सार छंद
पानी के हे मारा-मारी, कुछु तो सोच-बिचारव ।
पानी ले हमरे जिनगानी, अब तो प्राण उबारव ।।
पानी कमती काबर होवय, कारण घला बिचाराव ।
ओही कारण ला मेटी के, जीवन हमर उबारव ।
बरखा पानी नदिया भरथे, भरथे तरिया पानी ।
तभे भुईया भीतर आथे, निर्मल गुरतुर पानी ।।
नदिया छेके नरवा छेके, छेके हस तैं तरिया ।
पानी कामा आज समावय, बाचे ना कुछु परिया ।
दू बीता अउ दू आंगुर के ,लालच भारी परही ।
करम तोर अइसन होही ता, पीढ़ी कइसे तरही ।।
नदिया-नरवा तरिया डबरी, आज बचाबो संगी ।
तभे काल हम नहीं न पाबो, पानी के कुछु तंगी ।।
पानी आज बचाबो तब ना, काली पानी पाबो ।
पानी के हर स्रोत बचाके, लइका मन ल धराबो ।।
पानी बर नदिया-नरवा, ला, आज बचावव संगी ।
सोचव घेरी-बेरी सोचव, होवय मत अब तंगी ।
-रमेश चौहान
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