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मई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

एक अकेला आय तै

एक अकेला आय तै, जाबे तै हर एक । का गवाय का पाय हस, ध्यान लगा के देख । ध्यान लगा के देख, करे काखर हस तै जै । मनखे चोला पाय, बने हस का मनखे तै ।। मनखेपन भगवान, जेन हा लगय झमेला । पूजे का भगवान, होय तै एक अकेला ।। -रमेश चौहान

रद्दा रेंगत जाव रे

रद्दा रेंगत जाव रे, रेंगे से हे काम । चाहे बाधा लाख रहय, कर झन तै आराम ।। कर झन तै आराम, मिलत ले अपने मंजिल । नदिया नरवा देख, टोर बाधा हे संदिल ।। चाटी चढ़य पहाड़, देख तो ओखर माद्दा। तै तो दिमागदार, छोड़थस काबर रद्दा ।। -रमेश चौहान

मया हंव मै तोर

डारा पाना डोल के, कहय हवा ले बात । मोरे डोले तै बहे, कहां तोर अवकात ।। कहां तोर अवकात, बिना मोरे का पुरवाही । रहंव जब खामोस, कोन तोला रे भाही ।। हवा पूछय मनात, चढे काबर हे पारा । मया हंव मै तोर, तहीं जोही अस डारा ।। -रमेश चौहान

कोदू राम ‘दलित‘

लइका रामभरोस के, टिकरी जेखर गांव । छत्तीसगढि़या जन कवि,‘कोदू‘ ओखर नाव ।। ‘कोदू‘ ओखर नाव, जेन हर‘दलित‘ कहाये । ओखर कुंडलि छंद, आज ले गजब सुहाये।। जन मन के तकलीफ, लिखे हे जेन ह ठउका । हवय अरूण हेमंत, बने ओखर दू लइका ।। कोदू राम ‘दलित‘ हमर, कहाय माटी पूत । जन मन पीरा जे बुने, जइसे बुनथे सूत ।। जइसे बुनथे सूत, बुने हे दोहा कुंडलि । दोहा पारय खूब, गांव के राउत मंडलि ।। गोठ कहे हे पोठ, छोड़ के बदरा-बोदू । जन जन हा चिल्लाय, अमर रहिहव गा कोदू ।। हमर नवागढ़ गांव के, कालेज हवय शान । कोदू राम ‘दलित‘ हवय, जेखर सुघ्घर नाव ।। जेखर सुघ्घर नाव, गांव मा अलख जगाये । सिक्छा के परभाव, सबो कोती बगराये ।। करे ‘दलित‘  कस काम, दबे कुचले बर अढ़बढ़ । लइका लइका आज, पढ़े हे हमर नवागढ़ ।।

बिलवा कइसे होय

भाथें अपने काम ला, मनखे नेता होय । मान विरोधी आन ला, काहेक के बिट्टोय ।। काहेक के बिट्टोय, अंगरी देखा देखा । कोनो कहां बताय, काम के लेखा जोखा ।। अपने आंखी मूंद, लाल ला पियर बताथें । कइसनो कर डार, काम ला अपने भाथें ।। खुरसी के ओ रंग ले, रंग जथे सब कोय । सादा तो ओ हर रहय, बिलवा कइसे होय ।। बिलवा कइसे होय, समझ तो सकय न कोनो । बइठे म लगय एक, शेर अउ सियार दूनो  ।। चिन्हय संगी कोन, बने काखर हे करसी । डोल सकय मत जेन, रखे मा अइसन खुरसी ।।

जुन्ना पारा गांव के

जुन्ना पारा गांव के, धंधाय हवय आज । बेजाकब्जा के हवय, खोर गली मा राज ।। खोर गली मा राज, गांव के दुश्मन मन के । अपन गुजारा देख, गली छेके हे तन के ।। कहत हवे ग ‘रमेश‘, बात ला थोकिन गुन्ना । चातर कर दे खोर, नीक लगही गा जुन्ना ।।

सुरता झीरम कांड के

सुरता झीरम कांड के, ताजा होगे आज । जेमा हारे तो रहिन, लोकतंत्र के राज ।। लोकतंत्र के राज, शहीद होइन गा नेता । समय कठिन गे बीत, धरे मुठ्ठी मा रेता ।। ताजा हे वो घाव, बचे हे अब तक क्रुरता । कइसे होही नाश, जाय कइसे ओ सुरता ।।

जागव जागव अब बस्तरिहा

जागव जागव अब बस्तरिहा, लावव संगी नवा बिहान । तोर छोड़ के कोनो ऊंहा, कर सकय न थोरको निदान ।। तपत हवे तूहरे भरोसा, तू ही मन ला ढाल बनाय । तू ही मन ला मार मार के, तू ही मन ला खूब डराय ।। धरे बम्म अउ गोला बारूद, लूटे तोरे तीर कमान । जंगल मा ओ कब्जा करके, लूटत हे तोरे पहिचान ।। काट-काट विकास के रद्दा, जंगल राखे तोला धांध । देख सकव झन जग हे कइसे, राखे खूंटा तोला बांध ।। अपन आप ला मितान कहिके, तोरे गरदन देथे घोठ । तोरे बर ओ बनाय फांदा, जीभ निकाले करथे गोठ ।। एक-एक तो ग्यारा होथे, देखव तुम सब हाथ मिलाय हो जव लकडी के गठरी कस, गांठ मया के देव लगाय । खोल सरग तक अपने पांखी, उड जावव न फांदा समेत । कब तक तू मन सूते रहिहव, अब तो हो जावव ग सचेत ।। जंगल के तू ही मन राजा, भालू चीता षेर हराय । बैरी सियार मन ला काबर, अब तू मन रहिथव डरराय । दम भर दहाड तै जंगल मा, डारा पाना सुन के झर जाय । सियार सुन के दहाड़ तोरे, जिहां रहय ऊंहे मर जाय ।।

कोन हा दुख ला सहिथे

कहिथे सब सरकार के, हवय न ऐमा दोष । जेन ल देखव तेन हा, उतारत हवे रोष।। उतारत हवे रोष, कहे ला करत नई हे । सपना के ओ गोठ, थोरको भरत नई हे ।। पूछत हवे ‘रमेश‘, कोन हा दुख ला सहिथे । सपना देखय जेन, सबो झन येही कहिथे ।।

भरय नही गा पेट हा

भरय नही गा पेट हा, होय मा कलमकार । कलाकार ला कोन हा, देथे पइसा चार ।। देथे पइसा चार, कोन हर गा इज्जत ले । बिधुन अपनेच काम, मस्त हे बेइज्जत ले ।। डौकी लइका रोय, कोडि़हा कहय सही गा । कविता लिख गा गीत, पेट हा भरय नही गा ।।

सबो फिक्स हे खेल मा

कतको तै हर कूद ले, नइ चलय तोर दांव । सबो फिक्स हे खेल मा, फिक्स हवय हर नाव ।। फिक्स हवय हर नाव, सलेक्सन काखर होही । खुल-खुल हॅसही कोन, कोन माथा धर रोही ।। हे सरकारी काम, तुमन जादा झन भटको । भीड़ा अपन जुगाड़, इहां मिलही रे कतको ।। -रमेश चौहान

करत अकेल्ला काम

कइसे करबे काम ला, देखत हे संसार । तही अकेल्ला शेर हस, बाकी सबो सियार ।। बाकी सबो सियार, शेर के लइका होके । भुलाय अपन सुभाव, लुकावत हे रो रो के ।। हर मुखिया के हाल, हवय रे कुछ तो अइसे । करत अकेल्ला काम, काम होवय रे कइसे ।।

घाम जेठ के घात हे

घाम जेठ के घात हे, रद्दा जाके जांच । कान नाक मुॅह तोप के, झोला ले तै बाच ।। झोला ले तै बाच, गोंदली जेब धरे रह । अदर-कचर झन बोज, भूख ला थोकिन तै सह ।। मुॅह झन तोर सुखाय, थिरा ले छांव बेठ के । हरर-हरर हे घात, आज तो घाम जेठ के ।। -रमेश चौहान

मया ले सनाय दिल गा

मिरगा कस खोजत हवस, गांव गली अउ खोर । कसतूरी कस हे मया, समाय भीतर तोर ।। समाय भीतर तोर, मया ला पाके उपजे । रगड़ होय जब बांस, बास मा आगी सिरजे ।। महर महर ममहाय, मया ले सनाय दिल गा । खूब कूदत नाचत, पाय ओ मयारू मिरगा ।।

रहव मत बइठे-बइठे

बइठे-बइठे कोन हा,देही हमला खाय । कोन कहय पर ला इहां, अपने हा चिल्लाय ।। अपने हा चिल्लाय, वाह रे जांगर चोट्टा । चुहक-चुहक के खून, जोंख  कस होगे रोठ्ठा । कह ‘रमेश‘ कविराय, जगत हे अइठे-अइठे ।। हाथ-गोड़ ला पाय, रहव मत बइठे-बइठे ।।

जरे काहेेक भोमरा

जरे काहेेक भोमरा, झरे काहेक झांझ । छोड़ मझनिया के हरर, जरे जेठ के सांझ ।। जरे जेठ के सांझ, ताव आगी भठ्ठी कस । हाथ-गोड़ मुॅह-नाक, होय भाजी-पाला जस ।। कइसन के अइलाय, भाप कस जब हवा झरे । लेसावत हे देह, ओनहा हर घला जरे ।। -रमेश चौहान

मोरे घर के हाल ला

मोरे घर के हाल ला, कोन ला का बतांव । झूठ लबारी बोल के, अपने ला भरमांव ।। अपने ला भरमांव, मूंद के अपने आंखी । लइका मन के आज, जाग गे हे गा पांखी ।। बतावत आत लाज, मोर बर बरकस छोरे । गारी-गल्ला देत, रात दिन बेटा मोरे ।।

तभो ददा हा, समझाथे

जेखरे भरोसा, पांच परोसा, तीनो बेरा, ओ खाथे । सुत उठ बिहनिया, खरे मझनिया, रात बियारी, धमकाथे । घर बइठे बइठे, काबर अइठे, अपन रौब ला, देखाथे । ददा ला ना भावय, ना डररावय, तभो ददा हा, समझाथे ।। बेटा बातें सुन, थोकिन तै गुन, अपने जीवन, तै गढ़ ना । दुनिया इक मेला, पड़ न झमेला, रद्दा आघू , तै बढ़ ना ।। हे गा पूछारी, सबो दुवारी, काम बुता ला, जे जाने । सुन बेटा हमार, हवय दरकार, अपने हिम्मत, जे माने ।। हे तोरे अंदर, एक समुंदर, जेला तोला, हे मथना । जब खुदे कमाबे, अमृत ल पाबे, जेला तोला, हे चखना ।। अपने बांटा धर, लालच झन कर, देखा-देखी, दुनिया के । बात मान अतके, झन रह सपटे, बन जाबे तै, गुनिया के ।।

लाल होगे हे जंगल

जंगल झाड़ी तोर हे, रूख राई हर तोर । मनखे मनखे तोर हे,काबर मचाय शोर ।। काबर मचाय शोर, धरे बंदूक खांध मा । सिधवा ला बहकाय, घूसरे हवस मांद मा ।। तहीं बरोबर सोच, होहि कइसे गा मंगल । कब तक पीबे खून, लाल होगे हे जंगल ।

कान्हा बंशी जब फुके

कान्हा बंशी जब फुके, झरे झमा झम राग । चेतन मा कोने कहय, जड़ मा जागे अनुराग ।। जड़ मा जागे अनुराग, होय राधा कस माटी । धुर्रा बने उडाय, छुये कान्हा के साटी ।। ब्रज के ठुठवा पेड़, राग सुन होगे नान्हा । नान्हा-नानचुक घाट-बाट चिल्लाय, अरे ओ कान्हा-कान्हा ।।

जीवन मा अनमोल

जीवन मा अनमोल हे, दाई ददा हमार । जेखर ले तन हा मिले, मिले हवय संसार ।। मिले हवय संसार, जिहां हे एक खजाना । कठिन डगर हे फेर, जिहां मुश्किल हे जाना ।। मुश्किल करे असान, हमर बर बन संजीवन। कदम कदम रेंगाय, बतावत अपने जीवन ।। -रमेश चौहान

आखर ला परघाय

आखर आखर शब्द ला, पहिली ले परघाय । रचंव कुंडलि छंद मैं, गजानन मन बसाय । गजानन मन बसाय, देवता जे आखर के । अलंकार रस छंद, रूप आवय शारद के ।। पाव पखार ‘रमेश‘, पाव मा लय हे ओखर । हे शारदे गणेश, दौव मोला तुम आखर ।।

गोरी सुरता तोर ओ

गोरी सुरता तोर ओ, हरे निंद अउ भूख । तोर अगोरा मैं खड़े, ठाड़े जइसे रूख ।। ठाड़े जइसे रूख, रात दिन अपन ठिकाना । चातक मैं होगेंव, बूॅंद स्वाती बन आना । हिरदय नइ हे देह, करे हस ऐखर चोरी । हवे अगोरा तोर, करेजा बन आ गोरी ।। -रमेश चौहान मिश्रापारा, नवागढ जिला-बेमेतरा 09977069545

मया नई होतीस

सोचव ये जग मा कहूं, मया नई होतीस । कोन जगत मा सृष्टि के, बीजा ला बोतीस ।। बीजा ला बोतीस, कोन सुख-दुख के जग मा। दिल पथरा होतीस, पीर होतीस न रग मा ।। कहितीस फेर कोन, खुशी ला अपने खोजव । होतिस का भगवान, मया बिन जग मा सोचव ।।

रहिबो रे दिन चार

दुनिया मा संगी हमन, रहिबो रे दिन चार । भरोसा देह के हे कहां, जानय ना संसार ।। जानय ना संसार, जगत कब आही जाही । अमर हवय रे प्रान, चेंदरा आने भाही ।। जाही इक दिन छोड़, देह के ओ तो रनिया । राही जग के आन, छोड़ जाबो हम दुनिया ।। -रमेश चौहान

सच के रद्दा रेंग

चारी चुगली छोड़ के, चिंतन कर तै सार । झूठ लबारी के हवय, दुनिया मा दिन चार ।। दुनिया मा दिन चार, असत के राज दिखथे । सच हर देर-सबेर, अपन गाथा ला लिखथे ।। सोच ला कर सजोर, नही ता परही भारी । सच के रद्दा रेंग, छोड़ के चुगली-चारी ।। -रमेश चौहान

हमू ला उत्तर चाही

चाही पइसा अउ पहुॅच, कराय बर कुछु काम । मेहनत भरोसा कहां, होय कोखरो नाम ।। होय कोखरो नाम, मेहनत संग पहुॅच ले । जन जन गेहें जान, कोन हर खाते गुप ले ।। एक काम के दाम, बराबर कोन लगाही । हमरो सवाल खास, हमू ला उत्तर चाही ।।

लिख-लिख कवि मरय

कविता लिख-लिख कवि मरय, पढ़य सुनय ना कोय । करय मसखरी जेन हा, ऊही हर अब कवि होय ।। ऊही हर अब कवि होय, भाय जेला तो जनता । सुना चुटकिला गोठ, देख कइसे कवि बनता ।। छंद मत लिख ‘रमेश‘, करा झन ऐखर फधिता । दिखय न कोनो मेर, जेन ला भाये कविता ।।

जाय बर हे मरघटिया

मरघटिया के पार मा, करथें गोठ सियान । कइसन खीरत जात हे, बने बने इंसान ।। बने बने इंसान, दिखय ना अब दुनिया । मनखे मन मा आज, सुवारथ के बैगुनिया ।। सुनलव कहय ‘रमेश‘, बने मत रह तैं घटिया । आज नहीं ता काल, जाय बर हे मरघटिया ।।

मया के ए बैगुनिया

दुनिया कहिथे गा भला, सब संग करव प्यार । प्यार करे जाथे कहां, हो जाथे ना प्यार ।। हो जाथे ना प्यार, जवानी मा सब कहिथे । काबर फेर जवान, प्यार ला खोजत रहिथे ।। अपनेपन के भाव, मया के ए बैगुनिया । रहिथे जेखर संग, मया तो करथे दुनिया ।।

‘‘दाई-दिन‘ (मातृदिवस)

दाई कहि हारे कहां, ओखर कोरा खेल । जब ले जवान तै बने, अचरा दे हस मेल ।। अचरा दे हस मेल, अपन दाई ल भुलाके । माने ना तै बात, रहे घर अलग बसाके ।। करे हस तार-तार, बात तै मान लुगाई । ‘‘दाई-दिन‘ मा आज, गोहरावत हस दाई ।।

गीत-"कहां मनखें गंवागे"

दिखय न कोनो मेर, हवय के नाव बुतागे खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। दिखय न कोनो मेर, हवय के नाव बुतागे खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। जंगल झाड़ी खार, डोंगरी मा जा जाके । सहर सहर हर गांव, गीत ला गा गाके ।। इहां उहां अब खोज, मुड़ी हा मोर पिरागे । खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। रद्दा म मिलय जेन, तीर ओखर जा जा के । करेंव मैं फरियाद, आंसु ला ढरा ढरा के  । जेला मैं पूछेंव, ओखरे मति ह हरागे  । खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। गरीब गुरबा संग, रहय ओ मन ल लगा के । पोछय ओखर आॅसु, संगवारी अपन बना के अइसन हमर  मितान, हमर ले घात रिसागे ।। खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। ऊॅच-नीच के भेद, मिटाये मया जगा के । मेटे झगड़ा पंथ, खुदा ला एक बता के ।। ले मनखेपन संत, जगत ले कती हरागे । खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। दरद मा दरद जान, रखय ओ अपन बनाके । हेरय पीरा बान, जेन हर हॅसा हॅसा के ।। ओखर ओ पहिचान, संग ओखरे सिरागे । खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। दिखय न कोनो मेर, हवय के नाव बुतागे । खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे । ख

दाई

दाई मयारू घात हे, जेखर जग मा सोर । जेन नानपन ले करय, लइका मन ल सजोर ।। लइका मन ल सजोर, करय तन मन ला हारे । सिरजावय जस पेड़, खून पसीना ला डारे ।। अपन पेट ला काट, खवावय हमला भाई । परगट हे भगवान, धरे रूप हमरे दाई ।।

सच अबरा डबरा

लबरा लबरा ले कहय, लबारी झन न मार । जान थंव तोला बने, कहिथस तै पच्चार ।। कहिथस तै पच्चार, जीव मा जीव ल डारे । अइसन तोरे काम, गोठ कर कर के मारे ।। कहय मुरूख ‘चैहान‘, परे सच अबरा डबरा । चारो कोती देख, दिखय रे लबरे लबरा ।।

आघू आघू रेंग तै

आघू आघू रेंग तै, पाछू ला झन देख । पाछू देखे डर लगय, हिम्मत अपन समेख । हिम्मत अपन समेख, छुये बर अपने मंजिल । हवस तै हर सजोर, संग मा तै तो संदिल ।। कांटा-खूटी लांघ, डहर मा कर तै काबू । करत डहर ला पार, रेंगते रह तै आघू ।।

दिल गे मोरे हार

कनिहा डोले तोर ओ, जइसे पीपर पान । जिंस पेंट तोला फभत, जइसे कंसा धान ।। जइसे कंसा धान, पियर काया तोरे हे । मुॅहरंगी हा तोर, सुरूज ला मुॅह मा बोरे हे ।। तोर तन के रूआब, लगय मोला जस धनिया । दिल गे मोरे हार, देख के तोरे कनिहा ।।

रखे कहां कुछु देह के

रखे कहां कुछु देह के, कब काहीं हो जाय । ना जाने कब देह मा, रोग राई समाय । रोग राई समाय, नाम कोनो रखाय के ।। सड़क म कतका भीड़, रखे कबतक बचाय के ।। कोनो देही ठोक, मंदहा मन तो घात दिखे । बचे भला रे कोन, जीव अपने देह रखे ।।

बाबू पैरी तोर

झुन झुन बाजय गोड़ मा, बाबू पैरी तोर । ठुमक ठुमक के रेंगना, दिल ला भाते मोर । दिल ला भाते मोर, तोर गिरना अउ उठना । रेंगइ माड़ी भार, रेंग के खुल-खुल हॅसना ।। बलि-बलि जाय ‘रमेष‘, हॅंसी ला तोरे सुन सुन । देखय तोला जेन, तेन हर बोलय झुन झुन ।।

आखर

आखर के दू भेद हे, स्वर व्यंजन हे नाम । ‘अ‘, ‘इ‘, ‘उ‘ कहाथे हास्व स्वर, बाकी ल गुरू जान । बाकी ल गुरू जान, भार लघु के हे दुगना । व्यंजन हास्व कहाय, लगे जेमा लघु स्वर ना ।। व्यंजन गुरू कहाय, गुरू स्वर ले हो साचर । आघू के ला गुरू, बनाथे आधा आखर ।।

जमाना हा लगय नवा

नवा जमाना आय हे, सोच नवा हे लाय । सुने बात ला छोड़ के, खाय तभे पतिआय । खाय तभे पतिआय, फेर रस ला नइ जाने । करू-कस्सा के लाभ, बिमरहा नइ तो माने ।। किरवा परथे मीठ, बात अब ले हवय जवा । अपन सुवारथ काज, जमाना हा लगय नवा।।

बोलबो छत्तीसगढ़ी

छत्तीसगढ़ी हा हवय, लोक भासा हमार । परबुधिया अउ सेखिया, कहे हमला गवार । कहे हमला गवार, उतर हमरे कोरा गा। दू आखर ला जान, होय पर के छोरा गा ।। बेर्रा मन ला छोड़, अपन भासा हमन गढ़ी । छाती हम तो तान, बोलबो छत्तीसगढ़ी ।।

तरिया मा किरकेट

लइका मन खेलत हवय, तरिया मा किरकेट । जोहत पनिहारिन मन ल, कुॅआ खोये विकेट ।। कुॅआ खोये विकेट, बावली झिरिया के बादे । हैण्ड़ पंप के बाद, बोर मोटर हा आगे ।। चैका छक्का मार, करत हे पानी खइता । पाछू के तकलीफ, कहां जाने हे लइका ।।

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