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संदेश

कतका झन देखे हें-

मउत

मउत ह करिया बादर बन चौबीस घंटा छाये हे कभू सावन के बादर बन खेत खार ला हरियावय फल-फूल अन्न-धन्न  उपजाके जीव-जीव ला सिरजावय कभू-कभू गाज बनके आगी ल बरसाये हे ओही बादर ला देख मनखे झूमय नाचय आगी कस दहकत घाम ले मनखे-मनखे बाचय गुस्सा मा जब बादर फाटय पर्वत घला बोहाये हे एक बूँद बरसे न जब बादर चारो कोती हाहाकार मचे हे सृष्टि के हर अनमोल रचना ये चक्कर ले कहां बचे हे आवत-जावत करिया बादर सब ला नाच नचाये हे

मन के परेवना

मन के परेवना उड़ी-उड़ी के दुनिया भर घूमत हे ठोमहा भर मया होतीस सुकुन के पेड़ जेन बोतीस लहर लहर खुषी के लहरा तन मन ला मोर भिगोतीस आँखी मा सपना देखी-देखी के अपने तकिया चूमत हे अरझे सूत ला खोलत-खोलत अपने अपन मा बोलत-बोलत जीनगी के फांदा मा फसे चुरमुरावत हे डोलत-डोलत अपने हाथ ला चाब-चाब के अपने आँखी ला घूरत हे

गीत कोयली लीम करेला

गीत कोयली लीम करेला कउवा बोली आमा उत्ती के सुरूज, बुड़ती उवय बुड़ती के सुरूज उत्ती बुड़य मनखे नवा सोच ला पाये शक्कर मा मिरचा ला गुड़य होगे जुन्ना हा, जहर महुरा आये नवा जमाना डिलवा डिलवा डबरा होगे डबरा डबरा बिल्डिंग पोगे कका बबा के संगे छोड़े दाई ददा हा अलग होगे । माचिस काड़ी छर्री-दर्री समाही अब कामा झूठ लबारी उज्जर दिखय अंधरा मन इतिहास लिखय अपन भाषा हा पर के लागय पर के भाषा मनखे मन सीखय खड़े पेड़ ला टंगिया मा काटय बोये नवा दाना

अंधियारी मेट दे

(गीतिका छंद) ठान ले मन मा अपन तैं, जीतबे हर हाल मा । जोश भर के नाम लिख दे, काल के तैं गाल मा । नून बासी मा घुरे कस, दुख खुशी ला फेट दे । एक दीया बार के तै, अंधियारी मेट दे ।

पढ़े काबर चार आखर,

रूपमाला छंद पढ़े काबर चार आखर, इहां सोचे कोन । डालडा के बने गहना, होय चांदी सोन ।। पेट पूजा करे भर हे, बने ज्ञानी पोठ । सबो पढ़ लिख नई जाने, गाँव के कुछु गोठ ।। मोर लइका मोर बीबी, मोर ये घर द्वार । छोड़ दाई ददा भाई, करे हे अत्याचार ।। सोंध माटी नई जाने, डगर के चिखला देख । पढ़े अइसन दिखे ओला, गांव मा मिन मेख । ज्ञान दीया कहाथे जब, कहां हे अंजोर । नौकरी बर लगे लाइन, अपन गठरी जोर ।।

गांव

मधुमालती छंद सुन गोठ ला, ये धाम के। पहिचान हे, जे काम के हम आन के, खाये सुता । धर खांध ला, करथन बुता छोटे बड़े, देथे मया । सब आदमी,  करथे दया सुख आन के, मन मा धरे । दुख आन के, सब झन भरे काकी कका, भइया कहे । दाई बबा, सब बर सहे हर बात ला, सब मानथे । सब नीत ला, भल जानथे चल खेत मा, हँसिया धरे । हे धान मा, निंदा भरे दाई कहे, चल बेटवा ।  मत घूम तै, बन लेठवा ये देष के, बड़ शान हे । जेखर इहां तो मान हे जेला कहे, सब गांव हे । जे स्वर्ग ले निक ठांव हे

//मुक्तक//

सीखव सीखव बने सीखव साँव चेत होय । आशा पैदा करव खातूहार खेत होय ।। बदरा बदरा निमारव छाँट बीज भात पानी बादर सहव संगी नदी रेत होय ।। -रमेश चौहान

कतका दिन ले सहिबो

जे चोरी लुका करय, अड़बड़ घात । अइसन बैरी ला अब, मारव लात ।। कतका दिन ले सहिबो, अइसन बात । कब तक बिरबिट करिया, रहिही रात ।। नई भुलाये हन हम, पठान कोट । फेर उरी मा कइसे, होगे चोट ।। बीस मार के बैरी, मरथे एक । अब तो बैरी के सब, रद्दा छेक । कठपुतली के डोरी, काखर हाथ । कोन-कोन देवत हे, उनखर साथ ।। छोलव चाचव अब तो , कचरा कांद । बैरी हा घुसरे हे, जेने मांद ।।

//भ्रष्टाचार// (नवगीत)

घुना किरा जइसे कठवा के भ्रष्टाचार धसे हे लालच हा अजगर असन मनखे मन ला लिलत हे ठाठ-बाट के लत लगे दारू-मंद कस पियत हे पइसा पइसा मनखे चिहरय जइसे भूत कसे हे दफ्तर दफ्तर काम बर टेक्स लगे हे एक ठन खास आम के ये चलन बुरा लगय ना एक कन हमर देश के ताना बाना हा  अपने जाल फसे हे रक्तबीज राक्षस असन सिरजाथे रक्सा नवा चारो कोती हे लमे जइसे बगरे हे हवा अपन हाथ मा खप्पर धर के अबतक कोन धसे हे ।

प्रभु ला हस बिसराये

चवपैया छंद काबर तैं संगी, करत मतंगी, प्रभु ला हस बिसराये। ये तोरे काया, प्रभु के दाया, ओही ला भरमाये ।। धर मनखे चोला, कइसे भोला, होगे खुद बड़ ज्ञानी । तैं दुनिया दारी, करथस भारी, जीयत भर मन मानी ।। रमेश चौहान

कहस अपन ला मनखे तैं हा

तोर करेजा पथरा होगे । जागे जागे कइसे सोगे । आँखी आघू कुहरा छागे अपन सुवारथ आघू आगे कहस अपन ला मनखे तैं हा तोरे सेती दूसर भोगे । बेजा कब्जा घात करे हस जगह जगह मा मात करे हस खोर-गली अउ तरिया परिया जेती देखव एके रोगे । पर के बांटा अपने माने फोकट बर तैं पसर ल ताने एको लाज न तोला आवय ये गौटिया भिखारी होगे ।

छत्तीसगढ़ी नवगीत: नाचत हे परिया

(नवगीत म पहिली प्रयास) नाचत हे परिया गावत तरिया घर कुरिया ला, देख बड़े । सुन्ना गोदी अब भरे दिखे आदमी पोठ अब सब झंझट टूट गे सुन के गुरतुर गोठ सब नरवा सगरी अउ पयडगरी सड़क शहर के, माथ जड़े । सोन मितानी हे बदे, करिया लोहा संग कांदी कचरा घाट हा देखत हे हो दंग चौरा नंदागे, पार हरागे बइला गाड़ी, टूट खड़े । छितका कोठा गाय के पथरा कस भगवान पैरा भूसा ले उचक खाय खेत के धान नाचे हे मनखे बहुते तनके खटिया डारे, पाँव खड़े ।।

ये बरखा रानी विनती सुनलव

ये बरखा रानी, सुनव कहानी, मोर जुबानी, ध्यान धरे । तोरे बिन मनखे, रहय न तनके, खाय न मनके, भूख मरे ।। बड़ चिंता करथें, सोच म मरथे, देखत जरथे, खेत जरे । कइसे के जीबो, काला पीबो, बूंद न एको, तोर परे ।। थोकिन तो गुनलव, विनती सुनलव, बरसव रद्-रद्, एक घड़ी । मानव तुम कहना, फाटे धनहा, खेत खार के, जोड़ कड़ी ।। तरिया हे सुख्खा, बोर ह दुच्छा, बूंद-बूंद ना, हाथ धरे । सुन बरखा दाई, करव सहाई, तोर बिना सब, जीव मरे ।।

भौजी

ये सुक्सा भाजी, खाहव काजी, पूछय भौजी, साग धरे  । ओ रांधत जेवन, खेवन-खेवन, डारत फोरन, मात करे ।। ओखर तो रांधे, सबो ल बांधे, मया म फांदे, जोर मया । जब दाई खावय, हाँस बतावय, बहुत सुहावय, देत दया ।

रदिफ, काफिया,बहर

221/ 222/ 212/ 2222 आखिर म घेरी-बेरी जउन आखर आथे । ओ हा गजल मुक्तक के रदिफ तो बन जाथे । तुक काफिया हा होथे रदिफ के आघू मा, एके असन मात्रा क्रम बहर बन इतराथे  । -रमेश चौहान

हमर इज्जत ला लूटत हवे

122 222 212 कुकुर माकर कस भूकत हवे । शिकारी कस तो टूटत हवे ।। बने छैला टूरा मन इहां हमर इज्जत ला लूटत हवे ।

सुन रे भोला

ये मनखे चोला, सुन रे भोला, मरकी जइसे, फूट जथे । ये दुनियादारी, चार दुवारी, परे परे तो, छूट जथे ।। मनखेपन छोड़े, मुँह ला मोड़े, सबो आदमी, ठाँड़ खड़े । अपने ला माने, छाती ताने, मारत शाने, दांव लड़े ।।

देख महंगाई

ये चाउर आटा, भाजी भाटा, आही कइसे, दू पइसा । देखव महँगाई, बड़ करलाई, मनखे होगे, जस भइसा ।। वो दिन अउ राते, काम म माते, बस पइसा के, चक्कर मा । माथा ला फोरे, जांगर टोरे, अपन पेट के, टक्कर मा ।

मुक्तक

मुक्तक 122 222, 221 121 2 सुते मनखे ला तै, झकझोर उठाय हस । गुलामी के भिथिया, तैं टोर गिराय हस ।। उमा सुत लंबोदर, वो देश ल देख तो । भरे बैरी मन हे, तैं आज भुलाय हस । -रमेश चौहान

मुक्तक

मुक्तक 222 212, 211 2221 आखर के देवता, ज्ञान भरव महराज । बाधा के हरइया, कष्ट हरव महराज ।। जग के गण राज तैं, राख हमर गा मान । हम सब तोरे शरण, हाथ धरव महराज ।। -रमेश चौहान

जस चश्मा के रंग होय

जस चश्मा के रंग होय । तइसे मनखे दंग होय भाटा कइसे हवय लाल । पड़े सोच मा खेमलाल चश्मा ला मन मा चढ़ाय । जग ला देखय हड़बड़ाय करिया करिया हवय झार । ओ हा कहय मन ला मार अपन सोच ले दुनिया देख । मनखे जग के करे लेख तोर मोर हे एक रंग । कहिथे जब तक रहय संग दुनिया हा तो हवय एक । दिखथे घिनहा कभू नेक दुनिया के हे अपन हाल । तोरे मन के अपन चाल दस अँगरी हे तोर हाथ । छोटे बड़े हवे एक साथ मुठ्ठी बनके रहय संग । काबर होथव तुमन तंग

बादर पानी मा कभू

बादर पानी मा कभू, चलय न ककरो जोर । कब होही बरखा इहां, जानय वो चितचोर ।। जानय वो चितचोर, बचाही के डूबोही । वोही लेथे मार, दया कर वो सिरजोही । माथा धरे रमेश, छोड़ बइठे हे मादर । कइसे करय उमंग, दिखय ना पानी बादर ।।

तीजा

करू करेला तैं हर रांध । रहिबो तीजा पेट ल बांध तीजा मा निरजला उपास । नारीमन के हे विश्वास छत्तीसगढ़ी ये संस्कार । बांधय हमला मया दुलार धरके श्रद्धा अउ विश्वास । दाई माई रहय उपास सीता के हे जइसे राम । लक्ष्मी के हे जइसे श्याम गौरी जइसे भोला तोर । रहय जियर-जाँवर हा मोर अमर रहय हमरे अहिवात । राखव गौरी हमरे बात मांघमोति हा चमकय माथ । खनकय चूरी मोरे हाथ नारी बर हे पति भगवान । मांगत हँव ओखर बर दान काम बुता ला ओखर साज । रख दे गौरी हमरे लाज

मुक्तक

डगर मा पांव अउ मंजिल मा आँखी होवय । सरग ला पाय बर तोरे मन पाँखी होवय ।। कले चुप हाथ धर के बइठे मा का होही । बुता अउ काम हा तुहरे अब साँखी होवय ।।

यशोदा के ओ लाला

नंदलाल के लाल, यशोदा के ओ लाला । बासुरिया धुन छेड़, जगत मा घोरे हाला ।। माखन मटकी फोर, डहर मा छेके ग्वाला । बइठ कदम के डार, बलावत हस तैे काला । ओ बंशी के तान, सुने बर मोहन प्यारे । जड़ चेतन सब जीव, अपन तन मन ला हारे ।। सुन लव मोर पुकार, फेर ओ बंशी छेड़व । भरे देह मा पीर, देह ले कांटा हेरव ।।

जीबो मरबो देश बर

एक कसम ले लव सबो, जीबो मरबो देश बर । करब देश हित काम सब, गढ़ब चरित हम देश बर ।। मरना ले जीना कठिन,  जी के हम तो देखबो । तिनका तिनका देश बर, चिरई असन सरेखबो ।। भरबो मरकी देश के, बूँद-बूँद पानी होय के । जुगुनू जस बरबो हमन, जात-पात अलहोय के ।। अपन गरब सब छोड़ के, गरब करब हम देश बर । एक कसम ले लव सबो देश धरम सबले बड़े, जेला पहिली मानबो । पाछू अल्ला राम ला,  हमन देवता जानबो ।। भाषा-बोली  के साज मा, गाबो एके तान  रे । दुनिया भर मा देश के, हमन बढ़ाबो शान रे ।। अपने घर परिवार कस, करब मया हम देश बर ।।एक कसम ले लव सबो बैरी हा काहीं करय, फसन नहीे हम चाल मा । सधे पाँव ले रेंगबो, अपन डगर हर हाल मा । बेजाकब्जा छोड़बो, छोड़ब भ्रष्टाचार ला । करब अपन कर्तव्य ला, चातर करब विचार ला । मिल जाही अधिकार हा, करम करब जब देश बर ।।एक कसम ले लव सबो

धन धन तुलसी दास ला,

धन धन तुलसी दास ला, धन धन ओखर भक्ति ला। रामचरित मानस रचे,  कहिस चरित के शक्ति ला ।। मरयादा के डोर मा, बांध रखे हे राम ला । गढ़य चरित मनखे अपन, देख राम के काम ला । जीवन जीये के कला, बांटे तुलसी दास हा । राम बनाये राम ला, मरयादा के परकाश हा ।। रामचरित मानस पढ़व, सोच समझ के लेख लव । कइसे होथे संबंध हा, रामचरित ले देख लव ।। राम राज के सोच हा, कइसे पूरा हो सकत । कोनो न सुधारे चरित, बोलत रहिथें बस फकत ।।

आगे आगे सावन आगे

आगे आगे सावन आगे, जागे भाग हमार । अपन मनौती मन मा लेके, जाबो शिव दरबार ।। धोवा धोवा चाउर धर ले, धर ले धतुरा फूल । बेल पान अउ चंदन धर ले, धर ले बाती फूल ।। दूध रिको के पानी डारब, अपन मया ला घोर । जय जय महादेव शिव शंकर, बोलब हाथे जोर ।। सोमवार दिन आये जतका, रहिबो हमन उपास । मन के पीरा हमरे मिटही, हे हमला विश्वास ।। मन मा श्रद्धा के जागे ले, मिल जाथे भगवान । नाम भले हे आने आने, नो हय कोनो आन ।।

आज हरेली हाबे

छन्न पकइया छन्न पकइया, आज हरेली हाबे । गउ माता ला लोंदी दे के, बइला धोये जाबे । छन्न पकइया छन्न पकइया, दतिया नांगर धोले । झउहा भर नदिया के कुधरी, अपने अॅगना बो ले ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, कुधरी मा रख नागर । चीला रोटी भोग लगा के, खा दू कौरा आगर ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, ये पारा वो पारा । राउत भइया हरियर हरियर, खोचे लिमवा डारा । छन्न पकइया छन्न पकइया, घर के ओ मोहाटी । लोहारे जब खीला ठोके, लागे ओखर साटी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, केवट भइया आगे । मुड़ मा डारे मछरी जाली, लइका मन डररागे ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, नरियर फेके जाबो । खेल खेल मा जीते नरियर, गुड़ मा भेला खाबो ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, गेड़ी चर-चर बाजे । चढ़य मोटियारी गेड़ी जब, आवय ओला लाजे ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, सबले पहिली आथे । परब हरेली हमरे गढ़ के, सब झन ला बड़ भाथे ।।

मोर गांव हे सुख्खा

चारो कोती पूरा पानी, मोर गांव हे सुख्खा । सबके मरकी भरे भरे हे, मोरे मरकी दुच्छा।। खेत खार के गोठ छोड़ दे, मरत हवन पीये बर । पानी पानी बर तरसत हन, घिर्रत हन जीये बर ।। नरवा तरिया सुख्खा हावे, सब्बो कुॅआ पटागे । हेण्ड़ पम्प मोटर सुते हवय, जम्मो बोर अटागे ।। घर के बाहिर जे ना जाने, भरत हवय ओ पानी । पानी टैंकर जोहत रहिथे, मोरे घर के रानी ।। धुर्रा गली उड़ावत हावे, सावन के ये महिना । घाम जेठ जइसे लागे हे, मुड़ धर के सहिना ।। काबर गुस्साये हे बादर, लइका कस ललचाथे । कभू टिपिर टापर नई करय, बस आथे अउ जाथे ।। सोचव सोचव जुरमिल सोचव, काबर अइसन होथे । काबर सावन भादो महिना, घाम उमस ला बोथे ।। बेजाकब्जा चारो कोती, रूख राई ला काटे । परिया चरिया घेरे हावस, कुॅआ बावली पाटे ।। भरे हवय लालच के हण्ड़ा, पानी मांगे काबर । अपन अपन अब हण्ड़ा फोरव,  लेके हाथे साबर ।।

हरेली

सुख के बीजा बिरवा होके, संसो फिकर ल मेटय । धनहा डोली हरियर हरियर, मनखे मन जब देखय ।। धरती दाई रूप सजावय, जब आये चउमासा । हरियर हरियर चारो कोती, बगरावत हे आसा ।। सावन अम्मावस हा लावय, अपने संग हरेली । हॅसी खुशी ला बांटत हावय, घर घर मा बरपेली । कुदरी रपली हॅसिया नागर, खेती के हथियारे । आज देव धामी कस होये, हमरे भाग सवारे ।। नोनी बाबू गेड़ी मच-मच, कूद-कूद के नाचय ।। बबा खोर मा बइठे बइठे, देख देख के हाॅसय ।।

बरस बरस ओ बरखा रानी

धान पान के सुघ्घर बिरवा, लइका जस हरषाावय । जब सावन के बरखा दाई, गोरस अपन पियावय । ठुमुक ठुमुक लइका कस रेंगय, धान पान के बिरवा । लहर लहर हवा संग खेलय, जइसे लइका हिरवा ।। खेत खार हे हरियर हरियर, हरियर हरियर परिया । झरर झरर जब बरसे पानी, भरे लबालब तरिया ।। नदिया नरवा छमछम नाचय, गीत मेचका गावय । राग झिुंगुरा छेड़े हावय, रूखवा ताल मिलावय ।। भरे भरे हे बारी बखरी, नार बियारे छाये । तुमा कोहड़ा छानही चढ़य, भाजी पाला लाये ।। जानय नही महल वाले हा, कइसे गिरते पानी । गरीबहा मन के जिनगी के, कइसन राम कहानी ।। घात डहे हवय बेंदरा हा, परवा खपरा फोरे । कूद कूद के नाचत रहिथे, कभू न रेंगे कोरे ।। झरे ओरवाती झिमिर झिमिर, घर कुरिया बड़ चूहे । हवय गाय कोठा मा पानी, तभो पहटिया दूहे ।। परछी अॅंगना एके लागे, ओधे भले झिपारी । घर कुरिया हे तरई आंजन, सिढ़ ले परे किनारी ।। मन के पीरा मन मा राखे, गावय गीत ददरिया । बरस बरस ओ बरखा रानी, बरसव बादर करिया ।। दाई परसे मेघा बरसे, तभे पेट हा भरथे । कभू कहूं ओ गुस्सा होवय, सबके जियरा जरथे ।।

मनखे ओही बन जाथे

कुकुभ छंद जेन पेड़ के जर हे सुध्घर, ओही पेड़ ह लहराथे। जर मा पानी डारे ले तो, डारा पाना हरियाथे ।। नेह पोठ होथे जे घर के, ओही घर बहुत खटाथे । उथही होय म नदिया तरिया, मांघे फागुन म अटाथे ।। ढेला पथरा ला ठोके मा, राईं-झाईं हो जाथे । कच्चा माटी के लोंदा ले, करसी मरकी बन जाथे । जेन पेड़ ठांढ़ खड़े रहिथे, झोखा पाये गिर जाथे । लहर लहर हवा संग करके, नान्हे झांड़ी इतराथे ।। करू कस्सा कस बोली बतरस, जहर महूरा कस होथे । मीठ गोठ के बोली भाखा, सिरतुन अमरित रस बोथे। जिहां चार ठन भड़वा बरतन, धोये मांजे मा चिल्लाथे । संगे जुरमिल एक होय के, रंधहनी कुरिया मा जाथे ।। जेन खेत के मेढ़ साफ हे, ओही हा खेत कहाथे । मनखे ला जे मनखे मानय, मनखे ओही बन जाथे ।।

कब तक हम सब झेलत रहिबो

कब तक हम सब झेलत रहिबो, बिखहर सांप गला लपेट । कभू जैष अलकायदा कभू, कभू नवा इस्लामिक स्टेट ।। मार काट करना हे जेखर, धरम करम तो केवल एक । गोला बारूद बंदूक धरे, सबके रसता राखे छेक ।। मनखे मनखे जेती देखय, गोला बारूद देथे फोड़ । अपन जुनुन मा बइहा होके, उधम मचावत हें घनघोर ।। चिख पुकार अउ रोना धोना, मचे हवय गा हाहाकार । बिना मौत कतको मरत हंवय, देखव इन्खर अत्याचार ।। नाम धरम के बदनाम करत, खेले केवल खूनी खेल । मनखे होके राक्षस होगे, मनखेपन ला घुरवा मेल ।।

पढ़ई के नेह

होथे गा पढ़ई जिहां, काबर चूरे भात । पढ़ई लिखई छोड़ के, करे खाय के बात । बस्ता मा थारी हवय, लइका जाये स्कूल । गुरूजी के का काम हे, रंधवाय म मसगूल ।। मन हा तो काहीं रहय, बने रहय गा देह । बने रहय बस हाजरी, येही पढ़ई के नेह ।। अइसन शिक्षा नीति हे, काला हे परवाह । राजनीति के फेर मा, करत हें वाह-वाह ।। प्रायवेट वो स्कूल मा, कतका लूट-घसोट । गुरूजी हे पातर दुबर, कोन धरे हे नोट ।। करथें केवल चोचला, आन देश के देख । अपन देश के का हवय, पढ़व आन के लेख । हवय कमई जेखरे, पढ़ई म देत फूक । छोड़-छाड़ संस्कार ला, देखय केवल ‘लूक‘ । -रमेश चैहान

राग द्वेष ला छोड़ दे

राग द्वेष ला छोड़ दे, जेन नरक के राह । कोनो ला खुश देख के, मन मा मत भर आह ।। त्याग प्रेम के हे परख, करव प्रेम मा त्याग । स्वार्थ मोह के रंग ले, रंगव मत अनुराग ।। जनम जनम के पुण्य ले, पाये मनखे देह । करले ये जीवन सफल, मनखे ले कर नेह ।। अमर होय ना देह हा, अमर हवे बस जीव । करे करम जब देह हा, होय तभे संजीव ।। रोक छेक मन हा करय, पूरा करत मुराद । मजा मजा बस खोज के, करय बखत बरबाद ।।

नोनी बाबू एक हे

चंडिका छंद 13 मात्रा पदांत 212 नोनी बाबू एक हे । नारा हा बड़ नेक हे करके जग के काम ला । नोनी करथे नाम ला काम होय छोटे बड़े । हर काम म नोनी अड़े घर अउ बाहिर के बुता । नोनी हा देथे़ कुता येमा का परहेज हे । नोनी खुदे दहेज हे नोनी ला बड़ मान दौ । आघू ओला आन दौ नोनी नोनी के षोर मा । नवा चलन के जाोर मा बाबू मन पछुवाय हे । नोनी मन अघुवाय हे बाबू होगे छोट रे । जइसे सिक्का खोट रे नोनी बहुते हे पढ़े । बाबू बहुते हे कढ़े ताना बाना देश के । हर समाज परिवेश के तार तार झन होय गा । सोचव मन धोय गा

कहमुकरिया

1. मोरे कान जेन हा धरथे। आॅंखी उघार उज्जर करथे ।। दुनिया देखा करे करिश्मा । का सखि ? जोही । नहि रे चश्मा । 2. बइला भइसा जेखर संगी । खेत जोत जे करे मतंगी । काम करे ले थके न जांगर । का सखी ? किसान नही रे, नांगर ।

बरसात

चढ़ बादर के पीठ मा, बरसत हवय असाढ़ । धरती के सिंगार हा, अब तो गे हे बाढ़ ।। रद-रद-रद बरसत हवय, घर कुरिया सम्हार । बांध झिपारी टांग दे, मारत हवय झिपार ।। चिखला हे तोरे गोड़ मा, धोके आना गोड़ । चिला फरा घर मा बने, खाव पालथी मोड़ ।। सिटिर सिटिर सावन करय, झिमिर झिमिर बरसात । हरियर लुगरा ला पहिर, धरती गे हे मात ।।

मान सियानी गोठ

झेल घाम बरसात ला, चमड़ी होगे पोठ । नाती ले कहिथे बबा, मान सियानी गोठ ।। चमक दमक ला देख के, बाबू झन तैं मात । चमक दमक धोखा हवय, मानव मोरे बात ।। मान अपन संस्कार ला, मान अपन परिवार । झूठ लबारी छोड़ के, अपने अंतस झार ।। मनखे अउ भगवान के, हवय एक ठन रीत । सबला तैं हर मोह ले, देके अपन पिरीत ।। बाबू मोरे बात मा, देबे तैं हर ध्यान । सोच समझ के हे कहत, तोरे अपन सियान ।। कहि दे छाती तान के, हम तोरे ले पोठ । चाहे कतको होय रे, कठिनाई हा रोठ ।।

भौतिकवाद के फेर मनखे मन करय ढेर

भौतिकवाद के फेर । मनखे मन करय ढेर सुख सुविधा हे अपार । मनखे मन लाचार मालिक बने विज्ञान । मनखे लगे नादान सबो काम बर मशीन । मनखे मन लगय हीन हमर गौटिया किसान । ओ बैरी ये मितान जांगर के बुता छोड़ । बइठे पालथी मोड़ बइठे बइठे ग दिन रात । हम लमाय हवन लात अइसन हे चमत्कार । देखत मरगेन यार पढ़े लिखे हवे झार । नोनी बाबू हमार जोहत हे बुता काम । कइसे के मिलय दाम लूटे बांटा हमार । ये मशीन मन ह झार मशीन हा करय काम । मनखे मन भरय दाम सुख सुविधा बरबादी । जेखर हवन हम आदि करना हे तालमेल । छोड़ सुविधा के खेल बड़े काम बर मशीन । छोट-मोट हम करीन मशीन ल करबो दास । नई रहन हम उदास

काठी के नेवता

काठी के नेवता कोने जानय जिंनगी, जाही कतका दूर तक । बेरा उत्ते बुड़ जही, के ये जाही नूर तक ।। टुकना तोपत ले जिये, कोनो कोनो ठोकरी । मोला आये ना समझ, कइसे मरगे छोकरी ।। अभी अभी तो जेन हा, करत रहिस हे बात गा । हाथ करेजा मा धरे, सुते लमाये लात गा ।। रेंगत रेंगत छूट गे, डहर म ओखर प्राण गा । सजे धजे मटकत रहिस, मारत ओहर शान गा ।। देख देख ये बात ला, मैं हा सोचॅव बात गा । मोर मौत पक्का हवय, जिनगी के सौगात गा । मोला जब मरने हवय, मरहूॅ मैं हा शान ले । जइसे मैं जीयत हॅवव, तुहर मया के मान ले ।। भेजत हवॅव मैं हा अपन, अब काठी के नेवता । दिन बादर ला जान के, आहू बनके देवता ।। अपने काठी के खबर मैं हा आज पठोत हंव। जरहूं सब ला देख के , सपना अपन सजोत हंव ।।

छोड़ नशा पानी के चक्कर

छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे । माखुर बिड़ी दारू गांजा के, नुकसानी अड़बड़ हे ।। रिकिम-रिकिम के रोगे-राई, नशा देह मा बोथे । मानय नही जेन बेरा मा, पाछू मुड़ धर रोथे ।। उठ छैमसी निंद ले जल्दी, अपने आंखी खोलव । सोच समझ के पानी धरके, अपने मुॅह ला धोलव ।। नही त टूट जही रे संगी, जतका तोर अकड़ हे । छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे । धन जाही अउ धरम नशाही, देह खाख हो जाही । मन बउराही बइहा बानी, कोने तोला भाही । संगी साथी छोड़ भगाही, तोर कुकुर गति करके । जादा होही घर पहुॅंचाही, मुरदा जइसे धरके ।। तोर हाथ ले छूट जही रे, जतका तोर पकड़ हे । छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे । छेरी पठरू जइसे तैं हर, चाबत रहिथस गुटका। गांजा के भरे चिलम धर के, मारत रहिथस हुक्का । फुकुर-फुकुर तैं बिड़ी सिजर के, लेवत रहिथस कस ला । देशी महुॅवा दारू विदेशी, चुहकत रहिथस रस ला ।। कभू नई तो सोचे तैं हर,  ये लत हा गड़बड़ हे । छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे ।

रीत-नीत के दोहावली

जीयत भर खाये हवन, अपन देश के नून । छूटे बर कर्जा अपन, दांव लगाबो खून ।। जीवन चक्का जाम हे, डार हॅसी के तेल । सुख-दुख हे दिन रात कस, हॅसी-खुशी ले झेल ।। चल ना गोई खाय बर, चुर गे हे ना भात । रांधे हंव मैं मुनगा बरी, जेला तैं हा खात ।। महर महर ममहात हे, चुरे राहेर दार । खाव पेट भर भात जी, घीव दार मा डार ।। परोसीन हा पूछथे, रांधे हस का साग । हमर गांव के ये चलन, रखे मया ला पाग ।। दाई ढाकय मुड़ अपन, देखत अपने जेठ । धरे हवय संस्कार ला, हे देहाती ठेठ ।। खेती-पाती बीजहा, लेवव संगी काढ़ । करिया बादर छाय हे, आगे हवय असाढ़ ।। बइठे पानी तीर मा, टेर करय भिंदोल । अगन-मगन बरसात मा, बोलय अंतस खोल ।। बइला नांगर फांद के, जोतय किसान खेत । टुकना मा धर बीजहा,  बावत करय सचेत ।। मुंधरहा ले जाग के, जावय खेत किसान । हॅसी-खुशी बावत करत, छिछत हवय गा धान ।। झम झम बिजली हा करय, करिया बादर घूप । कारी चुन्दी बगराय हे, धरे परी के रूप ।। आज काल के छोकरा, एती तेती ताक । अपन गांव परिवार के, काट खाय हे नाक ।। मोरे बेटा कोढ़िया, घूमत मारय शान । काम-बुता के गोठ ला, एको धरय न कान ।। जानय न

करिया बादर (घनाक्षरी छंद)

करिया करिया घटा, उमड़त घुमड़त बिलवा बनवारी के, रूप देखावत हे । सरर-सरर हवा, चारो कोती झूम झूम, मन मोहना के हॅसी, ला बगरावत  हे । चम चम चमकत, घेरी बेरी बिजली हा, हाॅसत ठाड़े कृश्णा के, मुॅह देखावत हे । घड़र-घड़र कर, कारी कारी बदरी हा, मोहना के मुख परे, बंषी सुनावत हे ।

सुमुखी सवैया

मया बिन ये जिनगी मछरी जइसे तड़पे दिन रात गियां । मया बिन ये तन हा लगथे जइसे ठुड़गा रूख ठाड़ गियां।। मया बरखा बन के बरसे तब ये मन नाचय मोर गियां । मया अब सावन के बरखा अउ राज बसंत बयार गियां

का करबे आखर ला जान के

का करबे आखर ला जान के का करबे दुनिया पहिचान के । घर के पोथी धुर्रा खात हे, पढ़थस तैं अंग्रेजीस्तान के । मिलथे शिक्षा ले संस्कार हा, देखव हे का हिन्दूस्तान के । सपना देखे मिल जय नौकरी चिंता छोड़े निज पहिचान के । पइसा के डारा मा तैं चढ़े ले ना संदेशा खलिहान के जाती-पाती हा आरक्षण बर शादी बर देखे ना छान के । मुॅह मा आने अंतस आन हे कोने जानय करतब ज्ञान के ।

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