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कतका झन देखे हें-

सीखव

नई होय छोटे बड़े, जग के कोनो काम । जेमा जेखर लगे मन, ऊही ले लौ दाम ।। सक्कर चाही खीर बर, बासी बर गा नून । कदर हवय सबके अपन, माथा तै झन धून ।। निदा निन्द ले धान के, खातू माटी डार । पढ़ा लिखा लइका ल तै, जीनगी ले सवार।। महर महर चंदन करय, अपने बदन गलाय । आदमी ला कोन कहय , देव माथे चढ़ाय ।। सज्जन मनखे होत हे, जइसे होथे रूख । फूलय फरय दूसर बर, चाहे जावय सूख ।। जम्मो इंद्रिल करय बस, बगुला ह करे ध्यान । जेन करय काम अइसन, ओखर होवय मान ।।

होली गीत

चारो कोती छाय, मदन के बयार संगी । मउरे सुघ्घर आम, मुड़ी मा पहिरे कलिगी ।। परसा फूले लाल, खार मा जम्मो कोती । सरसो पिउरा साथ, छाय रे चारो कोती ।। माते हे अंगूर, संग मा महुवा माते । आनी बानी फूल, गहद ले बगिया माते ।। तितली भवरा देख, मंडरावत बड़ भाते । होरी के गा डांग,  फाग के गीत सुनाथे ।। पिचकारी के रंग, मया ले गदगद लागे । हवा म उड़े गुलाल, प्रेम के बदरी छागे । रंग रंग के रंग, देख मुह लइका भागे । मया म हे मदहोश, रंग के नसा म माते ।। होवय जिहां ग फाग, धाम बृज कस हे लागे । दे बुलऊवाश्‍ष्याम, संग मा राधा आगे । राधा बिना न श्‍याम, श्‍याम राधा के होरी ।  हवय समर्पण प्रेम, नई होवय बर जोरी ।। राधा के तै श्‍याम, रंग दे अपन रंग मा । खेलव होरी रास, श्‍याम रे तोरे संग मा । तै ह हवस चितचोर, बसे हस मोरे मन मा । महु ला बना ले गोप, सखा तै अपन मन मा ।।

कोन रंग लगाव (फाग)

कोने रंग लगांंव, कोनेे रंग लगांंव कोने रंग लगांंव, आसो के होरी मा । कोने अंग पिऊरा रे, कोने अंग लाल कोने अंग लाल कोने अंग हरियर रे, कोने अंग गुलाल कोने अंग गुलाल कोने रंग लगांव, आसो के होरी मा । पिऊरा रंग ले, तोला पिऊरावंव के मांघ सजावंव लाल माघ सजावंव लाल हाथ हरियर चूरी कस, ओठ गुलाबी गुलाल ओठ गुलाबी गुलाल कोने रंग लगांंव, आसो के होरी मा । रंग-रंग के हाथ मा, धरे हंंव गुलाल धरे हंव गुलाल तोला रंगे बिना रे गोरी,  कइसे  मोर तिहार कइसे मोर तिहार कोने रंग लगांंव, आसो के होरी मा । -रमेश चौहान

गजल-नेतामन जाही अब तोर गॉंव

ग़ज़ल- नेतामन जाही अब तोर गॉंव नेतामन जाही अब तोर गांव, आवत हे चुनाव अब तो कर ही ओमन चाँव-चाँव आवत हे चुनाव आनी बानी गुरतर गोठ ले बताही जात-पात ऊँचा-नीचा के खेलत ओ दांव आवत हे चुनाव कत का दिन के भूले भटके, पूछ रद्दा जाही तोर घर-घर जाही जाही ठाँव-ठाँव, आवत हे चुनाव जादूगर कस फूंके बासुरी, अऊ घूमाय हाथ देखव गा जादू पीपर के छाँव, आवत हे चुनाव जीते बर बाटे गा दारू, बाटे पइसा थोर थोर सोचव गा काबर हे तोर भाव, आवत हे चुनाव हरहा मनखे  कुछु कर सकथे, दाँव सब हारे के बाद तब तो ओ मन पर ही तोर पाँव, आवत हे चुनाव -रमेश चौहान

पइसा

पइसा ले नाता हवय, हवय संगी मितान। पइसा बीना हे कहां, तोर कदर इंसान ।। तोर कदर इंसान, कमावत ले तो होही  । जांगर थिराय कोन, कहय रे तोला जोही ।। जीयत भर तै पोस, कमा ले गा जस भइसा । बीबी बच्चा तोर, रात दिन मांगे पइसा । - रमेशकुमार सिंह चौहान

दोहावली

गली गली छेकाय अब, रद्दा रेंगव देख । चाकर दिखय गली कहू, ओला तैले छेक ।। बनवा लव चैरा बने, बाजू पथरा गाड़ । अऊ पानी निकल दव, गली म जावय माड़ ।। रद्दा छेके तै बने,  दूसर बर चिल्लाय । अपन आघू म शेर तै, पाछू म मिमीआय ।। गली अब कोलकी बने, बने न आवत जात । मतलब कोनो ला कहां, मतलबीया जमात ।। छोकरी दिखय छोकरा,  जिंस पेंट फटकाय । कनिहा ले बेनी कहां, चुन्दी ले कटवाय ।। छोकरा दिखय छोकरी, लंबा चुन्दी भाय । चिक्कन चांदर गाल हे, मेछा हे मुड़वाय ।।

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