, देशप्रेमी शत्रु हे । लाज घर के बेच खाये, कोन तोरे शत्रु हे ।। -रमेश चौहान

गजल- गाँव का कम हे शहर ले

गजल- गाँव का कम हे शहर ले (बहर-2122   2122) गाँव का कम हे शहर ले देख ले चारों डहर ले ऊँहा के सुविधा इँहो हे आँनलाइन के पहर ले हे गली पक्की सड़क हा तैं हा बहिरी धर बहर ले ये कलेचुप तो अलग हे शोरगुल के ओ कहर ले खेत हरियर खार हरियर बचे हे करिया जहर ले ऊँचपुर कुरिया तने हे देख के तैं हा ठहर ले -रमेश चौहान

मनखे होय म शक हे

नवगीत चाल-चलन ला तोरे देखे  मनखे होय म शक हे टंगिया के डर मा थर-थर काँपे धरती के रूख-राई कभू कान दे के सुने हवस रूख राई के करलाई टंगिया के मार सही के रूखवा के तन धक हे नदिया-नरवा रोवत रहिथे अपने मुँड़ ला ढांके मोरे कोरा सुन्ना काबर तीर-तार ला झांके मोर देह मा चिखला पाटे ओखर कुरिया झक हे मौनी बाबा जइसे पर्वत चुपे-चाप तो बइठे हे ओखर छाती कोदो दरत मनखे काबर अइठे हे फोड़ फटाका टोर रचाका ओखर छाती फक हे हवा घला हा तड़फत हावे करिया कुहरा मा फँस के कोने ओखर पीरा देखय करिया कुहरा मा धँस के पाप कोखरो भोगय कोनो ये कइसन के लक हे -रमेशकुमार सिंह चौहान

कब जाही दूरदिन

गुगल से सौजन्य झक सफेद खरगोश असन आही का कोनो दिन घेरी-घेरी साबुन ले धोवत हँव सपना कोन जनी येहू हा होही के नहीं अपना आँखी के पाँखी दउड़-दउड़ करत हे खोजबिन खरे मझनिया के सूरूज ठाढ़े-ठाढ़े सोचय ढलती जवानी मा लइकापन हा नोचय चाउर-दार के झमेला गड़ावत हे आलपिन धरती ले अगास तक उत्ती ले बुडती सपना समाये वाह रे मोरे मन कोनो मेर नई अघाये सिखौना मिठ्ठू कस रटत हवय कब जाही दूरदिन -रमेश चौहान

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