चारो कोती छाय, मदन के बयार संगी ।
मउरे सुघ्घर आम, मुड़ी मा पहिरे कलिगी ।।
परसा फूले लाल, खार मा जम्मो कोती ।
सरसो पिउरा साथ, छाय रे चारो कोती ।।
माते हे अंगूर, संग मा महुवा माते ।
आनी बानी फूल, गहद ले बगिया माते ।।
तितली भवरा देख, मंडरावत बड़ भाते ।
होरी के गा डांग, फाग के गीत सुनाथे ।।
पिचकारी के रंग, मया ले गदगद लागे ।
हवा म उड़े गुलाल, प्रेम के बदरी छागे ।
रंग रंग के रंग, देख मुह लइका भागे ।
मया म हे मदहोश, रंग के नसा म माते ।।
होवय जिहां ग फाग, धाम बृज कस हे लागे ।
दे बुलऊवाश्ष्याम, संग मा राधा आगे ।
राधा बिना न श्याम, श्याम राधा के होरी ।
हवय समर्पण प्रेम, नई होवय बर जोरी ।।
राधा के तै श्याम, रंग दे अपन रंग मा ।
खेलव होरी रास, श्याम रे तोरे संग मा ।
तै ह हवस चितचोर, बसे हस मोरे मन मा ।
महु ला बना ले गोप, सखा तै अपन मन मा ।।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें